गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा
हम बच्चे पूजा पाठ पर्व आदि सिर्फ़ खेलने मज़ाक मस्ती और मिठाई खाने के लिये मानते हैं ।दीवाली के दूसरे दिन ही गोवर्धन पूजा होती है दादी और मम्मी पूरा दिन दीवाली की पूजा और तैयारी में बियास्त थी हमारे लिए टाइम ही नहीं दे रही थी जिससे हमारी मस्ती दिन पर दिन बढती जा रही थी। दीवाली पर पापा बहुत सारे रॉकेट,बम और बहुत सारी फुलझड़ी ले आये। हम छोटे थे तो रॉकेट और बम चलना नहीं जानते थे। चाचा हम लोगों को रॉकेट और बम चलना सीखा रहे थे। मस्ती ही मस्ती में चाचा ने बोला जाओ घर के बाहर और रॉकेट के चारों और रेत को रख दो फिर मोमबत्ती से रॉकेट को जला दो। हम बच्चे ने सोचा कि बार बार रेत को रॉकेट में चारों ओर रखने से अच्छा है चलो अपने घर के आंगन में दादी ओर मम्मी ने दो टेडी बनाये है। उनके ऊपर चलाते हैं ।सभी लोग इस बात को मान गये पहले हम लोगो से गोवर्धन पर रॉकेट चलाया तो गोबर पास खड़े राहुल के ऊपर गिरा सब लोग अब और ज्यादा मजे लेने लगे सारे रॉकेट ख़त्म कर पूरे गोवर्धन में छेद कर दिए फिर बम चलाया तो आँगन की दीवाल पर गोबर उड़ कर गिरने लगा फिर तो सब बच्चे बम चला कर बताने लगे दिखो हमारा कितना ऊपर जाता है ऊपर गोवर्धन के चिथडे-चिथडे उड़ा दिए। तभी दादी बाहर आई और गोवर्धन का हाल देख छड़ी उठा कर सभी बच्चों को मारने लगी बच्चे आगे आगे और दादी पीछे पीछे पूरे गांव में दौड़ा रहे थे।