एक लड़की की कहानी
एक लड़की की कहानी
एक लड़की थी, उम्र करीब ५-६ वर्ष, बहुत ही हँसमुख, नाम भी मधुरिमा था। सारा सारा दिन बस खेलने में मशगूल। कुछ घंटे सुबह प्ले स्कूल में गुजारने के बाद घर आते ही अपनी बहनों और सहेलिओं के साथ सारा दिन बस खेल कूद और हंसी ठिठोली। माँ बाप की भी बहुत ही प्यारी और चहेती बेटी थी, बचपन बहुत ख़ुशी ख़ुशी बीत गया।
थोड़ी बड़ी होने पर स्कूल बदल गया। छठी क्लास में होने के कारन होम वर्क भी मिलने लगा। अब खेलने के लिए थोड़ा कम समय मिलता था पर जो भी समय मिलता अपने दोस्तों के साथ खेलने में बिताती। जानवरों से उसे कुछ ख़ास प्रेम था, घर में एक कुत्ता था जिसे वो सुबह शाम सैर ले के जाती थी।
जानवरों की कुछ किताबें भी उस ने अपने पापा से मंगवा के रखीं थी और उन्हें बड़े चाव से पढ़ती।
पढ़ाई में भी काफी होशयार होने के कारण दसवीं कक्षा में काफी अच्छे नंबरों से पास हो गयी। घरवालों ने भी उसे साइंस सब्जेक्ट दिलवा दिया। आई आई टी की तैयारी करने के लिए कोचिंग भी ज्वाइन करनी पड़ गयी। खेलने का वक्त अब काफी कम हो गया। साथ वाले बच्चे फ़ोन पे वीडियो गेम वगैरह खेल लेते थे पर उसे ये सब अच्छा नहीं लगता था। वो बस कभी कभी कोई जानवरों पे डॉक्यूमेंट्री इंटरनेट पे देख लेती थी।
दो साल के बाद आई आई टी में भी सिलेक्शन हो गया, उसे लगा शायद अब वो पढाई के साथ साथ खेल कूद और जानवरों से सम्बंधित किसी टॉपिक को भी वक्त दे पायेगी पर पढाई से वक्त निकलना मुश्किल था।
आई आई टी से निकलते ही उसे एक अच्छा जॉब मिल गया तब उसने सोचा शायद अब वो अपनी मर्जी का कुछ कर पाए पर जॉब की टेंशन भी उसे वो नहीं करने दे रही थी जो वो जीवन में करना चाहती थी।
फिर एक दिन अपने कुछ साथियों साथ उस ने हिमालय के जंगलों में ट्रैकिंग का एक प्रोग्राम बनाया, वो बहुत खुश थी। ट्रैकिंग घने जंगलों से हो कर गुजरती थी। ट्रैकिंग के दौरान उसे तरह तरह के पक्षी और जानवर दिखे। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। थोड़ी देर बाद उसने पाया की एक जगह वो अकेली ही है और उसका कोई साथी आस पास नहीं है। शायद वो रास्ता भटक गयी थी। अब वो काफी घबरा भी गयी थी क्योंकि अँधेरा भी छाने लगा था।
रात को उसने देखा के गोरिल्ला एक झुंड उस की तरफ बढ़ा चला आ रहा है, कुछ देर के लिए तो वो भागी पर फिर बेहोश हो के गिर पड़ी। जब सुबह उसे होश आया तो उस के आस पास ३-४ बड़े बड़े गोरिल्ला बैठे थे पर वो बहुत शांत लग रहे थे। वो पहले तो बहुत डरी पर जब उसने देखा के गोरिल्ला उससे बहुत ही अपनों जैसा वर्ताव कर रहे हैं तो उसका डर जाता रहा।
इधर मधुरिमा के घर वालों ने ये मान लिया था के शायद वो अब इस दुनिया में नहीं रही। कुछ वक्त बीतने पर उन्होंने उसे ढूंढ़ना भी बंद कर दिया।
मधुरिमा अब उन गोरिल्ला से खूब घुल मिल गयी थी। गोरिल्ला उसको खाने के लिए फल ला कर देते और उसे भी अपने परिवार का सदस्य मानने लगे थे। मधुरिमा भी गोरिल्ला के छोटे बच्चों के साथ खेलती। उसे लगा शायद उसका बचपन फिर से लौट आया है। मधुरिमा अब उन के इशारे भी कुछ कुछ समझने लगी थी और उसे ये लगता था के शायद गोरिल्ला भी उस की बात को कुछ हद तक समझते हैं।
उसको ये लगने लगा था के जो ख़ुशी वो ढूंढ रही थी शायद वो अब उसे मिल गयी है।
१-२ साल के बाद ट्रैकिंग के लिए एक ग्रुप उस तरफ आया तो उसने देखा के एक लड़की कुछ गोरिल्ला के बीच रह रही है। उन्हें ये देख कर बहुत आश्चर्य हुआ। मधुरिमा का मन अब वहां से जाने को नहीं कर रहा था और वो इस दुविधा में थी कि यहाँ खुशी से अपना जीवन बिताये या फिर उसी पुरानी नीरस शहरी जिंदगी में फिर से चली जाये।