हम सब कठपुतली ही है
हम सब कठपुतली ही है


प्रायः लगता है सबको कि बहुत पैसा कमा लिया, जमीन, जायदाद, ऐशोआराम की सारी चीजें जुटा ली,और अभिमान से भर जाते हैं, अहंकार आँखों में भरकर अपने आपको सर्व शक्तिमान समझने लगते हैं। इस लाकडाऊन में बहुत लोगों की समझ आ गया होगा कि इन चीजों का महत्व जिंदगी से ज़्यादा नहीं है और लाकडाऊन के बाद शायद वो एक नई जिंदगी की शुरुआत करें और उनकी मदद करें जो आर्थिक तंगी में जीवन यापन कर रहे हैं। फिलहाल तो समझ आ गया कि हम चाहे जैसा अपना मंच सजा ले, पटकथा लिख ले, किरदार अपने अनुसार निभा ले कर ले, पर डोर तो उसी ऊपर वाले के हाथ है हम सब कठपुतली की तरह ही हैं।