जगन्नाथ मंदिर,पुरी

जगन्नाथ मंदिर,पुरी

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"बच्चों, आज हमारी चर्चा का विषय रहेगा जगन्नाथ मंदिर, पुरी का। यहां के चमत्कारिक तथ्य बेहद चौंकाने वाले हैं। इसके साथ ही साथ हमारी दैवीय शक्तियों पर आस्था और भी दृढ़ हो जाती है, जब हम इन चमत्कारों के पीछे छिपे रहस्यों को सुलझा नहीं पाते।" "चाचा जी, ये कौन से रहस्य हैं और क्या चमत्कार हैं, हम सभी बेहद उत्सुक हैं जानने के लिए! भुवन ने आश्चर्य से आँखें चमकाते हुए सब की ओर देखकर कहा।

" भुवन, यहां एक ही नहीं अनेक चमत्कारिक तथ्यों का खज़ाना है। सर्वप्रथम तो इसके ऊपर लगी हुई पताका जो हमेशा हवा की विपरीत दिशा में उड़ती है। दूसरा, इस मंदिर के ऊपर से कोई भी पक्षी नहीं उड़ता। मानो,' नो फ्लाई ज़ोन' हो किंतु ऐसा नहीं है। यह लगता है दैवीय शक्तियों का ही संकेत है।"

" यह तो सचमुच आश्चर्य की बात है, हवा की विपरीत दिशा में, पताका का लहराना !"हर्ष ने कहा।

" हां, अगला सुनो, जब मंदिर के सिंहद्वार से प्रवेश करते हैं और भीतर चलते हैं तब समुद्र की लहरों की आवाज़ सुनाई देती है, मगर यदि दाएँ या बाएँ मुड़ कर सीधे चलने लगते हैं, तो यह आवाज़ सुनाई देना बंद हो जाती है।"

"क्या अनुभूति होती होगी, सचमुच! उदिता ने मुंह में लगभग सारी उंगलियां डालते हुए आश्चर्य प्रकट किया।

"इसके अलावा बच्चों, यहां जो प्रतिदिन प्रसाद बनता है, चाहे भक्त कम हो या अधिक प्रसाद की उतनी ही मात्रा बनाई जाती है किंतु कभी किसी को कम नहीं पड़ता।"

" वाह, ऐसा तो मेरी नानी मेरी मां के लिए कहती हैं कि जिस घर में रसोई में भोजन कम ना पड़े, वह स्त्री अन्नपूर्णा होती है, तो इसका मतलब मंदिर में भी किसी अन्नपूर्णा का ही आशीर्वाद है।" कलिका ने ‌मुस्कुराते हुए सब की ओर देखकर कहा।

"तुम्हारी बात सच हो सकती है, कलिका। इसके अतिरिक्त प्रसाद 7 पात्रों में बनाया जाता है, एक के ऊपर एक रखकर और आश्चर्य की बात है कि सबसे ऊपर के पात्र में प्रसाद जल्दी पक जाता है और क्रमशः शेष में पकता है।"

"वाह, यह तो सचमुच अद्भुत बात है, जबकि सबसे नीचे वाले में पहले बन जाना चाहिए!" जलद ने कहा। "हां, हमारे भारत में न जाने कितने दैविक चमत्कार हैं जिनसे हम आज भी अनभिज्ञ हैं।"

"चाचाजी, अब इस मंदिर के दर्शन करने की तो तीव्र इच्छा हो रही है। अब दादी को तैयार करना होगा।"जोश भरी आवाज़ में अनिरुद्ध ने कहा।

"बच्चों, मुझे आशा है कि आप जो मुझसे सुनते हैं उसे विस्मृत नहीं करते और घर जाकर घर वालों को और दोस्तों को सुनाते होंगे। इससे अपना ज्ञान भी बढ़ता है।"

"निश्चय ही, चाचाजी।" सभी ने समवेत स्वर में कहा।

" तो फिर भी आज के लिए इतना ही, कल फिर मिलेंगे।"

" धन्यवाद ,चाचा जी।"



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