"ईश्वर है यहीं - कहीं"
"ईश्वर है यहीं - कहीं"
मेरे बड़े नाना लालजी मल पैदल किलोई से उगाही करने दूसरे गांव जा रहे थे। रास्ते में उन्हें प्यास लगी। उन्हें कहीं कुछ दिखाई नहीं दिया। उन्होंने कहा - जेडभगवान, अगर मुझे पानी नहीं मिला तो मैं प्यासा ही मर जाऊंगा।" इतने में उन्होंने नज़र दौड़ाई तो उन्हें एक पेड़ दिखाई दिया। वह वहाँ गये, थके हुए तो थे ही, लेट गये। लेटते ही उन्हें नींद आ गई। उन्हें सपने में शिव - शंकर भगवान् ने दर्शन दिये। वह उनसे कहने लगे, मैं गांव से दूर तालाब के पास हूँ। हाली पाली मुझे पत्थर समझकर मुझ पर अपनी दराती घिसते हैं, सो मेरे सिर पर गड्ढा पड़ गया है, मैं बहुत तकलीफ में हूँ, जहां तुम लेटे हो, मैं वहीं तुम्हारें आस - पास ही हूँ। तुम मुझे उनसे निजाद दिलवा दो। वहां मेरा मंदिर बनवा दो। तुम्हारें औलाद नहीं हैं, मैं तुम्हें औलाद से नवाजूँगा। नानाजी उल्टे पाँव घर की ओर चल दिये। गाँव आकर उन्होंने गाँव वालों को यह किस्सा सुनाया। गाँव वालों ने वहां चलकर खुदाई करवाने की सोची और वास्तव में जब वहां खुदाई की तो शिव प्रतिमा वास्तव में वहां विराजमान थी। परन्तु गाँव वालों का कहना था कि यदि यहाँ मंदिर बनवाया गया तो यहाँ इतनी दूर पूजा - अर्चना करना बहुत दूभर हो जायेगा सो गांव के पास ही मंदिर का निर्माण करवाया जाये। लेकिन रात को फिर नानाजी को सपने में शिव भगवान जी ने दर्शन दिये और कहा कि मैं वहां से कहीं नहीं जाऊँगा। मेरे मंदिर का निर्माण वहीं होगा। नानाजी ने सुबह गाँव वालों को ये बात बताई तो तय हुआ कि मंदिर वहीं बनवाया जायेगा।
मंदिर का निर्माण लॉ लालजी मल पुत्र बख्शीराम ने सम्वत - 1832 करवाया। मेरे नानाजी को संतान सुख प्राप्त हुआ, जिनका नाम फखीरा, फखीरा को श्योप्रसाद, श्योप्रसाद के जगराममल, जगराममल के चिरंजीलाल, चिरंजीलाल के बशेशरलाल, बशेशरलाल के प्यारेलाल, इन सभी ने मंदिर के निर्माण तथा मंदिर सेवा में अपना जीवन लगाया तथा प्यारेलाल जी ने अपने पूर्वजों की याद में शिव - शंकर भगवान के कलश पर सोने का झोल व भवन को नया रूप दिया तथा चारों तरफ चबूतरा बनवा कर उसके चारों तरफ 3.5 फुट की दीवार बनवायी। सम्वत 2043 उन्हीं का 200 - 250 लोगों का भरा - पूरा परिवार है। उनके दर से कोई खाली झोली नहीं जाता। वह कोकाले शिव भगवान के नाम से जाने जाते हैं। हम सब उनके अनन्य भक्त हैं और उनकी नज़र हम पर बनी हुई हैं। उनके मंदिर की ख्याति दिन - रात बढ़ती जा रही है। "माँ मुरादें पूरी करदे, हलवा बाटूंगी" वाली कहानी हैं। सावन माह में हरिद्वार से लाकर वहां कावड़ भी चढ़ती है। बहती है गंगा, लागे तू गोता, शिव - शंकर चाहे तो क्या नहीं होता।
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