एक किताब..
एक किताब..
वैसे तो इतना कुछ पढ़ा है कि कितना याद रखें और कितना भूलें.. पर कुछ यादें ऐसी हैं जो अमिट हैं...
हमें दो किताबें ताउम्र याद रहेंगी.. क्योंकि उसके साथ जुड़ी बातेँ आज भी गुदगुदाती है..
बात तब कि जब हम शायद नवमी कक्षा की छात्रा थे.. हमारे पड़ोस में एक महिला रहती थीं... जैसे जगत भाभी होती है न,, वैसे वो जगत मामी थीं.. बेहद खूबसूरत और हँसमुख.. उन्हें किसी ने भाभी कहा हो,, ये याद नहीं,, हमारी जितनी जानकारी थी उसके मुताबिक वो सब की मामी ही थीं.. खैर हम भी विषय से क्यों भटक रहे हैं..
जी,, तो हम बता रहे थे कि उन्होंने घर में ही छोटी सी लाइब्रेरी बना रखी थी,, पर सिर्फ उपन्यास की,, और कुछ नहीं..
उन्हें और उनके पति को बेहद शौक था उपन्यास पढ़ने का..
गर्मियों की छुट्टियों में एक दिन यूं ही हम उनके घर चले गए.. चूंकि पढ़ने का शौक था तो उन्हें पूछा कि "क्या हम ये हम पढ़ सकते हैं..?"
पहले तो उन्होंने मना किया.. "ओके" कहकर जब हम जाने लगे तो उन्होंने रोका..
"अच्छा देख लो.. "
"आप ही दे दीजिए न.. हमे नहीं पता उपन्यास के बारे में.. "
"तुम पहले देख लो,," उन्होंने कहा..
हम उपन्यास की छोटी सी लाइब्रेरी में चले गए... अब जानकारी तो कुछ थी नहीं,,, काफी सारे निकाल कर अलट पलट कर देखा,, फिर एक महिला लेखिका का नाम देखकर उसे निकाल लिया..
"मामी जी,,, इसे ले जाएं हम पढ़ने??? "
"दिखाओ कौन सा है?? "
हमने उपन्यास उनकी तरफ बढ़ा दिया... वो मुस्करा दी.
"क्या हुआ मामी जी??? आप मुस्करा रहीं हैं. कभी पढ़ी हो पहले इन्हें???"
"इन्हें क्या,, हमने तो किसी को नहीं पढ़ा आज तक.. "
"ओह,, तुम रुको मैं दूसरी देती हूं.. "
"जी.. "
"कुछ ही पल में उन्होंने वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास हमें दिया.. ,, ममता का बँटवारा,, "
घर लाकर उसे पढ़ने बैठ गए... काफी बड़ा उपन्यास था.. कुछ ही पेज पढ़ पाए थे कि भाई आए..
हमें उपन्यास पढ़ते देख खुशी से हिप हिप हुर्रे बोलकर नाचने लगे.. वैसे वो हम से ज्यादा बड़े है पर हम दोनों की अच्छी पटती है..
"क्या हुआ भाई.. ये नाचने की क्या सूझी.. ?"
"ओये,, पिताजी की सरचढ़ी... "
वो जब हमें चिढ़ाते थे तो इसी नाम से पुकारते थे.. क्योंकि एक हम ही थे जिन्हें पिताजी ने कभी नहीं डाँटा.. सब कहते थे कि हम उनकी परछाई हैं.. शक्ल अक्ल सब में.. स्वभाव तक.. ये हिटलर शाही हमें विरासत मे मिली है.. उनके गुस्से से सभी लोग घर में बहुत डरते थे.. यदि किसी से कोई गलती हो जाए तो हमें आगे कर दिया जाता था..
कि जाओ सम्भालो...
भाई को यूं खुश देखकर हमने फिर पूछा.. "क्या हुआ आपको???"
"हुआ कुछ नहीं गुड़िया बल्कि होने वाला है.. "
"पर क्या होने वाला है??? "
"पिताजी की सर चढ़ी को डांट पड़ने वाली है,, पहली बार.. "
"अरे,,, हमने तो ऐसा कोई काम नहीं किया न.. फिर क्यों??? "
"वो इसलिए गुड़िया,,," कहते हुए भाई ने हमारे हाथ से उपन्यास छीन लिया..
"मतलब??? "
"मतलब ये कि,,, पिताजी ने यदि घर में इसे देख लिया न तो तूफान आ सकता है... मैं भुगत भोगी हूं.. "
"अच्छा,, वो कैसे?"
"तुम्हें शायद याद हो,, करीब चार साल पहले पिताजी ने मेरी सारी बुक्स निकलवाई थी मेरी आलमारी से.. "
"हां याद तो है.. शायद हम स्कूल से लौटे थे और आपकी सारी किताबें बिखरी पड़ी थीं.. "
"बस यही कारण था.. मेरे एक दोस्त ने मुझे जासूसी उपन्यास पढ़ने को दिया था.. उसे मैं पढ़ भी नहीं पाया था कि पिताजी की नजर पड़ गई.. और फिर मेरी जो शामत आई बहना,, तुम क्या जानो.. एक उपन्यास के चक्कर में सारी आलमारी खाली करवा दी पिताजी ने की और छुपा कर तो नहीं रखा..
फिर सख्त हिदायत की आज के बाद मुझे ये नजर नहीं आना चाहिए.. और आज उनकी लाड़ली उपन्यास लेकर मजे से पढ़ रही है.. वाह वाह.. "
"पर भाई,, इसमे बुराई क्या है?? "
"एक काम करना,, पिताजी आयें तो पूछ लेना,," कहकर भाई मुस्कराते निकल लिए..
हम असमंजस में पड़ गए..
माँ से पूछा... की पिताजी उपन्यास पढ़ने से मना क्यों करते हैं..
अरे बेटा.. अभी तुम्हारी उम्र है क्या ये सब पढ़ने की.. अच्छी किताबें पढ़ो..
पर माँ,, ये भी बहुत अच्छी है.. आप भी पढ़कर देखो....
रहने दे... वापस कर दे.. तेरे पिताजी देखेंगे तो गुस्सा करेंगे..
पर हम ठहरे जरा जिद्दी.. जब तक वजह ना जान लेंगे,, तब तक तो वापस करने से रहे..
पिताजी को आने में दो दिन बाकी थे.. रेल्वे में ड्राईवर थे.. गाड़ी लेकर जाते तो चार पांच दिन नहीं आते थे..
उस बीच हमने काफी सारा पढ़ लिया.... और जितना पढ़ा उस से ये अंदाज तो लगा ही लिया कि इसे पढ़ने से मनाही क्यों है..
उम्र का तकाज़ा था.. पूरा पढ़ने के लोभ से बच नहीं पाए..
पिताजी के आने के पहले उपन्यास खत्म कर चुके थे... वापस नहीं कर पाए थे कि पिताजी आ गए..
हम उसे छुपा भी नहीं पाए थे.. हालाकि वो ऐसी जगह थी जहां से पिताजी को शायद वो नजर नहीं आती..
शाम हम सब बैठे बाते कर रहे थे.. अचानक भाई ने मुझे इशारा किया कि उपन्यास को वहां से हटा दो..
हमने भी कनखियों से देखा.. थोड़ा डर लगा और खुद पर गुस्सा भी आया कि लापरवाही क्यों कि हम ने.. वापस कर देते तो ठीक था..
हम दोनों की इशारे बाजी पर पिताजी की नजर पड़ गई.. और हम से होकर उस दिशा में जहां हम दोनों की नज़र जा रही थी..
उन्होंने भाई से कहा.. क्या है वहाँ, निकालो उसे..
डरते हुए भाई ने उपन्यास निकाला..
पिताजी एक गलती माफ़ कर चुके थे.. और ये उनकी नजर से भाई की दूसरी गलती थी..
जिस तरह से उन्होंने भाई की तरह देखा, हमें लगा कि शायद अब भाई को मार भी पड़ सकती है..
ऐसा कुछ होता इस से पहले हम बोल पड़े..
पिताजी...
उसी अंदाज में पिताजी ने हमे देखा.. और ये पहली बार था कि इतने गुस्से भरी नजरें हमारी ओर उन्होंने उठाई थी..
पिताजी,, ये हम लाए थे....
गुस्से की अधिकता या हम पर नाराज ना होने की विवशता थी,,, पिताजी ने उपन्यास के दो हिस्से कर दिए.. और उठकर दूसरे रूम में चले गए..
हमे समझ नहीं आया कि इतनी सी बात पर आखिर इतने नाराज क्यों है पिताजी..
उस वक्त हम चुप रहे.. करीब एक घण्टे बाद हम पिताजी के पास गए.. और बस इतना ही कहा..
हम से गलती हो गई पिताजी.. माफ़ कर दीजिए..
तब तक उनका गुस्सा शांत हो चुका था.. बड़े प्यार से उन्होंने हमें पास बिठाया और कहा..
मुनिया.. प्यार से हमें वो ऐसे ही पुकारते थे..
तुमने पढ़ा उसे..
जी..
पूरा..
जी..
तो भी चाहती हो कि मैं वजह बताऊँ...
नहीं पिताजी.. और बात वहीं खत्म..
उपन्यास चूंकि बड़े होते हैं.. और उनमें कुछ ऐसी सामग्री होती है जो कई बार मन मस्तिष्क को विचलित कर देती है.. इसका शौक एक नशे की तरह होता है.. एक बार लगा तो बस पूरा पढ़कर ही चैन मिलता है..
ये पहला वाक्या था.. चूंकि पहली बार पिताजी ने हमारी तरफ गुस्से से देखा था.. इसलिए आज भी याद है..
फिर काफी समय बाद उपन्यासों की ऐसी वापसी हुई हमारी जिंदगी में की क्या बताएं..
और जो उपन्यास मामी जी ने हम से लिया था उस लेखिका का उपन्यास भी हमारी नजरों के सामने आया.. और सरसरे तौर पर हमने पढ़ा भी.. उसके बाद फिर कभी नहीं..
और दूसरी किताब थी,, पाखी,,
अनीता आर्य,,
प्रेम कहानी है... पर अद्भुत है.. अनीता जी ने प्रेम को जिवंत कर दिया अपनी शब्द शैली से..
खैर,, हम उस कहानी की वजह से उसे याद रखे है ये तो है ही,,, पर उस से भी बड़ी वजह ये है कि उस किताब को हमारी जानकारी में दस बार पढ़ी है हमारी गुड़िया ने..
आप सोच रहे होंगे इसमें आश्चर्य क्यों.. और याद रखने वाली बात क्यों..
क्योंकि वो ऐसी जीव है जिसे किताबे पढ़ने से एलर्जी है.. यहां तक कि हमारा लिखा भी वो नहीं पढ़ती.. खास उसके लिए लिखा था वो तक नहीं पढ़ती.. पर आज भी वो पाखी पढ़ना चाहती है.. उस किताब का उस पर इतना असर की उसने अपनी बिटिया का नाम पाखी रखा.
वैसे हम पढाकु हैं.... पढ़ने से कभी मन नहीं भरता,, पर ये दो किताबें हमारी जिंदगी की यादगार है.. आपको उपलब्ध हो तो जरूर पढियेगा.
अरे हाँ,, बीच में एक पहेली छोड़ दी शायद हमने.. चलिए हल कर देते हैं..
रीमा भारती.. लेखिका का नाम...
