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Mrugtrushna Tarang

Children Stories Crime Fantasy

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Mrugtrushna Tarang

Children Stories Crime Fantasy

जिद्दी ननु

जिद्दी ननु

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आज भी ननु रिमझिम बारिश को लेकर बेहद खुश थी। बारिश वाली दोपहर को जी भर के जीना चाहती थी पहले की तरह। मौक़ा भी था, और दस्तूर भी। ननु की कमल माँ फैक्टरी गई हुई थी। और दादी, दादा भी घर से दूर किसी मंदिर में प्रवचन सुनने गए हुए थे।

 ननु घर में अकेली थी। बिल्कुल भी अकेली तो नहीं कह सकते। फिर भी गुड्डी दीदी की निगरानी में ननु कभीकभार अपनी मन मर्जी भी चला ही लेती थी। गुड्डी दीदी को चॉकलेट्स की रिश्वत देकर मनाने का आइडिया उसे अपने चाचू से ही तो सीखा था। चाचू भी तो अपना काम निकलवाने के लिए गुड्डी दीदी को नए ड्रैसिस और कान के झुमके लाकर देते थे।

और दीदी इस घर की सारी जानकारियाँ चाचू को देती रहती थी। ननु ने भी वही आइडिया अपनाया। और चॉकलेट्स देकर दीदी को उसके साथ बारिश में भीगने के लिए पटा लिया।

आज स्टडीरूम की बाल्कनी में बैठी ननु गार्डन में चारों तरफ फैली हरियाली की खूबसूरती का आनंद ले रही थी। तभी बारिश की बूंदें रिमझिम रिमझिम गिरने लगी। और वो वहीं रैलिंग पर पैर जमाये बारिश का आनंद लूटते बैठी रही।

तभी अचानक उसकी नज़र बगीचे की गिली मिट्टी पर बनते जा रहे पानी के गड्ढे पर जा टिकी। उस गड्ढे में गिरे गिलहरी के नवजात बच्चे की जद्दोजहद महेनत ने उसे भीतर से झकझोर दिया। वो फ़ौरन दौड़ी और उसे गड्ढे से उठा कर अपने सिक्रेट टैंट में ले गई। और उस गिलहरी के बच्चे को अपने सूखे टर्किश नैपकिन से पोछने लगीं। 

पहलेपहल तो वो गिलहरी का नन्हा सा बच्चा घबराने लगा। और हैरतअंगेज निगाहों से ननु को देखते हुए छटपटाने भी लगा। पर दूसरे ही पल ननु को उसकी देखभाल करते देख वह निश्चिंत हो गया। और उसने सुकूनभरी गहरी सांस ली।

ननु को गिलहरी के बच्चे के अधखुले मुँह को देख उसकी एवं खुदकी भूख का एहसास हुआ। ननु ने इधर उधर नज़र घुमाई पर उसके सिक्रेट टैंट में कुछ भी न मिला। उदास मन से ननु का चहेरा रुंआसा हो गया। तभी उसके नन्हें से दिमाग की बत्ती लपक झपक, लपक झपक करने लगी। उसका चहेरा चाँद देख मुस्कुराती कुमुदिनी सा खिल गया।

ननु ने एक हाथ से गिलहरी के नन्हें बच्चे को कस के पकड़ा और दूजे हाथ से अपनी हैंड बैग टटोलने लगी। नौ साल की नन्हीं सी ननु के हाथ भी तो नन्हें ही थे। जो बैग को टटोलने में छोटे पड़ रहे थे। फिर भी उसने तनतोड़ मेहनत की। और तभी कुछ कड़क चीज़ उसके हाथ लगी। खुशी खुशी ननु ने वो चीज़ को अपनी नाजुक उंगलियों से बाहर निकालने का प्रयास किया। पर नन्ही हथेलियों से उस वस्तु पर की पकड़ मजबूत न हो पाई। और वो वस्तु फिसलकर बैग के दूसरे कोने से टकराकर अंतिम छोर में जा चिपकी।

एक ही हाथ से काम ले रही ननु का नन्हा सा हाथ दुखने लगा। हाथ को दूसरी ओर झटककर ननु ने पापा जैसी स्टाइल में ही 'उफ्फ्फ' कहा। और खुद से ही खुद पर हँस दी। ननु को हँसता, मेहनत करता देख वो गिलहरी का नन्हा बच्चा भी मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। पर खाली पेट ने उसका साथ न दिया। और वो मुरझाने लगा।

तभी ननु ने अपनी बैग के बगल में छूट चुके कल वाले जामफल के कुछ फांहे देखें। तो उसका एक नर्म सा टुकड़ा गिलहरी के बच्चे के सामने रख उसे खिलाने लगी। गिलहरी का बच्चा उस फल के टुकड़े को इस तरह से चिपक गया, कि मानो, जैसे कोई नवजात बच्चा अपनी माँ की छाती से स्तनपान करने को उतावला हो उठा हो। 

ये सब नज़ारा ननु मंत्रमुग्ध होकर देखने लगी। और उसे कमल माँ की एहमियत का कुछ कुछ अंदाज़ा होने लगा। और अपनी कमल माँ भी याद आने लगी।

गिलहरी के उस बच्चे को 'स्वीटू' नाम से पुकारते हुए ननु उसे फल खिलाने लगी। बच्चा भी खुशी खुशी फल को चटखारे लेते हुए उसे चुसते हुए खाने में व्यस्त हो गया।

एक और ननु अपनी ज़िद्द को याद करके रुंआसी होने लगी। उसे रह रहकर अपनी माँ कमल की बातें याद आने लगी। चार माह पूर्व भी ऐसा ही कुछ अनबना सा हुआ था। और उसने पापा के जाने के बाद सौतेली माँ कमल को दो टूक सुना दिया था। और भूखी ही बाल्कनी में सोने चली गई थी। माँ कमल ने बहोत कोशिश की ननु को मनाने की, समझाने की। पर वह एक न मानी और रूठकर चली गई अपनी दादी के पास।

वह दादी, जिसने ननु को लाड़ लड़ाते हुए ज़िद्दी बना दिया था। कोई भी सब्जी न खाते हुए सिर्फ आलू ही खाती रहती। और आये दिन हर दो महीनों में दवाखाने का रुख़ करवाती। दवाइयों की आड़ असर और कमज़ोरी के चलते ननु उत्साहित न रह पाती। चिड़चिड़ापन उसका बढ़ता ही चला जाता। ऊपर से पढ़ाई के बदले सिर्फ और सिर्फ कार्टून चैनल देख देख कार्टून कैरेक्टर 'शिन शेन' सा व्यवहार करने लगती। उल्टे मुँह जवाब देना, बदतमीज़ी करना आम बात हो गई थी।

कभीकभार ननु को अपने राघवन पापा के दोस्तों से मिल रहे तोहफ़े भी बहोत याद आ जाते। उसमें भी सुबोध अंकल उसके सबसे प्यारे वाले अंकल थे।

छुटपन में सुबोध अंकल को ननु सुबू अंकल कहके पुकारती थी।

सुबू अंकल यानि कि, सुबोध, कमल माँ और पिता राघवन का जिगरी दोस्त। राघवन के स्वर्गवासी होने के बाद भी सुबू राघवन के पेरेंट्स के साथ साथ ननु और कमल की उतनी ही देखभाल करता था, जितनी की राघवन के होने पर किया करता था।

पर ननु के ग्रेंड पेरेंट्स और स्पेशयली उसके चाचू जॉय अंकल को सुबू पसंद था। लेकिन, अपने कामकाज के लिए। पर उसका ननु और कमल की देखभाल करना या उनका ख़याल रखना उन्हें कतई पसंद नहीं आता था।

सुबू के रहते उनके इरादों पर पानी फिरने का उन्हें डर सा लगा रहता था। कमल को फैक्ट्री के साथ साथ सरकारी कामकाजों में आगे बढ़कर हेल्प करने का उसका ज़ज्बा राघवन के पेरेंट्स और उसके भाई को खलता था।

दूसरा, ननु को भी कमल के खिलाफ न भड़काने की हिदायतें देता रहता था। उसी में,

एक दिन तो हद ही हो गई। ननु ने दादी के घर में टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलना शुरू किया। और तीसरे या चौथे बॉल में ही हॉल में रखा टीवी स्क्रीन तोड़ दिया। सुबू अंकल ने ननु को घर में नहीं खेलना चाहिए ऐसा समझाया और दादी को कमल का उसमें क्या दोष ऐसा कहा।

पर, दादी ने सुबू की एक न सुनी। उनके मुताबिक राघवन के रोड एक्सीडेंट में कमल का ही हाथ था। न की उसके बेटे जॉय का।

तो, दादी ने झपाक से ननु की सौतेली माँ कमल को फोन पर बहोत खरी खोटी सुनाई। और नया टीवी खरीदकर देने की डिमांड भी की। पर ननु को एक शब्द भी नहीं सुनाया। (ताकि ननु के मन से उसकी दादी का मोह चकनाचूर न हो जाये। और अगर गलती से कमल ने कुछ कह दिया, तो, वो सौतेलेपन के लेबल से एक और बार चिपका दी जाए।) जिससे ननु की शह बढ़ती चली गई।

और शिष्टाचार सिखाती माँ कमल सौतेली पोर्ट्रेट होने लगी। दूसरी ओर दादी का पूजा पाठ उसे अखरने लगा। और उसीके चलते ननु प्रभु भक्ति से चिढ़ने लगी। अपनी जिद्द पूरी करने के लिए कोई भी हद तक गुजरने लगी। फिर चाहे वो फल सब्जी खाने की बात हो या आइसक्रीम न खाने की बात हो। मन में आया कि वो तुरंत 'पूरा होना ही चाहिए' का आलाप बजाने में कोई कसर बाकी न रखती ननु। और जिद्द पूरी न होने पर उधम भी मचाती। इतना की, सामनेवाला उसके सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो जाये।

 अपनी मनमानी करने में एक दिन ननु कमल माँ से रूठ कर घर से भाग गई। चाचू के गुलु गुलु कर रही गुड्डी दीदी को चकमा देकर ननु घर के पिछवाड़े की दीवार को लाँघकर गार्डन में आ पहुँची। और वहीं से मैदान क्रोस करके रेलवे ट्रेक पर अपने नन्हें कदमों से कदमताल करती हुई चलती जा रही थी।

तकदीर अच्छी थी या बूरी, सुबोध की गाड़ी वहीं रेलवे क्रॉसिंग पर खराब हुई। और टैक्सी पकड़ने के इरादे से वो रेलवे क्रॉसिंग पार करने के लिए आगे बढ़ा। ट्रेन को आने में वक्त था, इसलिए रेलवे क्रॉसिंग को बंद रखा था। बार बार घड़ी में टाइम देखते हुए सुबोध की नजर यकायक रेलवे ट्रेक पर गई। और उसने ननु को ट्रैक पर बार्बी डॉल वाली हैंगिंग बैग और मैचिंग हेरबैंड के साथ खेलते हुए जाते देखा।

 ट्रेन को आने में अभी भी थोड़ा समय शेष था। सुबोध ने कमल को फोन लगाया। पर लगातार बिज़ी आ रहा था। मेसेज सेंड करके सुबोध उसी रेलवे ट्रेक पर दौड़ने लगा, जहाँ उसने कुछ वक्त पहले ही ननु को देखा था। उसके ट्रेक पर पहुँचने से पहले ही भिवंडी के लोकल गुंडे कुंडार के नेटवर्क ने ननु को किडनैप कर लिया। और एक गुनी में भरकर कार की डिक्की में डाल ट्रेक कंट्रोलिंग केबिन में लौटे। और वहाँ बैठे अपने बॉस मनप्पा, कुंडार गुंडे के राइट हैंड को सारा मामला समझाने लगे। 

सुबोध को ननु के किडनैपिंग का अंदाज़ा न था। पर यकायक ट्रेक पर से गायब कैसे हुई ये पता लगाने के लिए जब वो ट्रेक से सटे केबिन में झांकने लगा। तो उसे टेबल के नीचे ननु की बार्बी डॉल वाली हैंगिंग बेग और हेरबैंड दिखाई दी। 

ननु की हैंगिंग बेग देखने के बावजूद उसे नजरअंदाज कर सुबोध केबिन में कम्प्लेन लिखवाने के बहाने से अंदर गया। और अन्जान बनकर उनकी सारी बातें सुन ली। नॉर्मल बिहेव करते हुए अपने लैपटॉप बैग खोने का झूठा कम्पलेन लिखवाकर सुबोध बाहर की ओर लपका।

कुंडार गुंडे का राइट हैंड मनप्पा ननु के बदले में उसके घरवालों से मोटी रकम वसूल करने की तरकीबें सोचने लगे।

 रेलवे ट्रेक के किस ओर ननु को किडनैप करके रखा गया होगा। ये सोचने में वक्त बर्बाद न करते हुए सुबोध ने अपने ड्राइवर को कन्ट्रोलिंग केबिन के बायीं ओर हर एक कार को ढूँढ़ने लगाया। और खुद दायीं ओर ढूँढ़ने लगा।

एक के बाद एक ऐसे चार से पाँच ट्रेनों की आवनजावन में सुबोध को ननु को ढूँढ़ने का मौका मिल गया। और उसने ननु को ढूँढ़ निकाला।

ननु बेहोशी की हालत में भी अपनी कमल को पुकार रही थी। उसके सुबू अंकल ने पुलिस को इत्तला करके ननु को टैक्सी में बिठाया। और अपने ड्राइवर को गाड़ी रिपेर कर घर लौट आने को कहा।

 ननु को लेकर सुबोध सीधे कमल की फैक्ट्री पर पहुँचा। कमल को सारा वाक़्या समझाकर ननु को अपने नेरल वाले फार्म हाउस पर ले गया।

उधर ननु के घर पर किडनैपर ने दस करोड़ रुपए की डिमांड की। और चौबीस घंटे की मोहलत देते हुए पुलिस को इन्फॉर्म न करने की हिदायतें भी दी।

 ननु के दादा, दादी और जॉय चाचू ने कमल पर ही इल्ज़ाम लगाया। और ननु को छुड़ा लाने की जिद्द करने लगे।

त्योरियाँ चढ़ाए कमल बुदबुदाई, "उल्टा चोर कोतवाल को डंडे !"

पुलिस कमिश्नर को करके कॉल होमस्क्वॉर्ड टॉमी को बुलवा लिया। घर के सारे सीसीटीवी फुटेज की जाँच भी करवाई। 

जॉय चाचू के सेल फोन्स के रेकॉर्ड्स भी चेक करवाये गए। और मौकाए वारदात पर की लोकेशन्स भी चेक करवाये गए।

तफ्तीश जोर शोर से होने लगी। गुड्डी की चोरी पकड़ी गई। पुलिस के डंडों ने उसका मुँह खुलवा ही दिया।

जॉय की जालसाझी पकड़ में आ गई। और स्व. राघवन के पेरेंट्स की बदनीयत भी उजागर होती चली गई।

ननु को अपनी नादानी का एहसास देर सवेर हो ही गया। पर अपनी जिद्द के आगे घुटने नहीं टेके। और ना ही कमल से माफी मांगी।

 पर मन ही मन में ठान लिया कि, अपना लक्ष्य साधने हेतु कमल के संग रहेगी जरूर। पर मोह माया के जंजाल में फंसेंगी नहीं कभी।


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