एकता // दोगुना...चार गुना ...// बिखरी सोच
एकता // दोगुना...चार गुना ...// बिखरी सोच
"देखिए मैं आपका साथ नहीं दूंगा, अगर मेरे घर में आवाज आती है, तब ही मैं आपके ऊपर वाले घर के लोगों को घर में आउटडोर एक्टिविटीज करने से रोकूंगा।" सुनील के अपार्टमेंट के नीचे रह रहे घर के मालिक रवि ने कहा। हुआ कुछ यूं कि सुनील के द्वारा मैनेजमेंट को बार-बार अपनी तकलीफ से अवगत कराने के बावजूद भी जब मैनेजमेंट ने सुनील के घर की छत से दौड़ने, कूदने, साइकिलिंग करने यानी सभी आउटडोर एक्टिविटीज को बंद करवाने की बजाय यह कहकर टाल दिया, कि आप सभी कॉमन वॉल, रूफ़ शेयर करते हैं अत: एक दूसरे के साथ एडजस्ट कीजिए। जैसे चल रहा है चलने दीजिए, इसका परिणाम यह निकला, कि अपार्टमेंट के सभी लोग अपने-अपने घरों में स्कीपिंग, नृत्य, क्रिकेट आदि सभी असहनीय गतिविधियां करने लगे, यानी अराजकता का माहौल बन गया। जब ये सारी आवाजें रवि के घर में भी आने लगी तो वह समझ नहीं पाया कि क्या करे, क्योंकि सुनील तो अब उसकी मदद करने वाला नहीं है, शुरू में सुनील ने जब मैनेजमेंट का निर्णय सुनने के बाद रवि से कहा था, कि आज अगर यह मेरे साथ हो रहा है तो कल कोई और इसका शिकार बनेगा, लेकिन रवि का कहना था कि मैं क्यों आपकी वजह से दूसरों के साथ अपने रिश्ते खराब करूं, आज सुनील की जगह रवि था असहाय, बार-बार सुनील के घर आता बताने के लिए कि ये-ये आवाजें आ रही हैं और सुनील कहता मेरे घर के अंदर आकर देख लीजिए और फिर रवि निराश लौटता। इधर-उधर झाँकता पर समझ नहीं पाता आवाजें कहां से आ रही है। इधर सुनील इन आवाजों का आदी हो चुका था अत: उसने ध्यान देना बंद कर दिया था। इधर-उधर रवि को बदहवास सा घूमता देख सुनील ने कहा- "रवि तुम्हारे जैसे लोगों के कारण ही हमारा देश दो सौ सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा, क्योंकि सभी अपने मतलब की रोटी सेंकते रहे, सभी लकड़ी के बंद गट्ठर की भांति होते तो कोई भी हमारी जमीन पर पैर रखने की हिम्मत नहीं कर पाता और अगर तुम एक साल पहले मेरे साथ खड़े होते तो आज परिस्थितियाँ सामान्य होती। अब तुझे मित्र कहना तो दूर मुझे परिचित कहने में भी शर्म महसूस होती है।