एक सही निर्णय-- फातिमा का सपना

एक सही निर्णय-- फातिमा का सपना

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फातिमा को हमेशा से यही लगता था कि वह गलत वक्त पर गलत परिवार में पैदा हो गई है। वर्ना ऐसा क्यों होता कि उसे आज तक कोई समझ ही न पाया! सिर्फ इतना ही तो चाहती थी वह कि पढ़ लिखकर साक्षर बन जाए। बस!! अपने अम्मी अब्बू की अनपढ़ वाली जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है भला ? लोग बाग को कभी उन्हें किसी भेड़ बकरी से ज्यादा तवज्जो देते नहीं देखा!

जब पहले दिन फातिमा अपनी मम्मी का हाथ पकड़कर हमारे घर काम करने आई थी, उसीदिन मुझे लगा था कि यह लड़की थोड़ी अलग है। उसकी आंखों में एक सपना था- पढ़ने का! वह कम से कम दसवीं पास कर जाना चाहती थी क्योंकि उसने अपनी पुराने स्कूल की मास्टरनी से सुन रखा था कि साक्षर कहलाने के लिए सिर्फ अपना नाम लिखना ही नहीं आना चाहिए बल्कि हिसाब किताब के साथ- साथ थोड़ी इतिहास -भूगोल की जानकारी भी होनी चाहिए। मुझे पढ़ी -लिखी जानकर वह ज़रा मेरे पास खिसक आई थी उसदिन।

"आप मुझे पढ़ाओगी, अंटी?"

"चल चुपचाप अपना काम कर फातिमा!" उसकी मां सलमा उसे डाँटते हुए काम पर घसीट ले गई।


इसके बाद रोज सुबह वह आ जाती थी हमारे घर, काम करने। इतनी छोटी सी बच्ची से काम करवाना मुझे मंजूर न था। पर उसकी मां उसे पढ़ने देना न चाहती थी। पूछने पर फातिमा ने कहा कि उसके अब्बा बच्चियों को पढ़ाने के खिलाफ हैं। उसका जल्द ही निकाह तय होनेवाला है। महज बारह बरस की तो वह है और अभी से निकाह?? मैंने सलमा को बुलाकर बात करना चाही।

"दोनों बेटों को तो मदरसा भेजती हूं बीबीजी! औरत जात ज्यादा पढ़लिखकर क्या करेगी। आखिर बच्चे ही तो जनने है उसे!" कहकर सलमा अपना कोख सहलाने लगी।

चार बच्चे पहले से ही थे उसके और पाँचवा पैदा होने वाला था! वह बेचारी कहती भी तो क्या? शौहर के खिलाफ कुछ कहने की हिम्मत अगर उसके पास होती तो अबतक क्या वह चार बच्चों की जननी होती? छोटी बेटी अभी छः महीने की भी न हुई थी कि फिर से पेट में उसका दूसरा बच्चा आ गया था!!


मुझे सलमा को देखकर हरपल महसूस होता था कि शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत अगर किसी को है तो इन्हीं लोगों को।

फातिमा छुपछुपकर मेरे पास आकर पढ़ने लगी थी। अपनी रोज सुबह काम करने के बहाने अपनी अम्मी से भी पहले आ जाया करती थी और आधा पौना घंटा मेरे से पढ़ लिया करती । फिर दोपहर को जब उसकी अम्मी सो जाती थी तो वह चुपके से, बिल्लियों की भांति दबे- पांव मेरे घर पर फिर एकबार आ जाती थी और कुछ देर और पढ़ती थी। उसकी लगन देखकर मैं भी अब उसे ध्यान से पढ़ाया करती थी। काॅपी किताब की समस्या न थी। मेरे बच्चों के पुराने किताब और काॅपियों का अब सही मायने में सद्गति होने लगा था।


फातिमा की स्मरण शक्ति बड़ी अद्भुत थी!एकबार जो पाठ वह पढ़ती थी उसे हमेशा याद रहते थे। तेरह साल की छोटी आयु में ही उसने आठवीं जमात के पाठों को भली भांति पढ़ लिया थी। उसका कोई फाॅर्मल एजुकेशन न होने के बावजूद भी!! इतनी ही कुशाग्रबुद्धि थी वह। हम दोनों को ही आशा थी कि अगले दो सालों में वह पूरी तरह से बोर्ड की परीक्षा में बैठने के लिए तैयार हो जाएगी। प्राइवेट से उसे परीक्षा दिलाने का प्लाॅन था मेरा।


पर हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ और है। फातिमा की पढ़ाई अब अच्छी तरह से चल ही रही थी कि उसके अब्बा ने उसका निकाह पढ़वा दिया। ससुराल जाने से पहले उसने सबसे नजरें बचाकर मेरा हाथ पकड़कर कहा था,

" आंटी, चाहे जो भी हो, अगले वर्ष मै दसवी का इम्तिहान जरूर दूंगी! आप देखना!"


उसके ससुरालवाले कट्टरता में उसके अब्बा से भी दो अंगुल आगे थे। उसका शौहर जफर औरतों को हरदम बुर्खे में रखने का हिमायती था। शादी के बाद फातिमा को गैरों से न बोलने चालने की सख्त हिदायत दे दी गई थी। यहां तक कि अब मेरे साथ उसके बात करने का भी कोई जरिया न बचा था।


एकदिन सबसे छुपकर उसने मुझे पीसीओ से काॅल किया था, बोली--

" आंटी, आप मेरा फाॅर्म भर देना मैं इम्तिहान के दिन कैसे भी करके आ जाऊंगी।"

मुझे भला इसमें क्या आपत्ति होती? मैंने सहमति जताई।

फिर उससे पूछा -" कैसी है तू?"

उधर से कुछ देर तक कोई जवाब न आया। उसकी खामोशी लेकिन बहुत कुछ बयां कर रही थी।

परंतु पलभर बाद ही वह चहकती हुई बोली,

" मेरी तैयारी खूब अच्छी हुई है, अंटी। देखना मैं बहुत अच्छे नंबरों से पास हो जाउंगी।"


इम्तिहान को अब सिर्फ एक महीना रह गया था! और मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था। जफर के बारे में जितना सुना था पता नहीं फातिमा कैसे इम्तिहान के दिन आ पाएगी।

इम्तिहान के जब दो दिन रह गए तो सब गड़बड़ हो गया। न जाने जफर की अम्मा को कैसे फातिमा के छुपछुपकर पढ़ाई करने और इम्तिहान में बैठने के इरादों की बातों की भनक लग गयी और उसने जाकर जाफर को बता दिया। फिर तो फातिमा की जिन्दगी में मानो भूचाल ही आ गया। उसकी हिमाकत पर जफर को इतना गुस्सा आया कि उसने क्रोध में आकर फातिमा के दाहिने हाथ की सारी ऊंगलियां काट दी।


वह लड़की जब बेहोश हो गई तो उसके पड़ोसी ने उसे उठाकर असपताल में दाखिल करा दिया। इधर जफर का जब गुस्सा ठंडा हुआ और अहसास हुआ कि उन्होंने क्या किया तो दोनों अम्मा-बेटे सलाह मशविरा कर कहीं फरार हो लिए!!


सलमा ने जब यह सुना तो उसने अपना छाती पीट लिया। मैं जब अस्पताल में फातिमा को देखने गई तो वह चुपचाप सीलिंग को ताके जा रही थी। और इधर सलमा गला फाड़फाड़कर अपने अनुपस्थित शौहर को गालियां दिए जा रही थी। उसीको अपनी बच्ची के इस हालत के लिए जिम्मेदार मान रही थी कि उसीने जबरदस्ती जफर से उसका निकाह करा दिया था। अब शायद पछताने के लिए भी बहुत देर हो गई थी। पर मैं तुरंत ही गलत साबित हुई।


जब फातिमा के कंधे को मैंने हौले से छुआ तो वह एकदम से बोल पड़ी--

" अंटी मेरी बाई हाथ की सारी ऊंगलियाॅ अभी तक सलामत है। मैं उससे लिखना सीख रही हूं। अगले साल तक जरूर परीक्षा के लिए तैयार हो जाऊंगी!"

उसकी बात सुनकर सलमा भी थोड़ी देर के लिए ठिठक गई!

उसकी हिम्मत देखकर मैं भी थोड़े समय के लिए निःशब्द हो गई।अपने सपने को फातिमा मुट्ठी में कसकर पकड़ने की भरसक कोशिश कर रही थी।


कुछ देर बाद मैंने उससे कहा, बल्कि मुझे कहना ही पड़ा--

" अबकी बार तू इम्तिहान जरूर देगी, फातिमा! जी ले अपने सपने! अब तेरे पीछे मैं खड़ी हूं। देखूं कौन इसबार तुझे रोकता है?"

मेरी बात सुनकर सलमा की आंखों से दो बूंद आंसू कृतज्ञता के ढुलक पड़े। उसे अपनी बेटी की जिद्द पर पहली बार फख्र हो रहा था।



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