Padma Agrawal

Others

3.6  

Padma Agrawal

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हनीमून

हनीमून

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सुधाकर जी और उनकी पत्नी मीरा एकाकी एवं नीरसता भरा जीवन व्यतीत कर रहे थे। वह अपनी इकलौती बेटी मुग्धा की शादी करके उसे ससुराल के लिये विदा कर चुके थे, परंतु जिद्दी बेटी ने जरा सी बात पर नाराज़ होकर पिता से सारे रिश्ते तोड़ लिये थे। यही वजह थी कि पति पत्नी के बीच में तनाव बना रहता और बेटी के वियोग ने दोनों को असमय बूढ़ा बना दिया था।

आज सुबह लगभग 4 बजे सपने में बेटी को रोता देख सुधाकर जी की आँख खुल गई थी। उनके मन में अंधविश्वास था कि सुबह का सपना सच होता है, इसलिये अनिष्ट की आशंका से उनकी आँखों की नींद उड़ गई थी। वह पत्नी से बेटी को फोन करने को भी नहीं कह सकते थे क्योंकि इसमें उनका अहम आड़े आ रहा था। बेटी के जिद्दी और अड़ियल स्वभाव के कारण वह डरे हुये रहते थे कि एक न एक दिन अवश्य वह तलाक का निर्णय करके लुटी पिटी सी यहां आकर खड़ी हो जायेगी ।

“मीरा मेरा सिर भारी हो रहा है, एक कप चाय बना दो। “

“अभी तो सुबह के 6 ही बजे हैं, आप न सोते हैं न ही मुझे सोने देते हैं।‘’

“तुम्हारी लाडली को सपने में रोते हुये देख कर मन खराब हो गया है।‘’

“आपने उसके लिये कभी कुछ अच्छा सोचा है, जो आज सोचेंगें ? हमेशा नकारात्मक बातें ही सोचते हैं, इसलिये सपना भी बुरा बुरा दिखा होगा।‘’

“तुम्हारी नज़रों में तो मैं हमेशा से गलत ही रहता हूं। “

“आपकी वजह से ही न तो वह अब यहां आती है, न ही वह आपसे बात करती है। तब भी आप बुरा सपना ही देख रहे हैं।‘’

“तुमने मेरे मन की पीड़ा को कभी नहीं समझा ?’’

उदास मन से वह उठे और सुबह की सैर के लिये बाहर निकल गये। तभी मीरा जी का मोबाइल बज उठा था। उधर से बेटी की चहकती हुई आवाज़ सुन कर वे बोलीं ,’’ इस एनिवर्सरी पर आशीष ने कुछ खास गिफ्ट दिया है क्या? बड़ी खुश लग रही हो।‘’

“ नहीं मां, वह तो मुझे हमेशा गिफ्ट देते रहते हैं, इस बार का गिफ्ट तो उन्हें मेरी तरफ से है।‘’ वह शरमाते हुये बोली थी , ‘’मां हम दोनों इस बार सेकण्ड हनीमून के लिये मॉरीशस जा रहे हैं।‘’

तभी नेटवर्क चले जाने के कारण फोन डिसकनेक्ट हो गया था। मीरा जी के दिल को ठंडक मिली थी। उनके मन को खुशी हुई थी कि देर से ही सही परंतु अब बेटी ने पति को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया है। वह पति को बेटी हनीमून पर जाने की बात बताना चाह रही थी परंतु वह अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त होकर भूल गई थीं।

रात के लगभग साढे दस बजे थे, सुधाकर जी आँखें नींद से बोझिल हो रहीं थीं, तभी उनका मोबाइल घनघना कर बज उठा था। दामाद आशीष का नंबर देख वह चौक उठे थे। उन्हें उधर से आशीष के मित्र अंकुर की आवाज़ सुनाई दी ,’’अंकल,आशीष का सीरियस एक्सीडेंट हो गया है, उसकी हालत गंभीर है। उसे हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया है .... आप तुरंत यहां आ जाइये।‘’

उनके हाथ से मोबाइल छूट कर गिर गया था। उनके सफेद पड़े चेहरे को देखते ही मीरा जी को समझ में आ गया था कि कुछ अप्रिय घट चुका है।

“क्या हुआ ?’’

“आशीष की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है। हम लोगों को मुंबई के लिये तुरंत निकलना है।‘’

“आशीष तो ठीक है? “

“पता नहीं, तुम्हारी बेटी के लिये तो यह खुशी का क्षण होगा। जब से शादी हुई है, उसने उन्हें एक दिन भी उन्हें चैन से नहीं रहने दिया, सुबह जब वह ऑफ़िस के लिये घर से निकले होंगे तो तुम्हारी बेटी ने अवश्य झगड़ा किया होगा ... वह तनाव में गाड़ी चला रहे होंगें ....बस हो गया होगा एक्सीडेंट ‘’

“तुमसे मैंने कितनी बार कहा था कि अपनी बेटी को समझाओ कि पति की इज़्ज़त करे। गोरे काले में कुछ नहीं रखा है, लेकिन तुम अपनी लाडली का पक्ष लेकर मुझे ही समझाती रहीं कि धैर्य रखो, आशीष जी की अच्छाइयों के समक्ष वह शीघ्र ही समर्पण कर देगी।‘’

“मुग्धा कैसी होगी? “

“उसका नाम मेरे सामने मत लो....आज तो वह बहुत खुश होगी कि आशीष घायल ही क्यों हुये, मर जाते तो उसे इस काले आदमी से सदा के लिये छुटकारा मिल जाता।‘’

“ऐसा मत सोचिए, पहले मुग्धा को फोन करके पूरा हाल तो पता कर लीजिये।‘’

“क्या उसने मुझे फोन किया है? “

उन्होंने अपने मित्र संजय से अस्पताल पहुंचने के लिये कहा और अपने वहां पहुंचने की सूचना दी ।

मीरा जी आखिर मां थीं, वह ममता से व्याकुल हो रहीं थीं। उनके कान में उसके चहकते हुये शब्द ‘सेकण्ड हनीमून ‘ गूंज रहे थे। उन्होंने बेटी को फोन लगाकर आशीष के एक्सीडेंट के बारे में जानकारी ली तो वह बुझे स्वर में बोली,’’उनकी हालत गंभीर है। उन्हें इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा हुआ है, खून बहुत बह गया है....इसलिये उनके ब्लड ग्रुप के खून की तलाश हो रही है। वह फूट फूट कर रो रही थी।‘’

गुमसुम असहाय मीरा जी अतीत में खो गईं थीं। उनकी शादी के बाद कई वर्षों बाद बड़ी कोशिशों के बाद उन्होंने इस बेटी का मुंह देखा था। वह सुंदर इतनी थी कि छूते ही मैली हो जाये, लाड़ प्यार के कारण वह बचपन से ही जिद्दी हो गई थी, लेकिन चूंकि पढ़ने में बहुत तेज थी इसलिये सुधाकर ने उसे पूरी आज़ादी दे रखी थी।

मुग्धा के मन में अपनी सुंदरता और गोरे रंग को लेकर बड़ा घमंड था। बचपन से ही वह काले रंग के लोगों का मजाक बनाती और उन्हें अपने से हीन या नीचा समझती। उसके मन मे अपने लिये श्रेष्ठता का अभिमान था ,जिसकी वजह से उन्होंने उसे कई बार डांट भी लगाई थी और उसे सजा भी दी थी।

समय को तो पंख लगे होते हैं। वह बी. टेक की पढ़ाई पूरी करके आ गई थी वह मन ही मन उसकी शादी के सपने बुन रहीं थीं परंतु मुग्धा एम . बी. ए. करना चाह रही थी। इसके लिये सुधाकर जी तैयार भी हो गये थे, परंतु मीरा जी पहले उसकी शादी करने के पक्ष में थीं। अंततः बेटी की इच्छा को देखते हुये एम. बी. ए. करने के बाद शादी पर विचार करने का निर्णय लिया गया था।

परंतु वह कुछ दिनों से देख रहीं थीं कि उनकी शोख और चंचल बेटी चुपचुप सी रहती थी, उसके चेहरे पर चिंता और परेशानी के भाव दिख रहे थे। वह अपने फोन पर किसी से देर तक बातें करती ...एक दिन उन्होंने उससे प्यार से पूछने की कोशिश की थी ,’’क्या बात है, बेटी ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है। कोई प्राब्लम है तो मुझे बताओ।

“नो मॉम, ऑल इज वेल ।‘’

मुग्धा के चेहरे से साफ दिखाई पड़ रहा था कि वह सफेद झूठ बोल रही है। मीरा जी के मन में शक का कीड़ा बैठ गया था। क्योंकि कुछ दिनों से वह देख रहीं थीं कि वह अपने फोन को एक मिनट के लिये भी अपने से अलग नहीं करती थी। वह यदि उसका फोन छू भी लेती तो वह चिल्ला उठती थी।

एक रात वह गहरी नींद में सो रही थी तो चुपके से उन्होंने उसके फोन को उठा लिया, शायद वह किसी से बात करते करते सो गई थी, इसलिये फोन लॉक भी नहीं था ....उसी फोन ने सारी हकीक़त बयान कर डाली थी ।

एहसान, माई लाइफ, उसके साथ सेल्फी ,फोटोग्राफ्स, ढेरों मेसेज देख वह घबरा उठीं। अंतरंग क्षणों की भी तस्वीरें मोबाइल में कैद थीं। प्यार में दीवानी बेटी धर्मपरिवर्तन करके उसके साथ शीघ्र ही निकाह करने वाली थी ।

उसी क्षण उन्होंने पति को सारी बातें बताई तो उन्होंने डांट डपट कर और आत्महत्या की धमकी देकर बिना किसी विलंब के अपने मित्र के बेटे आशीष के साथ उसका रिश्ता पक्का कर दिया था। शादी तय करने में एक हफ्ते का भी समय नहीं लगा था।

उन्होंने धीरे से एक बार कहा भी था .... जल्दबाजी मत कीजिए। बेटी को संभलने का एक मौका तो दीजिए, लड़के का रंग बहुत काला है, अपनी मुग्धा उसके साथ खुश नहीं रह पायेगी।

वह नाराज़ हो उठे थे .... सब तुम्हारे लाड़ प्यार का नतीजा है। यदि उसे एक मौका और दिया तो वह निश्चय ही धर्म परिवर्तन करके, उसकी जीवन सहचरी बनकर कुरान की आयतें पढ़नी शुरू कर देगी। वह सहम कर चुप हो गईं थीं , परंतु उनकी आँखें डबडबा उठीं थीं।

पिता के क्रोध और उनकी धमकी के कारण मुग्धा ने उनके सामने आत्म समर्पण कर दिया था। स्पष्ट रूप से विरोध तो नहीं किया था, परंतु उसके नेत्रों से अश्रु निरंतर झरते रहते थे। बेटी के मन की पीड़ा की कसक से उनकी आँखों में भी आँसू उमड़ते रहते थे।

जयमाला और विवाह मंडप में मुग्धा के चेहरे पर विरक्ति और घृणा के भाव थे। तो आशीष सुंदर अर्धांगिनी को पाकर गर्व से फूला नहीं समा रहा था।उसका चेहरा गर्व से प्रदीप्त हो रहा था। तो मुग्धा निर्जीव पुतले की भांति चुप थी।

आशीष मुम्बई आई आई टी से गोल्ड मेडलिस्ट था, वहां पर उसका अपना फ्लैट था। 30 लाख का उसका पैकेज था। उसने हनीमून के लिये मॉरीशस की बुकिंग करवा रखी थी। मॉरीशस की हरी भरी वादियों में भी वह अपनी पत्नी के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने में कामयाब नहीं हो सका था। मुग्धा को खुश करने के उसके हर संभव प्रयास असफल हो रहे थे।

मुग्धा चाह रही थी कि वह उसकी हरकतों से परेशान होकर अपनी मां के यहां जाने को कह दे , ताकि उसके पापा ने उसके साथ जो अन्याय किया है, उसका परिणाम उन्हें भुगतना पड़े। और फिर वह अपने प्रियतम एहसान की बाहों में जाकर खो जाये।

एक दिन वह बोला, ’’मुग्धा क्या यहां आकर तुम्हें अच्छा नहीं लगा .....तुम्हारा सुन्दर सा प्यारा चेहरा हर समय बुझा बुझा सा रहता है।‘’

वह तपाक से बोल पड़ी थी ... हां ...हां ...बिल्कुल भी नहीं अच्छा लगा ...क्योंकि मैं तुम्हें प्यार नहीं करती। तुमसे पहले मेरी जिंदगी में कोई दूसरा अपनी जगह बना चुका है।

“होता है मुग्धा ,प्यार किसी से किया नहीं जाता वरन् हो जाता है .... फिर तुम तो इतनी खूबसूरत परी सी हो... जिसने तुम्हें प्यार किया होगा वह भी बहुत सुंदर रहा होगा ....और तुम्हारी सुंदरता पर तो कोई भी अपनी जान तक कुर्बान कर सकता है ।

वह सोचने लगी थी कि यह इंसान किस मिट्टी का बना हुआ है ... इसके चेहरे पर न तो कोई क्रोध है ना ही आक्रोश ....

“आपने भी तो अपने कॉलेज के दिनों में किसी से प्यार किया होगा ?’’

“ मेरा यह आबनूसी काला चेहरा देख कर भला मुझसे कौन इश्क करेगा ? “

“मैं तो बहुत खुश हूं कि मुझे तुम सी सुंदर पत्नी मिली। मैं तो तुम्हारी खुशी के लिये अपनी जान भी दे सकता हूं।‘’

“मैं किसी दूसरे को पहले से प्यार करती थी। यह जान कर भी आपको बुरा नहीं लगा ? “

“बुरा लगने की भला क्या बात है ...तुम अकेली थीं...आज़ाद थीं ...किसको चाहो, किसको ना चाहो...यह तुम्हारा व्यक्तिगत फैसला था....शादी मुझसे की है, इसलिये अब मेरी पत्नी हो...मैं तो केवल यही जानता हूं ..तुम बहुत सुंदर हो, इसलिये मैं तो अपनी किस्मत पर इतरा रहा हूं।‘’

आशीष को परेशान करने के लिये वह जल्दी जल्दी अपनी मां के पास जाने के लिये कहती, तो वह बिना किसी ना नुकुर के उसकी फ्लाइट की टिकट बुक करवा देता। उसकी उपेक्षा और तिरस्कार का आशीष पर कोई असर ही न पड़ता। वह तो अपनी सुंदर पत्नी को मुग्ध भाव से निहारता रहता। और मुस्कुराता भी रहता, वह हर क्षण उसको खुश करने की कोशिश में ही लगा रहता।

वह उसे अंट शंट बोल कर प्रताड़ित करने का अवसर खोजती रहती। खाली समय में वह अपने एहसान के खयालों में खोई रहती।

सुधाकर जी को मुग्धा का जल्दी जल्दी मायके आना अच्छा नहीं लगा था। एक दिन वह पत्नी से बोले कि अपनी लाडली को समझाओ कि पति के घर में रहने की आदत डाले। वह तो हम लोगों का भाग्य अच्छा है कि हमें इतना अच्छा दामाद मिला है, जो उसकी हर इच्छा पूरी करता है।

“मैं तो चाहता हूं कि वह आशीष के प्यार को समझे।‘’

“आपने अपनी बेटी के प्यार को समझा था ?आपको तो उसकी हर बात से परेशानी होती है। पहले आपने बिना उसकी रजामंदी के शादी करवा दी। अब कहते हैं कि वह उन्हें तुरंत अपना भी ले। जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि वह बचपन से ही काले लोगों से नफरत करती है ...आपको याद नहीं है कि पहले मैं भी जल्दी जल्दी मायके जाने की जिद् करती थी। उसको समय दीजिए वह आशीष के प्यार की कद्र करने लगेगी।

“मैं भी तो यही चाहता हूं कि वह पति के प्यार को समझे, उसे इज़्ज़त दे ,और उससे प्यार भी करे।‘’ वह ऩाराज हो उठे थे ....ठीक है, तुम उसे शह देती रहो .. जब शादी टूट जाये और दोनों के बीच में तलाक हो जाये तो मेरे कंधे पर सिर रख कर मत रोना कि अब मैं क्या करूं .... समाज में सबके सामने मेरी इज़्ज़त खराब हो गई। तुम्हीं तो उस दिन कह रहीं थीं कि गीता भाभी कह रहीं थीं कि क्या मुग्धा की उसके पति से बनती नहीं, जो जब देखो तब यहीं दिखाई देती रहती है।‘’

“ऐसा नहीं होगा, लोगों की तो आदत होती है, दूसरों के फटे में हाथ डालने की।‘’

 मुग्धा अपने कमरे के अंदर से सब बातें सुन रही थी। वह तमक कर बोली, "पापा आपने मेरी शादी करवा कर समाज में अपनी इज़्ज़त जरूर बचा ली परंतु आपने कभी यह नहीं सोचा कि काले बदसूरत, और नापसंद आदमी के साथ एक घर में रह कर वह रोज कितनी तकलीफ़ से गुजरती होगी ।‘’

“आपने हमेशा अपने बारे में सोचा, समाज क्या कहेगा .... कभी यह सोचा....मेरे प्यार...मेरी चाहत...आप मेरे जख्मों के बारे में कभी नहीं सोच पाये ..... आप स्वार्थी हैं ...केवल अपने बारे में सोचते हैं। यदि मेरे बार बार आने से आपकी बदनामी होती है तो अब मैं कभी नहीं आऊंगी। आज से आपसे मैं रिश्ता तोड़ती हूं।‘’ वह नाराज होकर चली गई थी। उसके बाद से मुग्धा न तो कभी उनके पास आई और ना ही अपने पापा से फोन पर बात करी।

उसका जीवन निरुद्देश्य था। वह टी.वी. सीरियल्स के साथ अपना सिर फोड़ती, या अपने फोन पर अंगुलियां चलाती रहती और सबसे थक हार कर आशीष को कोसना शुरू कर देती ..... उफ, मुझे इस आबनूसी अफ्रीकन से कब मुक्ति मिलेगी। वह मन ही मन में सोचती रहती कि इसका एक्सीडेंट क्यों नहीं हो जाता, यह आदमी मर क्यों नहीं जाता ....

आशीष सुंदर पत्नी के प्रेम में पागल ऑफिस से बार बार फोन करता रहता। उसका दिल हर समय डरता रहता कि जब वह ऑफ़िस से शाम को घर लौटे तो कहीं वह घर से नदारद होकर अपने प्रेमी की बांहों में ना पहुंच चुकी हो ....

जब कभी वह ऑफ़िस से रात में देर से आता तो वह पूछता ,’’मुग्धा मैं देर से आता हूं तो तुम परेशान हो जाती होगी ...

वह तपाक से बोलती, ‘’ भला मैं क्यों परेशान हूँगी ? जाना चाहो तो हमेशा के लिये जा सकते हो।‘’

वह हर क्षण उसके अहम को चोट पहुँचाती कि वह अब नाराज होगा, परंतु वह अपना हौसला नहीं छोड़ता। उसके चेहरे पर हर समय मुस्कुराहट बनी रहती।

कुछ दिनों के बाद वह बोला, ‘’मुग्था तुम दिन भर घर में बोर होती होगी, इसलिये तुम्हारे लिये मैंने एक जॉब की बात की है। तुम घर से निकलोगी तो वहां चार लोगों से मिलना जुलना होगा तो तुम्हें अच्छा लगेगा। तुम्हें दिन भर की बोरियत से छुटकारा मिलेगा।‘’

आज एक पल को वह सोचने को मजबूर हो गई कि यह आदमी किस मिट्टी का बना है, जो हर समय उसकी खुशी के बारे में सोचता रहता है। वह बचपन से ही शिक्षाकार्य से जुड़ने का सपना देखती रहती थी ... परंतु दिखाने के लिये एहसान जताते हुये बोली थी कि अब आपने बात कर ली है तो ठीक है मैं इंटरव्यू दे दूंगी। केवल आपकी इच्छा पूरी करने के लिये....।

आज वह एक अरसे के बाद ढंग से तैयार हुई थी। आईने में अपने ही अक्स को देख कर वह अपनी सुंदरता पर रीझ उठी थी। परंतु अपने पीछे खड़े आशीष को देखते ही उसका मूड खराब हो गया था।

आशीष भी अपने को रोक नहीं पाया और हिचकिचाहट के साथ उसके माथे पर अपने प्यार की मोहर लगाते हुये बोला था ,’’मुग्धा तुम सच में ही मुझे मुग्ध कर देती हो।‘’ आज वह नाराज होने की बजाय अपनी प्रशंसा सुनकर शर्मा उठी थी।

शादी का एक साल बीत गया था। अब उसे आशीष की आदतें भाने लगीं थीं। वह कॉलेज जाने लगी थी और वहां जाकर खुश रहने लगी थी। वह कभी कभी आशीष के साथ हँस कर भी बात करने लगी थी।

एक शाम वह उसे बिना बताये कॉलेज उसे लेने पहुंच गये थे। उस समय वह अपने साथियों के साथ किसी बात पर जोर जोर से ठहाके लगा रही थी। उसको देखते ही वह गंभीर हो उठी और बुरा सा मुंह बना कर बोली थी कि ‘’क्यों मुझे चेक करने आये थे।‘’

“ऐसा क्यों कह रही हो.....आज तुम्हारा बर्थडे है ना, इसलिये सुबह ही शॉपिंग की बात हुई थी... आज खाना भी बाहर ही खा लेंगे।‘’

“ओके...ओके...’’

शॉपिंग के नाम से उसकी आँखें चमक उठीं थीं, बहुत दिनों के बाद आज उसने कई सारी ब्राण्डेड ड्रेसेज पसंद कर ली थी। वह ट्रायल रूम में पहन पहन कर आशीष को दिखा कर पूछ रही थी कि कैसी लग रही हूं। फिर वह बोली कि बजट ज्यादा हो रहा हो तो मैं कुछ ड्रेसेज कम कर दूँ।

प्रसन्नता से अभिभूत आशीष बोला था कि नहीं...नहीं....2-4 और लेनी हो तो ले सकती हो ...एक लाल रंग की ड्रेस अपने हाथ में उठाकर बोला कि यह ड्रेस तुम पर बहुत फबेगी , यह मेरी पसंद से ले लो ।

वह खुश होकर बोली थी कि अरे इस पर तो मेरी नजर ही नहीं पड़ी, यह तो सब में सुंदर ड्रेस है। आज पहली बार उसने आशीष को प्यार भरी नजरों से देखा था।

“मुग्धा इसी तरह मुस्कुराती और खुश रहा करो तो तुम बहुत सुंदर लगती हो ।‘’

समय के अंतराल से दोनों के बीच की दूरियाँ कम होने लीं थीं।अब वह उसे स्वीकार करने लगी थी दोनों के बीच पनपते हुये रिश्ते का फल उसके शरीर के अंदर अंकुरित हो उठा था। नवजीवन की सांसों की अनुभूति से वह आशीष के प्रति समर्पित अनुभव करने लगी थी .... उसके प्रति क्रोध और नफरत के स्थान पर प्यार पनपने लगा था ।

आशीष पापा बनने वाला है, यह जान कर वह चमत्कृत हो उठा था। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने तो मुग्धा के पैरों तले फूल बिछा दिये थे।उसकी दीवानगी ने सारी सीमायें पार कर दी थीं। आशीष ने उसकी देख भाल के लिये चुपचाप मीरा जी को बुला लिया था।

मीरा जी बेटी के पास आईं तो आशीष की मुग्धा के लिये दीवानगी और प्यार देख कर गद्गद् हो उठीं थीं, एक दिन बातों बातों में उन्होंने मुग्धा से बताया कि एहसान शादी करके अपने जीवन में आगे बढ़ चुका है। इसलिये अब उसे भी कसम खानी पड़ेगी कि वह भी आशीष के प्यार की कद्र करेगी। यद्यपि वह आशीष को प्यार करने लगी थी लेकिन आदत के अनुसार पति के सामने आते ही उसकी जुबान कड़वाहट उगलने लगती थी ।

एक दिन अंतरंग क्षणों में वह मुग्धा से बोला था ,’’मुझे तो बेटी चाहिये और वह भी तुम्हारी तरह सुंदर और प्यारी सी ...यदि बेटा हो गया ,वह भी मेरी तरह शक्ल सूरत और काले रंग का तब तो तुम्हारे लिये बेटा भी दण्डस्वरूप हो जायेगा क्योंकि अभी तो तुम्हें एक ही काले बदसूरत आशीष को अपने इर्द गिर्द देखना पड़ता है य़दि बेटा भी ऐसा हो जायेगा तो तब तुम्हारे चारों तरफ बदशक्ल कुरूपों का जमावड़ा हो जायेगा। और तुम्हारे लिये इससे बड़ी सजा अन्य कुछ नहीं हो सकता ....’’

मुग्धा द्रवित हो उठी थी। उसने पति के मुंह पर अपना हाथ रख दिया था कि प्लीज मेरी गल्तियों के लिये मुझे माफ़ कर दो ....

समयानुसार उसकी गोद में उसकी हमशक्ल परी सी बेटी आ गई थी। मीरा जी बेटी को समझा बुझा कर अपने घर चली गईं थीं।

एक दिन आशीष को बहुत जोरों का बुखार आ गया था। वह बेहोशी में भी मुग्धा...मुग्धा.... पुकार रहा था। उसकी बिगड़ती हालत देख कर आज वह पहली बार अपने को असहाय अनुभव कर रही थी। वह डॉक्टर को फोन करते ही आशीष के लंबे जीवन और स्वास्थ्य की कामना करने लगी थी। अब वह आशीष को दिल से चाहने लगी थी। जिस काले बदशक्ल व्यक्ति से वह नफरत करती थी , वही अब उसका सर्वस्व बन चुका था, ऑफ़िस से लौटने में उसे जरा भी देर होती तो वह पल पल में उसे फोन करती रहती ।

एक दिन वह आशीष से बोली थी ,’’आशीष मैं ने तुम्हारा हनीमून बर्बाद कर दिया था और उसके बाद भी मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया है। इसलिये मैं अब दोबारा उन्हीं पलों को उन्हीं जगहों पर जाकर एक नई शुरुआत करना चाहती हूं।‘’

“ ओके डियर ‘’

“आप अपनी छुट्टी के लिये एप्लाई कर दीजियेगा।‘’

“ मैंने आपको सरप्राइज देने के लिये सब बुकिंग करवा ली है ‘’

हर्षातिरेक में आशीष ने उसे अपनी बाहों के घेरे में जकड़ कर चुम्बनों की बौछार कर दी थी। फिर वह अपने हनीमून के बारे में सोच कर खुश होता हुआ तेजी से ऑफ़िस के लिये निकल गया था।

उसी रात हुये इस हादसे ने उसकी मनःस्थिति को जड़वत कर दिया था। वह निरुद्देश्य ...निराधार ....आई. सी. यू. के बाहर चहलकदमी कर रही थी। बेटी के रोने की आवाज़ भी उसको होश में नहीं ला रही थी।

सुधाकर जी और मीराजी को देखते ही वह अपने पापा के कंधे से लिपट कर बिलख बिलख कर रोने लगी थी। वह अस्फुट शब्दों में बोली ,’’पापा प्लीज , मेरे आशीष को बचा लीजिए। अभी तो मैंने आशीष को प्यार करना शुरू किया है। मुझे उसके साथ हनीमून पर जाना है।‘’

सुधाकर जी स्वयं को संभाल नहीं पा रहे थे। वह भी बिलख उठे थे ,’’कुछ नहीं होगा तेरे आशीष को, तेरा प्यार जो उसके साथ है।‘’

सिसकियों के साथ संज्ञाशून्य होते होते उसके मुंह से ,’’हनीमून पर जाना है ‘’ निकल रहा था। वहां खड़े सभी लोगों की आँखों से बरबस आँसू निकल पड़े थे।

 


 

 

 

 

 



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