इंतज़ार की अब मेरी बारी है।

इंतज़ार की अब मेरी बारी है।

3 mins
217


माँ….

अगर मेरा जिस्म छोड़ रही जहन में,                                               

वो आखिरी याद भी माँ तुम्हारी होगी,

तो फिर वक़्त को मरहम बनाकर मेरी रूह,                                                       

तेरी यादों के साये से आज़ाद कैसे होगी?


आज़ादी तो कहने को है आज़ाद तो असल में होना ही नहीं चाहता हूँ तुमसे या तुमसे जुड़ी किसी भी याद से, कभी भी और मुझे मालूम है ये पता भी होगा तुम्हें माँ। वो तुम ही तो थी जो मेरे मुँह खोले बिना ही मेरी जरुरत को मुझसे भी अच्छी तरह से समझने की कला में माहीर थी माँ।

वो तुम ही तो थी जो मेरे छोटे से दाँत दर्द को भी गला कटने जैसे दर्द सा अनुभव कराती थी सभी को।

हाँ वो तुम ही तो थी जो मेरी लाख ग़लती होने के बाद भी मेरे रो मात्र देने पर मुझे गले लगाकर रो पड़ती थी मेरे साथ माँ।


फिर एक वर्ष पूरा हो गया तुम्हारे बिना माँ, कैसे कहूं की अब तुम्हारी यादों की पकड़ ढीली पड़ने लगी है मेरे दिल पर, जबकि आज भी हर दिन खुद को तुम्हारे न होने का एहसास दिलाने का असफल प्रयास करता हूँ मैं।

न चाहते हुए भी याद कर ही लेता हूँ मैं तुमको माँ, कैसे मुक्त होऊं मैं तुम्हारी यादों से क्या कोई तरीका शेष नहीं है? जो मुझे इस तड़प से राहत दिला सके माँ।

बीतने वाला हर एक पल मुझे तुमसे दूर कर रहा है अगर तुम ऐसा समझती हो और बीते २ वर्षों में मैं भूल गया हूँ तुम को तो गलत है ये माँ।

कैसे तुम अब किसी को याद नहीं करती? जबकि हमारे साथ रहते हुए तुम सब को याद करने में सबकी खबर लेने में ही समय बिताती थी?

समझ मेरी धोखा कैसे खा जाती है तुम्हारी याद आते ही माँ? मैं क्यों नहीं समझा पा रहा हूँ अपने आप को की तुम को महसूस करने का एक मात्र तरीका तस्वीरें ही रह गई हैं मेरे पास?

क्यों मुझे आज भी लगता है की किसी न किसी दिन तुम जरूर चली आओगी, मुझे समय पर खाने,रविवार को जल्दी नहाने को कहने के लिए माँ।


क्यों सब कुछ हाँ सब कुछ ठीक होने के बाद भी कही न कही हमेशा कुछ कमी सी महसूस करता हूँ मैं?

क्यों हर तकलीफ़, हर दर्द मुझे तुम्हारी ही याद दिलाता है? ऐसा क्या था तुममे माँ जिसकी कमी पूरी नहीं हो पा रही है?


जितना समेटता हूँ इसको

उतना भी बिखरता जरूर है।

दिल है ये दिमाग नहीं माँ

समझाने पर मुकरता जरूर है।।


सब को जाना है मैं भी चला ही जाऊँगा किसी दिन ये सब जानते हुए भी मैं क्यों अत्यंत पीड़ा महसूस करता हूँ, जब ध्यान आता है की तुमसे रिश्ता ही खत्म हो गया इस जन्म का? क्या इतने कम दिनों का था तुम्हारा लगाव मुझसे माँ? 

क्या तुम्हारा मन नहीं करता हम सबसे मिलने का दोबारा? क्या तुम नहीं चाहती मिलना हमसे माँ?

क्यों मैं ये अच्छी तरह जानते हुए भी की दुनिया से जाने के बाद कोई कभी नहीं आता, मैं इंतज़ार करता हूँ तुम्हारा आज भी?

नहीं हुई है ख़त्म बाकी दस्तूरे अभी सारी है,                            

भले न चाहे तू माँ जश्न फिर भी जारी है।

पहले एक बार तूने किया था मेरा लेकिन,

 तेरा इंतज़ार करने की अब मेरी बारी है।



Rate this content
Log in