Arun Gode

Others

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हिमानी काव्य संग्रह

हिमानी काव्य संग्रह

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     श्रीकांत, गुनवंता और अरुण तीनो वर्गमित्र थे. उन्होने जो एक सपना देखा था. उनका सपना था कि उनकी सामुहिक एक्सठवीं में सभी वर्गमित्रों को बुलाकर सभी वर्गमित्रों की सामुहिक एक्सठवीं का जश्न मना था.वे सभी अपने पुराने मित्रों को फिर से जोडना चाहते थे. इस कार्यक्रम का यह मुख्य उदेश था.जिनके साथ जीवन के बहुमुल्य बच्चपण के क्षण साझा किये थे.उन सभी से दुबारा मिलने की लालसा ने उन्हे यह कार्यक्रम का आयोजन करने की प्रेरना दी थी.उनके और स्थानिय वर्गमित्रों के सहयोग से यह कार्यक्रम उनके स्कूल में प्राचार्य के अनुमति मिलने से संपान्न होने जा रहा था. इसलिए इसकी जानकारी सभी वर्गमित्रो को देना आवश्य्क हुआ था. कार्यक्रम की जानकारी वाट्स पर वायरल हो गई थी.मित्रों के फोन आने लगे थे.मित्रों के सयुक्त प्रयास अभी रंग ला रहे थे. उलटी गंगा पहाड चली जैसा कार्य वे करने निकले थे. अभी उसके साकार होने के लक्षण दिख रहे थे.

पदमनाभन : "हैलो, अरुण, कैसे हो , बढियां, आप सभी को बहुत- बहुत बधाई हो. आप मित्रों ने इस अनोखे कार्यक्रम को अंतिम रुप दे दिया है. कार्यक्रम का ब्यौरा मैंने आज ही वाट्स अप पर देखा. मुझे बहूँ त पसंद आया हैं.सभी का रीसपॉन्स अच्चा है. आखिर आप सभी सफलता के कगार पर खडे हो. एक नया इतिहास रचने जा रहे हो. इसलिए फिर सभी को मनपूर्वक आयोजन के लिए शुभकामनायें !."


अरुण :"सिर्फ शुभकामनायें देने से नहीं चलेगा. जैसे, पूर्व में अपनी बात हुई है.उसी कार्यक्रम के अनुसार आप को कम से कम तय तिथी से दो -चार दिन पहिले आना है. आपको और एक महत्वपूर्ण काम करना है. आप को मेरे कविता संग्रह के लिए प्रस्तवना भी लिखना है. इस कविता संग्रह का विमोचन भी आप को करना है."

पदमनाभन : "कविता संग्रह के लिए मैं तो प्रस्तवना लिखूगां. लेकिन मैं चाहता हूँ कि कविता संग्रह का विमोचन किसी गुरुजन के हाथो से हो तो अच्छा लगेगा."

अरुण : "मैं आप के प्रस्ताव, विचारों से बिलकुल सहमत नहीं हूँ क्योंकि एक मित्र का एक मित्र द्वारा सम्मान किया जाना चहिए. मित्र का मित्र द्वारा सम्मान, वो हमारे जीवन का एक यादगार क्षण रहेगा."

पदमनाभन :"हां अरुण,मुझे भी लगता है, तु जो कह रहा है, वो ठिक है, चलो मैं ,आप के प्रस्ताव से सहमत हूँ . यह मेरे लिए गौरव की बात होगी. गौरव प्रदान करने के लिए, तेरा शुक्रिया."

अरुण : "खाली शुक्रिया , कहने से नहीं चलेगा. आप को मेरे सम्मान में प्रस्तावाना भी लिखनी है.उस में मेरे तारिफ के फूल भी बांधने है. मैंने मजाक करते हुयें कहां. आप को भी आगे चलके, मेरे कविताओं से प्रभावित होकर, एक काव्य संग्रह लिखना है. उसकी प्रस्तावना मैं ही लिखुगां, और विमोचन भी मैं ही करुगां !."

पदमनाभन: हंसते हुए कहा, "ये तेरा सपना इस जन्म में संभव नहीं होगा!. कवितायें लिखना मेरे बस की बात नहीं. अच्छा ये बताव की कीताब का नाम क्या होगा ?"

अरुण : "अच्छा सवाल पुछा. जैसे की आप को पता है की मैं नाना बन गया हूँ . मेरी प्रौत्री का नाम हिमानी रखा है. उस के नाम से ही प्रकाशीत होगा, इस कविता संग्रह में, मैंने तीनों भाषाओ में, हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में कवितायें लिखी है. इस लिए इसका , नाम होगा “हिमानी “ बहुभाषी कविता संग्रह. आप को ये सब बातें गुप्त रखना है. क्योंकि मैं सबको आश्चर्यचकीत करना चाहता हूँ ."

पदमनाभन: "आपका सुझाव और कविता का शीर्षक मुझे बहुत पसंद आया है.मैं यथाशीघ्र प्रस्तावना लिख कर भेजता हूँ . ताकी पुस्तक के प्रकाशन में, मेरे वजह से देरी ना हो. अच्छा मिलते है."

अरुण: "चलो, जिस घडी का इंतजार था. वो घडी अगले माह आनेवाली थी.इसका ऐहसास मन में जो तरंगे उठ रही थी, उसीसे हो रहा था.शरीर के अंदर एक विशेष प्रकार के उर्जा का निर्मान हुआ है इसकी अनुभुति हो रही थी. मैं अपने कविता संग्रह को अंतिम रुप दे रहा था. एक ऐहसास हो रहा था कि जीवन में कुछ करने का मौका मिल है. जब मेरे मित्र, मेरे कविता संग्रह को देखेंगे, वो मेरे कार्य की जरुर प्रशंसा करेगें !. ये उम्मीद, मैं अपने मित्रों से कर रहा था. लेकिन मुझे जीस बात से खुशी हो रही थी वो किसी सहेली के वजह से थी. जो शायद मुझे से नाराज थी. मुझे ये उम्मीद थी कि इस मुलाकात से दूर तो नहीं होगी,लेकिन कुछ कम हो जाएगी !. जब कभी वो मेरा कविता संग्रह पढेगी. उन कविताओ में, जो मैंने लिखी है. उसे पढेगी तो उसकी नाराजी और भी दूर हो जाएगी. मैं इस गहन सौच में पडा था कि जो बातें मेरे दिमाग में डेरा जमाकर बैठी है, क्या ऐसा ही उसके दिमाग में चल रहा होगा ?. जीस तरह से मैं अपने मजबुरी के कारण पहेल नहीं कर रहा हूँ . वैसे ही मनस्थिति क्या उसकी भी होगी ?. क्या सच्चाई है ये तो आनेवाला वक्त ही बतायेगां ?. दिल में तो बहुत खुशी थी. लेकिन मस्तिष्क किसी और तरफ इशारा कर रह था. मैं अपने कवितासंग्रह के प्रकाशन के कार्य में जुट गया. कुछ ही दिनो में , मेरा कविता संग्रह की सौ प्रतियां छपकर आ गई थी. इसकी सुचना मैंने अपने नजदी की मित्रों को दे दी थी. वो सभी मेरे कार्य से खुश थे. उससे ज्यादा उन्हे खुशी इस बात की थी कि मैंने उनका नाम अपने मनोगत में मुझे प्रेरित करने के लिए लिखा था. कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु सभी मित्र अपने –अपने स्तर पर और अपनी क्षमता से दिये हुयें कार्य करने में जुट गये थे. हर कोई अपना सर्वोत्तम योगदान देने के लिए इच्छूक था. सभी मित्र और सहेलीयां एक दुसरे के संपर्क में थे. उनकी आपस में मोबाईल द्वारा एक-दुसरे के साथ चाटींग और कॉमेंट्स का आदान-प्रदान चल रहा था. श्रीकांत इस कार्य में काफी सक्रिय भूमिका अदा कर रहा था. लग-भग़ सभी सहेलीयों और मित्रों के साथ उसका संपर्क बना हूँ आ था. सभी ने उसे अपना लीडर मान लिया था. सब कुछ ठिक- ठाक चल्र रहा था. कार्यक्रम दिन को दस –पंद्रह दिन का समय बचा था.

       एक पंथ दो काज,इस कविता संग्रह को छापकर मैं अपने मित्रों को आश्चर्यचकित करने वाला था.साथ में वो मुझे अपने जीवन के अंतिम सांस तक याद रखेगें यह मेरी सोच थी. अन्य मित्रों और अपने परिवार को इस कवी मित्र की बातों को भी मौका मिलने पर साझा करेगें ऐसी उम्मीद मुझे थी. इस तरह मैं अपने मित्रों के दिल में हमेशा के लिए अपना स्थान सुनिश्चित करने का एक प्रयस कर रहा था. सभी वर्गमित्रों की पसंद एक जैसी नहीं हो सकती. उनकी भाषा की भी पसंद अलग- अलग हो सकती है. इस लिए मैंने सभी मित्रों का ध्यान रखकर विभिन्न विषयों पर मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में कविताएं लिखने का प्रयास किया था. ताकी सभी मित्रों को हिमानी बहुभाषि कविता संग्रह पढने में रुची बनी रहे !.



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