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Krishna Raj

Others

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Krishna Raj

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हमारी मति..

हमारी मति..

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आज हमारा दिमाग न जाने कहां घास चरने गया था... कहीं पढ़ा था कि कवि के साथ निभाना मुश्किल काम है.. पर आज वो बात सही लगने लगी..एक तो रसिक उपर से कवि.. मतलब सोने पर सुहागा..

हमेशा हमें चने के झाड़ पर चढ़ाया जाता है कि उनकी कविताओं की प्रेरणा तो हम ही हैं.. अब ये कितना सच है ये तो वही जाने..

एक बात आज तक नहीं समझ पाये की ये प्यार और तारीफ की अवधि इतनी कम क्यों होती है.. शुरू शुरू में तो खूब तारीफ सुनी और गाहे बगाहे प्रेम का इजहार भी.. और अब आलम ये है कि,,,, सीधे सीधे पूछना पड़ता है... सुनो जी,,,, आप हम से प्यार तो करते हैं न,,,, हे शिव,, तब तो ऐसी भावभंगिमा बनाते हैं जैसे हमने कुछ अप्रत्याशित सा पूछ लिया.. फिर बड़ी मुश्किल से दार्शनिक की तरह ज़वाब मिलेगा...

ये भी कोई पूछने की बात है,,,,

उफ्फ,,,,, किस मिट्टी के माधो से पाला पड़ा है,,, अरे,, सीधे सीधे बोल देते की हाँ जानेमन हम तुम्हें बेतहाशा प्यार करते हैं,,, तो कौन सी आफत आ जाती... लेकिन नहीं जरा सी बात कहने से भी तकलीफ,, और तारीफ सुने तो न जाने महीने या साल बीत गए..

एक दिन ना जाने किसका वीडियो देख रहे थे..... और न जाने कितनी बार देख चुके,,, लगे उसका राग अलापने,,, यार,, क्या आवाज है न इस लड़की की.. और अदा तो देखो,, भई मैं तो लटटु हो गया..

हे शिव,, अब ये भी सुनना बाकी था.. गुस्सा तो बहुत आया,, पर जब इनके मासूम से चेहरे पर नजर पड़ी तो बड़ा प्यार आया..

कितनी सादगी से कहा उन्होंने... बस उनकी यही ईमानदारी कभी कभी हमारे दिल पर बड़ी भारी पड़ जाती है.. पर क्या करें,,, इनका भोलापन और सादगी के आगे हमारी बोलती बंद हो जाती है..

अब कवि हैं,, तो प्रेरणा कहीं से भी आ सकती है न.. ख़ैर हम मुद्दे से भटक गए हैं..

हाँ तो हम बता रहे थे कि आज हमने इन्हें इनकी कल्पना शक्ति की सबसे खूबसूरत प्रतिमा की याद दिला दी.. जिसे ये काफी दिनों से भूल से गए थे..

जिसकी तारीफों के पुल बांध बाँध कर न जाने कितनी वाह वाही बटोर चुके हैं.. पुरुष तो पुरुष,, महिलाएँ तक इनके गुण गाती फिरती हैं,, जब ये अपनी कविता में उस काल्पनिक छम्मकछल्लो का जिक्र करते हैं.. और न जाने क्यों हमारे तन बदन में आग लग जाती है..

तो बस आज हमारी जुबां से निकल गया कि क्या बात है काफी दिनों से आपकी कविता में उनका जिक्र नहीं हो रहा...

हमारा इतना कहना था कि ये ऐसे खुश हुए जैसे वो साक्षात सामने आ गई हो.. चेहरा तो टमाटर हुआ जा रहा था.. बस फिर क्या था..

खुश होते हुए हमें धन्यवाद कहा कि अच्छा हुआ यार तुमने याद दिला दिया.. मैं तो भूल ही गया था..और दो दिन से लगे हैं उस छम्मकछल्लो की तारीफ के कसीदे लिखने में.. और हम खुद को कोस रहे हैं..

अब न जाने कितने दिन में उसका भूत उतरेगा.. और जनाब हमारी तरफ ध्यान देंगे..

पर कुछ भी हो हैं बड़े मासूम और भोले.. इनके भोलेपन और सादगी ने ही तो लूट लिया हमें.. भोलेनाथ ने आखिर भोले दे ही दिया हमें... 



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