गुड़िया की शादी
गुड़िया की शादी
खुशी एक छोटे से गाँव में रहती थी। बात उस समय की है जब गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थी। खुशी घर में घुसे घुसे ऊब जाती थी। तेज धूप के कारण उसे घर से कोई निकलने नहीं देते थे। उसी उसी खिलौने से खेलने का मन भी नहीं करता था। वह कभी दादाजी के पास जाती, कभी दादी के पास। उसका एक भाई था जो अभी बहुत छोटा था इसलिए दोपहर में सो जाता था। खुशी ने दादाजी से कहा, "दादाजी मुझे नए खिलौने चाहिए, ये सब पुराने हो गए हैं।"
"ठीक है बिटिया , अभी अक्ति त्यौहार आने वाला है, आपके लिए पुतरा पुतरी लेंगे, फिर उसकी शादी करायेंगे।"
खुशी दादाजी की बात सुनकर उछल पड़ी। अब वह गुड़िया की शादी की तैयारी में लग गई। कपड़ों की कतरन को वह इकट्ठा करके रखने लगी ताकि अपनी गुड़िया के किये कपड़े सिलवा सके। कुछ कुछ गहने भी बना ली। गुड़िया के लिए बिस्तर, कुर्सी, सोफा और बर्तन भी इकट्ठा कर ली।
दादाजी बोले, " बिटिया कल अक्ति है, आज शाम को मेरे साथ बाजार चलना, आपके लिए पुतरा पुतरी लेंगे।"
"जी दादाजी।" खुशी चहकते हुए बोली।
शाम को दोनों बाजार गए और सुंदर सुंदर पुतरा पुतरी और मौर खरीदे।
दूसरे दिन दादी सुबह सुबह आँगन को साफ सुथरा करके चौक पूरने लगी। दादाजी दो छोटी छोटी लकड़ियों से मंडप बनाये , फिर उसे आम की पत्तियों से सजाए। खुशी चावल को कई रंगों से रंगकर मंडप को सजा रही थी। खुशी की माँ आँगन और दरवाजे में चूने से अल्पना बनाई। घर में सुबह से ही त्यौहार का माहौल था। सभी अपने अपने कामों में व्यस्त थे। बच्चों की टोली भी बाजे गाजे के साथ आ गई। पहले हल्दी की रस्म हुई, फिर शाम को बारात आई। बच्चे ख़ूब नाचे गाये। खुशी की माँ पकवान भी बना ली थी। अब पुतरा पुतरी को मंडप में बिठाया गया। घर और आस पड़ोस के लोग पुतरा पुतरी को पीले चावल का टीका लगाकर, टीकावन की रस्म पूरी कर रहे थे और वही पास में रखे डिब्बे में सिक्के डालते जा रहे थे। कुछ ही देर में खुशी का डिब्बा सिक्कों से भर गया।वह उसे एक किनारे में रखकर अब सबको पकवान खिलाने लगी। सभी बच्चे बहुत खुश थे। कुछ देर बाद खुशी मंडप के पास गई तो देखा कि पैसों वाला डिब्बा वहाँ नहीं था। वह परेशान हो गई और अपनी माँ से पूछी। माँ को भी कोई जानकारी नहीं थी। खुशी रोने लगी। बाकी बच्चे भी उदास हो गए। आखिर डिब्बा गया तो गया कहाँ? दादाजी ने पूछा , बताओ अभी कौन नहीं है यहाँ पर ? सबने अपने आजू बाजू को देखा, तब पता चला कि रौशनी नहीं थी, वो चुपके से अपने घर चली गयी थी। अब सभी को उसी पर शक़ होने लगा। सभी बच्चे दादाजी के साथ रौशनी के घर गए, दादाजी ने रौशनी से उस डिब्बे के बारे में पूछा, पहले रौशनी साफ मना कर दी फिर दादाजी के समझाने पर उसने स्वीकार किया कि डिब्बा उसी ने चुराया है। उसने सबसे माफी माँगी और पैसों से भरा डिब्बा खुशी को वापस कर दी।