झोले का रहस्य
झोले का रहस्य
आज अपार्टमेंट में चहल पहल दिखी । लगभग हर फ्लैट में कोई न कोई हाथ में कुछ लिए दाखिल होता दिखा । उनके साथ उत्साहित बच्चे भी नजर आये । अमूमन इस तरह का दृश्य गणेश चतुर्थी के दिनों होता था । तब अपार्टमेंट में हर कोई इसी तरह गणेश जी की प्रतिमाएँ हाथों में उठाये, अपने अपने घरों में जयकारा लगाते हुए प्रवेश करते । लेकिन आज वे कोई जयकारा नही लगा रहे । माथे पर सलवटें बनी तो ध्यान आया अभी तो जून चल रहा है, गणेश जयंती अगस्त-सितम्बर में पड़ता है ।
अपार्टमेंट में ऊपर से झांकते हुए, नीचे वाले फ्लैट के जोशी जी को आवाज दिया - "अरे भाई साहब आज कौन सा पर्व है .... क्या लेकर आए हैं ?" जोशी जी गर्दन ऊपर उठाते हुए बोले - "अरे आपका चश्मा कहाँ गया .... ठहरिए ... ऊपर आता हूँ ।"
"अरे हाँ ... चश्मा तो लगाया ही नही ।" - अंदर जाकर टेबिल पर रखे चश्में को फूंक मार कर आँखों पर चढ़ाया ही था, तभी छोटे जोशी जी मतलब उनका बेटा उल्लासित भाव से अंदर दाखिल हुआ और बोला - "गुड मार्निंग अंकल .... ।"
"गुड मार्निंग ... कैसे हो नन्हे जोशी ... आज पाप के साथ क्या खरीद लाए ?" - इतना सुनते ही वह चौंक पड़ा, बोला - "अंकल आपको पता नहीं .... अच्छा ये बताईये आज कौन सी डेट है ?"
"5 जून ... तो क्या ?" - जवाब सुनकर वह चहकते हुए बोला - "वही तो ... आज विश्व पर्यावरण दिवस है .... सब पौधे खरीदकर ला रहे ... गमले में ....ये देखिए ।" उसने दरवाजे की तरफ इशारा किया जहाँ से जोशी जी अंदर आ रहे थे । जोशी जी के हाथ में एक सुंदर सा गमला था जिसमें तुलसी का पौधा लगा हुआ था ।
जोशी जी पौधे को पास लाकर दिखाते हुए बोले - "है न क्यूट .... आज तो सभी पौधे मुंहमांगे दाम में बिक रहे .... जब से देश में आक्सीजन की किल्लत मची ... हर कोई पौधा खरीदने के लिए उतावला नजर आ रहा .... आप नही गये ?" उनके बेटे के चेहरे पर भी सवालिया निशान दिखे ।
उनको कोई जवाब दिया जाता उसके पहले ही घर के अंदर से छबीली एक झोला लेकर बाहर आई । छबीली नन्हे जोशी से उम्र में एक साल बड़ी थी । दोनो बच्चों ने एक दूसरे को देखकर हाॅय कहा । छबीली जोशी जी को प्रणाम की तो वे जीते रहो का आशीर्वाद देते हुए बोले - "अरे लिटिल डाॅल इतना बड़ा झोला लेकर कहाँ जा रही हैं ?"
छबीली बड़े ही भोलेपन से मुस्कुराते हुए बोली - "वहीं ... जहाँ रोज सुबह डैडी के साथ जाते हैं ... ।" जोशी जी ने एक पल के लिए दिमाग पर जोर डाला, फिर बोला - "अच्छा ... अच्छा .... मार्निंग वाॅक के लिए .... पर इस झोले में क्या है ?"
छबीली के बताने के पहले ही वे झोले में झांक बैठे । अचानक से वे नाक भौं सिकोड़ते हुए बुरा सा मुहँ बना लिए । तभी नन्हे जोशी ने भी उत्सुकतावश झोले के रहस्य को जानने के लिए अपना सिर झुकाया और छीः छीः कहते हुए दूर हट गया ।
जोशी जी आँखे बिचकाते हुए बोले - "चूसे हुए आम और जामुन की गुठलियाँ .... माजरा क्या है ?" छबीली झट से बोली - "इन गुठलियों को हम दूर नदी के पास उजाड़ जंगल में बिखेर आते हैं ... फिर इनमें से कुछ पौधे निकल आते हैं ।"
"अभी कितने पौधे निकल आये होंगे ?" - हैरानी से नन्हे जोशी ने पूंछा । छबीली बताई - "ढ़ेर सारे .... पिछले साल की गुठलियों से निकले कुछ पौधे तुम्हारी ऊँचाई वाले हैं कुछ मेरे कद वाले ।"
छबीली की बात सुनकर जोशी जी खुश होते हुए बोले - "ये तो बहुत अच्छी बात है .... अब हम भी रोज मार्निंग वाॅक में चला करेंगे ... तुम्हारी तरह झोला भरकर .... क्यों नन्हें ?"
नन्हें जोशी उत्साहित होकर घर की तरफ भागते हुए बोला - "मैं चला आम और जामुन चखने ।" वहाँ मौजूद सभी लोग हंस पड़े ।
