हर बार मै ही क्यों?
हर बार मै ही क्यों?
हाँ हर बार मै ही क्यों ? क्यों उठती है हर बार मुझपर ऊंगली,क्यों ठहराया जाता हैं हर गलत बात पर मुझे जिम्मेदार..
औरत जिसे समाज देवी,शक्ति, लक्ष्मी ,सरस्वती का नाम देते है, पर मानता किस हद तक है?
हर बार उसे प्रताड़ित किया जाता हैं। नीचा दिखाया जाता हैं ।पर वह चुप रहती हैं कभी माता पिता के इज्ज़त के डर ,से तो कभी समाज के डर से।अगर वह जबान लड़ाती है तो बद्तमीज और चुप रहती हैं तो गंवार..
पति शराबी है,जुआरी है, मारपीट करता है.. तो कहेगे इतनी भी अक्ल नही की पति को बस में कैसे रखें।माँ-बेटे की आपस मे बनती नही तो "इसी ने जादू टोना किया है मेरे बेटे पर ।" क्या कहना ऐसे लोगों को पच्चीस साल लग गये माँ को अपने बच्चे को ना सुधारने मे और बीवी को चार दिन भी नहीं लगे बिगाड़ने मे यानि पच्चीस साल की मेहनत व्यर्थ हुई।...."तो कैसे हुई वह शक्ति का रूप?"
नई नवेली बहू घर आई महीने भर बाद बिजनेस में नुकसान हो गया। तो सारा दोष बहू पर मढ़ दिया.."इस कुल्टा के तो कदम ही घर में अशुभ है।" धंधे मे नुकसान बहू के आने से....."तो कैसे हुई वह लक्ष्मी का रूप?"
पत्नी ने सुसाइड किया.. तो कहेंगे ऐसी ही थी चरित्रहीन कोई चक्कर होगा इसिलिए आत्महत्या कर ली।अगर पति ने सुसाइड कर लिया ..तो कहेंगे क्या करें बेचारा बीवी से परेशान था चालचलन ठीक नहीं है उसके।यानी दोष किसी का भी हो दोषी सिर्फ औरत हैं ऊंगली उठेगी औरत के चरित्र पर...."तो कैसे हुई वह देवी का रुप ?"
बेटी का व्रत.है... माँ पहले उसे खाना देती है फिर खुद खाती है।लेकिन बहू तो बहू होती है चाहे व्रत हो या बिमार उसका फर्ज तो यही बनता है सबको खिलाकर खुद खाये। खुद की बेटी मीनी स्कर्ट टॉप मे भी मस्त लगती है , पर बहू के सर से पल्लू भी गिर जाये तो उसकी माँ के संस्कारों पर ऊंगली उठती है......"तो कैसे हुई बहू बेटी एक समान?"
अगर बच्चों से कुछ गलती हो जाये,परीक्षा में फेल हो जाए तो भी जिम्मेदार माँ ही है..."घर मे बैठी बैठी करती क्या हो अगर बच्चे संभाले नहीं जाते तो पैदा ही क्यों किये।"तेरी माँ.तो चाहती ही नहीं तू आगे पढे, पढ-लिखकर आगे बढे...."तो कैसे हुई वह बच्चों की पहली गुरु?"
अगर हर बात के लिए दोषी औरत ही है तो क्यों नवाज़ते हो उसे इतने बड़े बड़े खिताबों से...देवी, शक्ति, लक्ष्मी।
नही बनना मुझे देवी ,ना लक्ष्मी ना सरस्वती।मुझे बस औरत ही रहने दो ।मेरा सम्मान ना करो कोई बात नहीं पर मेरे आत्मसम्मान को तो सुरक्षित रहने दो।
टूट चुकी हूं मैं अपने आप को साबित करते करते,
मिट चुका है मेरा अस्तित्व सब सहते सहते।पल भर मुझे भी चैन की सांस लेने दो।
कभी तो मुझे भी अपने हिस्से की जिंदगी जी लेने दो।।
