"ईश्वर है यहीं-कहीं"
"ईश्वर है यहीं-कहीं"
मैं नींद में बड़बड़ा रही थी - "अरे! कोई इन दो बच्चों को बचाओ, ये कैसे छज्जे पर चल रहें हैं!" सुबह हुई और मैं काम में ऐसी उलझी की मैं सपने के बारे में भूल ही गई। परन्तु शाम को जब मैं खाऩा बना रही थी, तो विनोद सीढ़ियों में हांफते हुए भाग रहा था । मैंने पूछा क्या हुआ ? उसने कोई जबाब नहीं दिया। वह छत पर पहुँच गया और वह हरित और राधिका को डांटते हुये पकड़ कर लाया और मुझे हरित को सौंपते हुये कहने लगा - "इसे सम्भाल कर रखा करो, ये दोनों छज्जे पर चल रहे थे। भला हो उस आदमी का जिसने इन दोनों को छज्जे पर चलते हुये देख लिया और हमें बताने आ गया वरना पता नहीं आज क्या होता। हम तो देखकर दंग रह गये थे, मगर हम आवाज लगाते तो शायद ये गिर जाते इसलिये हमने नीचे चद्दर तानी और हम भाग कर ऊपर आये, किसी अनहोनी की आशंका ने हमें घेर लिया था। घर में ही बल्ब बनाने की फैक्ट्री थी, वहां मजदूर थे, वरना क्या होता।"
हुआ यूँ की राधिका की चप्पल छज्जे पर गिर गई, जिसको उतारने के लिये हरित छज्जे पर उतरा, वापिस चढ़ा, और फिर दोनों छज्जे पर उतरे जिसका परिणाम आपके सामने हैं । मैं हरित को अपने कलेजे से लगाये सिसके जा रही थी क्योंकि मेरा फैमिली प्लानिंग का आपरेशन हो चुका था, किसी अनहोनी की आशंका से मेरे रोंगटे खड़े हो गये थे । मेरे लिये वह फरिश्ता बन कर आया मैं उसे धन्यवाद दे रही थी, जिसने मेरी बगिया उजड़ने से बचा ली थी और मैं डर के मारे कांप रही थी और सोच रही थी मारने वाले से बचाने वाला बड़ा हैं और ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी। वह अपने दूत को भेज देते हैं हमारे काम बनाने के लिये, बस समझने भर की देर है। इसी लिये मैं कहती हूँ "ईश्वर है यहीं कहीं"।