एन्जॉयमैंट

एन्जॉयमैंट

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"पिछले महीने अपने गुप्ता जी गोवा गये थे, घूमने.. बड़ी तारीफ कर रहे थे, सोच रहा था के हम भी हो आयें...अगले महीने एक साथ चार छुट्टियां आ रही हैं दो-तीन और ले लूँगा, एक हफ्ते का प्रोग्राम बना लेते हैं।" विश्वास शगुन से बोला। 

"नहीं।" शगुन ने रसोई से ही जवाब दिया। 

"क्यों ?" टाई को ढीला करते हुए विश्वास ने पूछा। 

" चलो ना..थोड़ा एन्जॉय कर के आते हैं वर्ना फिर ताना मारोगी के मैं तुम्हें कहीं घुमाने नहीं ले जाता।" विश्वास ने झुंझलाते हुए कहा। 

 "रहने ही दो मुझे तो, एन्जॉय तो वहाँ तुम करोगे दस तरह की शराब पी कर...क्योंकि शराब के आगे आपको कुछ दिखाई तो देता नहीं। और पी कर आपको होश तो कुछ रहता नहीं, सुबह आप सब भूल जाते हो, रात को जो गाली गलौज करते हो हुडदंग मचाते हो..बस मुँह सा बना के माफ़ी का राग गाने लगते हो और शाम को फिर वही सब, मैं पागल हूँ क्या जो तुम्हारी गालियाँ खाने इतनी दूर जाऊँ.. यहीं ठीक हूँ मैं। "कह कर चाय का कप में विश्वास के सामने रख दिया। 

विश्वास कभी चाय को देख रहा था.... कभी सामने बैठी शगुन को कुछ कह नहीं पाया, झूठ तो नहीं कहा था शगुन ने। 



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