गर्मा गर्म भटूरा
गर्मा गर्म भटूरा
दृश्य एक
पट् पट पट्टा पट - - - पटपट पट आवाज़ सुनते ही मैं दरवाज़े की ओर भागी। किसी ने चटाई जलाई थी। सैकड़ों हजारों कागज़ की चिंदिया गवाही दे रही थी। तालियाँ। तारीफें ऐसे ही नहीं मिलती। जलना पड़ता है, खुद को खोना पड़ता है, बिखरना पड़ता है फ़ना होना पड़ता है।
भॉम और मैं चौंक कर ऊपर देखने लगी। रावण जलने वाला था -- भॉम भॉम भॉम। भौम भॉम। भॉम। .. और हर आवाज़ के साथ आसमान रंग बिरंगे सितारों से भर जाता "यह मनमोहक नज़ारा। मेरा बचपन से पसंदीदा था" इसको देखने का मोह। मैं आज भी न छोड़ पाती थी। शायद इस रूप में मेरा बचपना मेरे भीतर जिंदा था। मैं आज भी इस खूबसूरत लम्हें को देख ज़ोर जोर से बिना रुकी हुए तालियाँ बजा लेती हूँ। अरे किचन में गैस पर कड़ाही चढ़ा रखी थी। मैं भीतर को भागी।
आज। दशहरे - रावण दहन का दिन साथ में मेरी शादी की सालगिरह का दिन भी -
मैंने सबके पसंदीदा छोले भटूरे। मीठी चटनी। दही भल्ले व गुलाब जामुन बनाए थे। मैं आराम से एक एक भटूरा बना रही थी जिससे सबको गर्मागर्म दे सकूँ। इतने में बड़े बेटे व पति की कुछ बहस सुनाई पड़ी, पल भर के लिए मन डगमगाया फिर माज़रा समझ कर मुस्करा दी, बेटा बार बार गर्म भटूरा पापा को देकर पहला वाला भटूरा स्वयं खा रहा था और उसके पापा उसे ज्यादा गर्म भटूरा खिलाना चाह रहे थे। बहस नहीं थमी, दो बार ऐसा फिर होने पर मैंने डांट लगाई। "सब गर्म ही आ रहे है प्यार से खाओ"
कड़ाही में जैसे ही भटूरा अपने पूरे फूले आकार ( full hotential ) को प्राप्त हुआ चेहरे पर पुरानी स्मृति ने कुछ धुंधली रेखाएं खींच दी। बीस साल पहले ससुराल में जिस एक बात ने सबसे ज्यादा मायूस किया वह था भटूरा ठंडा मिलना। वह और उसकी जिठानी सबको गर्मागर्म भटूरे देते। फिर मैं बर्तन धोती उतनी देर में भाभी उन दोनों के भटूरे तल देतीं। मैं कहती रह जाती, "आप पहले गर्म खाएं मैं बना देती हूँ" लेकिन जल्दी काम खत्म हो कहकर वह किचन साफ करने में लग जाती और सारे भटूरे एकसाथ एक के ऊपर रख देती। भटूरे के नाम पर चहकने वाली मैं। चुपचाप बेमन से खाना खाती ।
धीरे-धीरे इन बातों की अभ्यस्त हो गयी थी। अब बच्चों को शौक से खाते देख उसी तृप्ति का अनुभव करती हूँ।
हमेशा की तरह मैंने दो भटूरे बनाकर ढक दिए, किचन प्लेटफार्म साफ किया, बर्तन धोकर। रात्रि ड्रेस ( नाइट गाउना ) पहनी कूलर के आगे बैठकर जैसे ही पहला कौर तोड़ा। लंबी सांस खींची । - मेरे मन ने समझाया -- न न इतने नकारात्मक नहीं होते। पापा का ध्यान रखने का संस्कार तुम्हीं ने तो बच्चों को दिया है। वे तुम्हें भी उतना ही प्यार करते है। बस '"थोड़ा ध्यान नहीं रहा होगा।"
दृश्य दो
बनाए तो आज भी मैंने छोले भटूरे ही थे साथ में मैकरोली व अंत में कोल्ड ड्रींक सितम्बर का माह। मेरे बेटे का जन्मदिन ।
परन्तु आज मैंने सबको खाना खिलाकर। सब काम समेटा फिर वस्त्र बदले और अपने लिए दो भटूरे गर्मागर्म तले। कमरे में अपना खाना ले आयी, फूले फूले एक भटूरे को ऊंगली से फोड़ा थोड़ी तेज आवाज में ठाएं बोला एक कौर मुंह में डाला।
वाह के संकेत के साथ बोला - मज़ा आ गया।
बच्चों संग पति भी मुस्करा दिए।
सच है, हमारी सोच और अभिवृति ( attitude ) से ही जीवन में प्रसन्नता का आगाज होता है।
दृश्य तीन
क्या कहूं "मेरे यहाँ छोले भटूरे कुछ ज्यादा ही पसंद किए जाते है
आज। आज अहमदाबाद से मेरी ननद की लड़की ऋचा आर ही है। उसकी विशेष फ़रमाइश। छोले भटूरे बना रही हूँ।
आज सबने खाना खा लिया किंतु बहुत कहने पर भी ऋचा ने नहीं खाया। वह जिद्द कर रही थी कि वह भटूरे बनाकर मुझे खिलाएगी। मैंने साफ कह दिया था ऐसा नहीं हो सकता। इस गर्मी में मैं उसे किचन में जाने न दूँगी।
आज आश्वर्य चकित करने की बारी मेरे परिवार की थी, बड़े बेटे ने किचन में मोर्चा सम्भाला तो पति भी उसकी सहायता के लिए किचन में पहुँच गए।
शादी के बाईस साल बाद, मैंने ऋचा के साथ डिनर का भरपूर लुत्फ़ उठाया। सच में मज़ा आ गया।
पसीना पोंछते पति व बेटे को देखकर मैं मुस्करा दी और धीरे से बोली। थैंक यू
हम्म। दोनों एक साथ बोल पड़े। "हमेशा नहीं बनाएंगे" "हाँ बाबा हाँ अब बैठिए मैं कोल्ड ड्रिक ले आती हूँ।"
सच है - बदलाव जीवन का नियम है, धैर्य। हमें स्थिर रहने व सही समय की प्रतीक्षा करने का संबल प्रदान करता है।