Pratibha Jain

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घुरहू की भाग 5

घुरहू की भाग 5

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घुरहू की मेहरारू मुखियान लेखक - श्याम कुंवर भारती

भाग -5

अनुवाद लेखक- प्रतिभा जैन 


दरवाज़ा खुलते ही सावित्री पलंग पर उठ कर बैठ जाती है। दुल्हे राजा को आता देख अपना पल्लू से अपना चेहरा ढक लेती है। घुरहू आगे बढ़ता और दुल्हन का हाथ पकड़ कर बोलता इतना सुन्दर चांद जैसा चेहरा घूंघट के पीछे मत छुपाओ ये तो मेरे साथ न्याय नहीं है। घुरहू अपनी दुल्हन का रूप देख कर मोहित हो गया,अपने नसीब पर नाज हो रहा था। जैसे ही घुरहू मुंह खोलता बहुत बुरी बदबू सावित्री को आती ,किसी तरह अपने आप को संभालती और पलंग से खड़ी हो जाती घुरहू से पूछती -"आज आप दारू पी कर इतना देर से आ रहे हो? आपने ये ठीक नहीं किया। हम आपका कब से रास्ता देख रहे थे।पूरी रात सोए नही। आप सुहागरात पर दारु पी कर आए हो।

आपको थोड़ी सी भी शर्म नही आई।

हमारी तो किस्मत ही फूट गई आपके जैसे शराबी पति पा कर।हे भगवान अब हमारा क्या होगा?" कैसे निकलेगी ये जिंदगी और अपनी किस्मत पर रोने लगती है।

घुरहू अपनी दुल्हन को लाख समझाने की कोशिश करता है की मैं अपनी इच्छा से आज नहीं आया था वो तो मां जबरदस्ती कमरे में छोड़ गई।

आप अभी निकल जाओ यहां से हमें दारू की बदबू बर्दास नही होता। नहीं तो हमें अभी उल्टी हो जायेगी। घुरहू के निकलते ही सावित्री अपना दरवाज़ा बंद कर लेती है।घुरहू लड़खड़ाता हुआ अपने अपनी मां के कमरे की तरफ़ जाता है।मां तो भी घुरहू की चिंता में नींद नहीं आ रही थी।घुरहू को आता देख घबरा कर पूछती है क्या हुआ बेटा?

घुरहू पूरी बात बताता है अपना माथा पीट कर कहती हैं जिस बात का डर था वहीं हुआ।अब तो भगवान जाने कल दुल्हन काली मां का अवतार लेगी और तमाशा होगा।

घुरहू तो अपने पलंग पर सुला देती है और मां नीचे चिटाई पर सो जाती है।



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