घुटता परिंदा से गिनपरि तक का सफ़र I दूसरा भाग- औकात की पहचान
घुटता परिंदा से गिनपरि तक का सफ़र I दूसरा भाग- औकात की पहचान
मैं केवल गणित करने के सपने देखती थी पर जानती वानती कुछ ज्यादा नहीं, पर मैंने पाया अधिकतर साथी और बाहरी दुनिया के लोग भी ज्यादा जानकार ना थे, बस समय बिता रहे हैं पर कर कोई कुछ नहीं रहा- आम आदमी। बेचारा आदमी,शिकायत का पिटारा आदमी, खयाली पुलाव ढेर सारे पर करना धारणा कुछ नहीं।
मेरी गणित से कोई दोस्ती -वोसती नहीं थी, ना तो गणित में मैं अच्छी थी मतलब पहाड़े याद नहीं, जब भी संख्याएँ सामने आती तो मैं तो उन लोगों को ही निहारती रह जाती जो माइंड में ही गणना कर दिया करते थे, खुद से तो ये जादू हो नहीं पाता था पर ऐसा करने की चाहत फिर हिलोरें मारती, ये जो ख्याब था ना की मैं भी ऐसा कर पाऊँगी, ये सीख पाऊँगी , इन लोगों ने किया है और भी कई ने किया है, तो मैं क्यूँ नहीं? मैं ही क्यूँ नहीं? मेरी ये जिद सबसे ज्यादा मेरे काम आई।
पर केवल जिद से समाधान नहीं मिलते, जिद रास्ते नहीं बनाती या कोई भी रास्ता नहीं बनाता, एक-एक कतरा-कतरा हटाने से, बे शुमार उलझनों में उलझने उनसे जूझने, बनाए रास्ते फिर मिट जाते हैं, फिर शुरुआत से पीछे से शुरुआत करनी होती है। आप उन पलों को कभी पहचान पाते हों, कभी आपको पता ही नहीं होता की जाने-अंजाने के कदम भी मंजिल की ओर बढ़ रहे सफर में मदद कर रहे होते हैं। अब जब याद करने की कोशिश करती हूँ , ठीक से तो रास्ते को ट्रेक करना मुश्किल होगा, मुझे लगता है सभी के लिए ये मुश्किल होता होगा, पर जहन में कुछ यादें हैं, कुछ याद करने और जोड़ने से जुड़ जाती हैं, इनके क्रम को बाद में आगे -पीछे कर लेंगे, अभी जो जहन से निकलने को बेताब हो रहा है, वो किस्सा सुनो।
विकास सर, गणित से मुझे जोड़ने का सारा श्रेय इन्ही को जाता है। मुस्कराते रहते, हमेशा बेहतरीन पंच लाइन के साथ। उनकी बातें सुनने के लिए ही क्लास का इंतज़ार रहता था, उस दिन उन्होने अजब ही गणित की दुनिया दिखाई। क्लास मेँ आते ही बोले जादू देखना है बच्चों, सब एक साथ बोले- हाँ देखना है। उन्होने मुझे दो अंकों की कोई संख्या लिखने को कहा, एक और बच्चे को बुलाया उसे भी पहले से लिखी गई संख्या के नीचे अन्य कोई दो अंको की संख्या लिखने को कहा, सब बच्चों से बोला इन दोनों को जोड़ लो, मैं बोर्ड वर्क करने की लिय खड़ी थी।
23
34
57
दूसरी व तीसरी को जोड़ने को बोला और सर ने अपना मुंह बच्चों की तरफ किया था, पीठ बोर्ड की तरफ,
34+57= 91
अब तीसरी व चौथी को जोड़ने को बोला ,इसी प्रकार चौथी व पाँचवी, पाँचवी व छठी को , छठी व सातवीं को,
एक पीछे घूमे, देखा और बोले , शाबाश , करते रहो ऐसा ही, दस संख्या लिखनी है ऐसे ही , यानि सातवीं और आठवीं को, आठवीं और नौवीं को नौवीं और दसवीं को।
वो अचानक से बोले की ये जो संख्याए बोर्ड पर लिखी हैं इनका कुल योग है, लिखो काशवी , जो उन्होने बोला मैंने बोर्ड पर लिखा।
बच्चों चेक तो करो जरा, सब बच्चे अपने तरीके से जोड़ने मेँ लग गए, एक बच्चे ने केलकुलेटर से जल्दी से जोड़ा और देखा जो सर ने संख्या बताई थी वही था, सब बच्चे एक साथ आश्चर्य से भरे थे की – कैसे किया ?
57 +91 = 148
91 +148 = 239
148+239 = 387
387+626 = 1013
1013+626=1639
23,34,57,91,148,239,387,626,1013,1639 को जोड़कर तपाक से बता दिया को 4257 है, जबकि वो तो संख्याओं को देख भी नहीं रहे थे ।
ऐसा ही गणित सीखना था मुझे भी, जब हम सबने कैसे हुआ जानना चाहा तो फिर शुरू हो गए, कहानियाँ सुनाने मेँ। वो जल्दी से उत्तर नहीं बताते थे, हमें तरह -तरह से हिंट देते रहते और कोशिश करते रहते की हम खुद ही कारण को तलाशें। इस दौरान वो हमे ढेरों किस्से सुनाते, कभी हमें लगता की हम पहुँच गये जबाब तक तो कभी अचानक से फिर नया सवाल आ खड़ा होता, तलाश पूर्व की कर रहे होते, खुद को खड़ा पाते पश्चिम मेँ। खेर कुछ भी हो, इस सारी माथा पच्ची मेँ मजे बहुत आते। विकास सर अक्सर कहा करते की ये जो तुम कर रहे थे, जबाब तक पहुँचने की जद्दोजहद, बस यही गणित है, मत बयां करो शब्दों मेँ, बस फील करो।
उस दिन उन्होने हमे हेमचन्द्र की कहानी सुनाई, जो भारत के महान गनीतिज्ञ रहे हैं, पाइन एपल को दिखाया, सींप को भी दिखाया, वृक्षों की डालिया गिनवाईं, एक वर्ग बनाया, फिर वैसा ही एक और, बड़ी भुजा पर एक और, ऐसा ही करते रहे, 1,1,2,3,5,8,13,21,…
बढ़ाते रहे, कभी ताजमहल दिखाते तो कभी मोनालिसा, ज्यादा तो मुझे याद नहीं पर सब जगह , 1,1,2,3,5,8,13,21,… ये ही संख्याए दिखा दी, सभी का अनुपात 1.67... गोल्डन रेशों, हाँ यही नाम दिया था इसका। सुंदर होने की शर्त बता दिया था इसको और जिसे हम सुंदर मानते थे उस हर चीज मेँ दिखा भी दिया था।
सब बच्चे एक अलग ही पाश मेँ बंधे रहते थे, उन्हें सुनते रहते, उनसे सवाल -जबाब करते रहते, अगली क्लास के सर आकार उन्हे क्लास खतम होने की याद दिलाते। जैसे ही सर जाने लगे हम सब चिल्लाने लगे की आज जो जादू जो किया वो तो सीखा दो, सर मुस्करा कर बोले 11 से गुना करने को पैटर्न सिखाया था और आज की कहानी, इन्हें मिलाकर ही है आज का जादू, वैसे जादू -वादू कुछ होता है नहीं, बस गणित होता है, ढूंढ लो तो तुम जादूगर नहीं तो मानते रहो जादू को सच और मूर्ख बने रहो – अबरा का डबरा।
बच्चे सर के जाने के बाद भी , घर जाकर भी, लाइब्ररी मेँ भी सर की अधूरी बांतों को पूरा करने मेँ लगे रहते, यूं तो सर बता ही दे देते थे , पर इतना इंतज़ार कौन करे, और खुद तलाशने का चस्का जो लगा दिया था सर ने, बस होड लगी थी सबको गणित का सुपर हीरो बनने की।
गणित का सुपर हीरो जो बड़ी -बड़ी संख्याओं को पलों मेँ जोड़ दे, घटाव कर दें, गुणा कर दें, भाग कर दें, पहेलियों को सुलझा दें, अनबूझ सवाल बना दें और हर चीज मेँ गणित दिखा दे! मुझे भी तो गिनपरी कहा जाने लगा था स्कूल के दिनों से ही, गणित के सुपर हीरो मेँ हम सब बच्चे खुद को फिट करके देखने लगे थे, ये वो दौर था। पर सुपर हीरो बनने का सफर बेहद लंबा और मेहनतकश था, अभी सुपर हीरो बने रहने दो, जब होश मेँ आऊँगी आगे की कहानी सुनाऊँगी।
