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Sangeeta Agarwal

Others

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Sangeeta Agarwal

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जिंदगी कर्ज़ है

जिंदगी कर्ज़ है

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धारावी को आज सजाए मौत की सज़ा सुनाई गई थी,लोगों में ये चर्चा का विषय था,शायद ही ऐसा कभी हो पाता हो कि किसी की सज़ा इतनी जल्दी मुकर्रर हो मिल भी जाये,पर धारावी को बहुत सुकून था,अब वो तिल तिल तो न मरेगी,जब से पैदा हुई थी न जाने कैसे काले कोयले से तकदीर लिखवा के लाई थी,पल भर भी सुखी न रह पाई।पता नहीं कौन खुशनसीब होते हैं वो लोग जिन्हें उनके अच्छे कामो का अच्छा फल मिलता है,धारावी की पूरी जिंदगी एक रिसता हुआ घाव बन गई थी जो न भरता था,न कुरेदा जाता था।लोगों में फुसफुसाहट थी कि इतनी छोटी उम्र में सजाय मौत ,पर धारावी के चेहरे पर पुरसुकून स्मित सी संतुष्टि थी कि शायद इस जिंदगी का कर्ज पूरा हो गया दिखता है आज।

धारावी की पूरी कहानी जानने के लिए,ले चलती हूँ आपको बहुत पीछे,जब ये नन्हीं मासूम सी बच्ची इस दुनिया में आई थी।

चंदनपुर में आज बहुत सजावट हो रही थी,वहां के जमींदार ठाकुर रतनसिंह की पहली औलाद जन्म लेने वाली थी,बाजे गाजे से बैंड वाले तैयार खड़े थे,पूरा गांव ही जैसे उमड़ा पड़ा था,बस ठकुराइन की अच्छी खबर सुनाने की देर थी।

ठाकुर जी ने पूछा:अरे कितनी देर है अब हमारे राजकुमार को आने में...जल्दी बताएं।

थोड़ी देर में,बच्चे के रोने की आवाज़ आती है और चारों ओर सन्नाटा छा जाता है। नज़रे नीची करके,एक दाई मां ने जान बख्शने का वचन लेकर खबर सुनाई कि बिटिया आई है...

ठाकुर जी की त्योरियाँ चढ़ गई-"असम्भव...ये कैसे हो सकता है,ये सब शोर रोक दो..कहते हुए,पैर पटकते वो चल दिये।"

फिर,एक अदद लड़के की ख्वाहिश में चार लड़कियां और आईं,उसके बाद जाकर एक बेटे का जन्म हो पाया था।इस तरह,हमारी धारावी के चार बहिन और एक भाई,और आ गए।उसकी माँ की हालत पति के दुर्व्यवहार और ज्यादतियों से पहले ही खस्ता थी बाकी कसर उसके पति की बिगड़ती आर्थिक स्थिति ने कर दी थी।पैसा,जैसे आता है,उससे तेज़ी से चला भी जाता है,एक अनजान बीमारी की चपेट में आकर सारे गांव की खुशहाली खत्म हो गई थी,र्सनग ही ये जमींदारी भी जाती रही।

रतनसिंह का व्यवहार अपनी पत्नि और बच्चियों के लिये वैसे ही सौतेला था ,अब तो उसने उनपर जुल्म ढाने में कोई कसर न छोड़ी थी,बस एक लड़का प्रेम ही था जिसपर वो अपना सारा लाड़ प्यार बरसाता था और वो भी दिनों दिन उसकी शह पाकर बदमाश बना जा रहा था।अगर कोई घर,परिवार की फिक्र करता तो वो थी धारावी,बहिन भाइयों में सबसे बड़ी तो थी ही,जिम्मेदार भी सबसे ज्यादा।अपनी माँ की बीमारी के चलते,घर का सारा काम उसीके जिम्मे था,पिता इतने कठोर ह्रदय कि खाने में जरा सी गलती होते,पीटने से भी न हिचकिचाते।

इसके साथ ही,बाहर के काम,कुछ आर्थिक मदद,सब उस अकेली जान के नाम थे।छोटा भाई प्रेम ,यूं तो उससे जीजी,जीजी,कहकर सारे काम,पैसे निकलवा लेता पर अगर पिता के आगे शिकायत लगानी हो तो कभी पीछे न रहता।

वो भी ,अपने नाम को सार्थक करती,मजबूत धरती की तरह,जल की धारा की तरह अडिग,सबको दोनों हाथों से प्यार लुटाती रहती बिना अपने हाथों के छाले देखे...बिना अपने दिल को लहूलुहान होने से बचाने का प्रयास किये।

एक बार तो हद हो गई जब उसके पिता का कोई पुराने रियासत के मालिक का अय्याश बेटा,उनके घर आया,पता चला कहीं पुलिस में नौकरी थी उसकी,अपनी ड्यूटी रिवॉल्वर के साथ आया था मानो उसके रुआब में उसके बदचलन होने के दाग धुल जाएंगे।धारावी सहमी सी रहती,कब कभी भी किसी काम से,कुछ देने वो कमरे में जाती,वो बेधड़क,बड़ी निर्लज्जता से उसे आंखों में ही पी जाता।उस दिन धारावी,रात को अपने कमरे में सोई थी कि किसी के हाथ उसे अपने शरीर पर रेंगते लगे,वो हकबका के उठी तो उसका मुंह कस के बन्द कर दिया गया।वो कसमसाती रही,खुद को स्वतंत्र करने के लिए,फिर उसके हाथ में वो लोडेड सर्विस रिवॉल्वर टकराई और छीना झपटी में चल गई ।

धारावी घबरा गई थी,विस्फारित नेत्रों से उस अनहोनी को देख रही थी,वो पुलिस वाला जमीन पर पड़ा तड़प रहा था और धारावी बिना रुके वहां से भाग उठी एक अनजान राह की ओर...

थोड़ी देर उसके पीछे शोर की आवाजें आई फिर सब शून्य हो गया।

धारावी को जब होश आया तो वो एक आश्रम में थी।उसकी सेवा कर रही स्त्री ने बताया कि वो बाबाजी के आश्रम में सुरक्षित है,कहीं ऊंचाई से गिरी थी ,लेकिन ठीक है वो।

इस आश्रम में आकर धारावी ने कुछ पल सुकून की सांस ली,उसे हर समय अपना अतीत याद आता,मन ही मन माँ और बहिनों के बारे में जानने की जिज्ञासा भी होती पर यहां कुछ पता देने से फंस सकती है,इस करके वो अपनी जुबान बन्द ही रखती कहीं ये जगह भी जाये हाथ से।

धारावी ने अपने मृदु व्यवहार और सेवा से सबका दिल जीत लिया था और सबकी चहेती बन गई थी वो।

एक बार,बसन्तोत्सव पर,वहां के आश्रम प्रमुख के मित्र,मुख्य अथिति बन कर वहां आये,धारावी की अप्रतिम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो वो अपने मित्र से उसका हाथ मांग बैठे।

धारावी ने पूरी कोशिश की ये समझाने की कि वो बहुत बदनसीब है,जिससे जुड़ती है वो बर्बाद हो जाता है,पर उसकी किसी ने एक न सुनी।

धारावी खुश होने की जगह,परेशान रहने लगी,उसका अतीत,उसके दिल पर रखी शिला की तरह उसे रुलाता,परेशान करता।

कई बार कोशिश की उसने कि उस सुदर्शन युवक धीरज को अपने बारे में सब कुछ बता सके पर वो तो जैसे कुछ सुनने,जानने को तैयार ही न था।तुम जैसी रूपसी,देवी लड़की जिस घर जाएगी वो घर उजालों से जगमगा जाएगा,बस मैं ये जानता हूँ और कुछ नहीं जानना चाहता।

धारावी को चैन कहाँ,अपने साथ इतना बुरा होते देख चुकी थी कि किसी पर विश्वास करने का प्रश्न नहीं उठता था।उसने शुरू से आखिर तक सारी बातें एक पत्र में लिखीं और दिल कड़ा कर,उस पत्र को,धीरज के कमरे में रख आई।वो पत्र,उड़कर,कमरे के कालीन के नीचे दब गया और धीरज उसे देख भी न सका।

अगले दिन भी,धीरज को वैसे ही मुस्कराते,बात करते देख,धारावी को सहज अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ,उसने अधीरता से पूछा-"आपने वो पढ़ लिया?"

धीरज, उसके प्यार में पागल सा हो चला था,बोला-"जिस क्षण से तुम्हे देखा है,पढ़ ही तो रहा हूँ.."

धारावी-"यानि,आपको कोई फर्क नहीं पड़ता.".

धीरज-"कहा न कोई फर्क नहीं किसी बात से..."

धारावी पर अब कोई ऑप्शन नहीं था सिवाय ये सोचने के कि शायद उसकी जिंदगी का कर्ज चुक गया है अब,वो भी कुछ पल रंगीन सपने बुन सकती है।

धारावी की आज शादी थी धीरज से,कितनी प्यारी लग रही थी वो दुल्हन बनकर,उसका रूप इतना निखरा था कि जो देखता दंग रह जाता...

बारात आने वाली थी,सबकी नजरें द्वार पर अटकी थीं कि बारात की जगह पुलिस आई और धारावी के हाथ मे हथकड़ी डाल दी गईं,धीरज उसे जलती नज़रों से घूर रहा था,उसका लिखा पत्र धीरज के हाथ मे था,ओह,तो तुम मेरे बड़े भाई की कातिल हो...निर्लज्ज लड़की,मुझसे धोखे से शादी करना चाहती थी...

धारावी अवाक,बिल्कुल चुपचाप,खाली खाली निगाहों से उसे देख रही थी,ये भी पहली बार हुआ होगा कि मुजरिम ने अपने बचाव में कोई तर्क न दिया,मानो उसे इंतज़ार था कि ऊपर बैठा वो खिलाड़ी ही उसके सारे कर्मो का लेखा जोखा कर रहा है,तो वो अपना दिमाग क्यों लगाए,ये आखिरी कर्ज़ चुकाना बाकी रह गया था न।



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