Ragini Pathak

Children Stories Inspirational

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Ragini Pathak

Children Stories Inspirational

एक बेटी का पिता

एक बेटी का पिता

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"हेल्लो! पापा आप अब और अकेले उस घर में नहीं रहेंगे। अगर आज आपको कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाती। अच्छा हुआ जो आपको कहीं चोट चपेट नहीं आयी। वैसे भी दीवाली आने में अब बस कुछ दिन ही है। तो अकेले कैसे त्यौहार मनाएंगे। यहाँ सबके साथ अच्छा लगेगा। मन भी लगा रहेगा। नमन को मैंने कह दिया है। आप आ जाना उनके साथ... .. खुशी की तबीयत ठीक होती तो मैं खुद ही आ जाती। "'रमा ने अपने पिताजी अवधेश जी से कहा

"अरे!बेटा तूने खामखा दामाद जी को परेशान किया। मैं यहाँ ठीक हूँ।" अवधेश जी ने कहा

"पापा अब मैं कुछ भी नहीं सुनने वाली, बस आप आ रहे है,=अब आप हमारे साथ ही रहेंगे,=फोन रखती हूं आप का इंतजार करूँगी"-रमा ने कहा

"माँजी ठीक किया ना मैंने पापा को यहाँ बुला कर।" रमा ने अपनी सास सरला जी से कहा

"हाँ बेटा! मातापिता बच्चों के साथ नहीं रहेंगे,तो कहाँ जाएंगे, अच्छा किया तुमने जो समधी जी को बुला लिया" सरला जी ने कहा


रमा अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। रमा के मां का निधन हो जो जाने से अवधेश जी अकेले हो गए थे। सीढ़ियां उतरते वक़्त पैर फिसला लेकिन वो गिरने से बच गए थे।


सुबह से शाम हो गयी। रमा को अपने पापा का इंतजार करते करते। रसोई से लेकर सफाई तक कोई भी काम करती लेकिन उसका ध्यान दरवाजे और फोन पर ही टिका हुआ था कि कब उसके पापा आएंगे?

रमा लगातार फोन पर फोन किये जा रही थी लेकिन कोई भी फोन नहीं उठा रहा था। कभी मन में अनहोनी की आशंका होती, तो कभी मन कहता,नहीं सब ठीक होगा।

रमा के चेहरे पर उसके मन का डर, घबराहट और बेचैनी साफ झलक रहा था ।

रमा की सास ने रमा को ढाढस बंधाते हुए कहा "बहु चिंता मत करो आ जाएंगे थोड़ी देर में।"

"हाँ माँजी लेकिन सिर्फ 3 घंटे ही तो लगते है। यहाँ तो सुबह से शाम हो गयी। और कोई फोन भी नहीं उठा रहा। इसलिए मन बेचैन हो रहा था।" रमा ने कहा

तभी दरवाजे की घंटी बजी। रमा सोफे से उठकर भाग के दरवाजा खोलने गयी। देखा सामने नमन थे सिर्फ।

रमा नमन के अगल बगल झांकने लगी। तभी नमन ने कहा "अब घर के अंदर भी आने दोगी मुझे"

"हाँ हाँ नमन आओ ना। पापा कहाँ है?" रमा ने कहा

"जहाँ होना चाहिए और कहा" नमन ने कहा

"मतलब'' रमा ने गुस्से भरे स्वर में पूछा

वही वृद्धाश्रम में छोड़कर आया हूं। जो बात तुम नहीं समझी वो तुम्हारे पिताजी समझ गए। और तैयार हो गए आश्रम जाने के लिए।- नमन ने कहा

"'नमन तुम पागल हो चुके हो मैंने तुम्हें मना किया था कि तुम वृद्धाश्रम की बात मेरे पापा से नहीं करोगे।" रमा ने कहा


देखो! रमा जैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि अगर बाबूजी की जगह तुम्हारी माँ होती तो मैं एक बार सोचता भी साथ रखने के लिए। लेकिन मैं तुम्हारे पापा को साथ नहीं रख सकता। क्योंकि माँ को कंफर्टेबल नहीं रहेगा। और वो भी कंफर्टेबल नहीं रहते। समझी

ये क्या बात हुई नमन ? तुम्हारे लिए तुम्हारी मां सब कुछ और मेरे पापा कुछ भी नहीं। माफ करना जैसे माँजी की खुशी तुम्हारे लिए पहले मायने रखती है वैसे ही मेरे पापा की खुशियां भी मेरे लिए मायने रखती है। मैं जा रही हूं। मैं अपने पापा के साथ ही रहूंगी।

तभी रमा के फोन की घण्टी बजी। देखा तो उसके पापा का ही फोन था उन्होंने कहा "हेल्लो रमा बेटा तुम चिंता मत करना। मैं यहाँ ठीक हूँ। तुम अपना और खुशी का ख्याल रखना।"

"लेकिन पापा आप क्यों गए? मैं आ रही हूं मैं आपको वृद्धाश्रम में नहीं रहने दूँगी बस।" रमा आंखों से बहते आंसू पोंछते हुए कह रही थी।

"तुझे मेरी कसम है बेटा, तू अपना घर संसार सम्भाल में यहाँ ठीक हूं तू यहाँ नहीं आएगी, मैं फोन रखता हूं"

रमा इतना सुनते वही सोफे पर बैठ कर मुँह पर हाथ रख कर बेतहाशा रोने लगी, रोते रोते उसने नमन कहा से "क्यों नमन क्यों किया तुमने ऐसा, एक बेटी के पिता की जगह वृद्धाश्रम क्यों?"


सरलाजी ये सब कुछ चुपचाप देख और सुन रही थी। लेकिन चुपचाप ही रही अगले दिन भी रमा रो रो के उदास मन से दीवाली की सफाई में लगी हुई थी। वो सोच रही थी कि काश वो लड़का होती तो उसके पापा के साथ ऐसा कभी नहीं होता।

इधर 3 साल की खुशी लगातार सरलाजी के ठीक सामने रोये जा रही थी। लेकिन सरलाजी उसको गोद में नहीं ले रही थी।

तभी नमन ने खुशी को गोद में उठाते हुए कहा "मां आप ने खुशी को उठाया क्यों नहीं ??"

"मैं क्यों उठाऊ इसको ये किस काम की मेरे। तू तो अब बस दूसरे बच्चे की तैयारी कर और हाँ लड़का ही होना चाहिए। तभी मैं उसको गोद में लुंगी। अब चाहे उसके लिए तुझे जो भी करना पड़े-"'सरलाजी ने कहा


नमन ने गुस्से में कहा " माँ आज आप कैसी बातें कर रही हैं। ऐसा कौन सा काम है जो मेरी बेटी नहीं कर सकती। जो एक बेटा कर सकता। दुनिया चांद पर पहुंच गया और आप अभी भी उसी पुरानी मानसिकता में है। आज बेटियां किसी मुकाबले में बेटों से कम नहीं है। बेटी हर वो काम कर सकती है जो एक बेटा कर सकता है। यही आज के युग की सच्चाई हैं। आप की सोच पहले तो ऐसी नहीं थी""

"हो सकता है कि बेटियां सब कुछ कर सकती हो लेकिन बूढ़े पिता का सहारा नहीं बन सकती। उन्हें रहने के लिए छत नहीं दे सकती। और मैं नहीं चाहती कि जिस बेटे को मैंने इतने लाड़ प्यार से पाला पोसा। उसको अपना बुढ़ापा वृद्धाश्रम में बिताना पड़े।"


"क्योंकि क्या पता कल को बेटी का पति या ससुराल वाले कैसे मिले, कही उनलोगों ने रखने से मना कर दिया तो, जैसे तूने समधी जी को वृद्धाश्रम छोड़ दिया। तुझे अपनी बेटी का रोना दिख गया लेकिन दूसरी बेटी के रोने पर आंखें मूंद ली "-सरलाजी ने कहा

नमन ने सिर झुका लिया और कहा "लेकिन माँ मैंने तो आपकी सुविधा की खातिर ये किया।"

नमन तो तुमने मुझसे पूछना भी जरूरी नहीं समझा। उनके रहने से मुझे असुविधा क्यों होगी। माता पिता को बुढ़ापे में अगर बच्चे सहारा नहीं देंगे तो कौन देगा?


समधी जी के यहाँ रहने से मुझे कोई समस्या नहीं है ये तो तेरी सोच का फर्क है बेटा। वरना उनके रहने से तो हम सब को सुविधा ही रहती। अंदर बाहर के छोटे मोटे काम तो समधी जी ही कर लेते, वो बुजुर्ग हुए है लाचार नहीं, परिवार होते हुए भी तुमने उन्हें अकेला कर दिया। थोड़ा सोच कर देख बेटा अगर तू आज समधी जी की जगह होता तो तुझे कैसा लगता, जब एक बेटे के मातापिता अपने बेटे के साथ रह सकते हैं तो एक बेटी का पिता क्यों नहीं अपनी बेटी के साथ रह सकता हैं दीवाली प्रकाश का पर्व होता हैं। आज के दिन राम जी का वनवास समाप्त होकर अयोध्या वापसी हुई थी। और तूने उन्हें अंधेरे में छोड़ दिया। कैसे मनाएगा तू अपनी दीवाली खुशियों वाली एक बाप बेटी को दुखी कर के, जिस घर की गृहलक्ष्मी ही दुःखी होगी, वहाँ लक्ष्मी जी कैसे वास करेंगी ।

नमन को अपनी माँ की बाते सुन के गलती का एहसास हो गया। उसने कहा मां आप ने बिलकुल सही कहा मैंने इस नजरिये से तो सोचा ही नहीं।


नमन ने तुरंत अपनी कार निकाली। और रमा से कहा "रमा चलो बाबूजी को लेने।"

नमन पूरे परिवार के साथ वृद्धाश्रम पहुंचा। तो देखा कि अवधेश जी चुपचाप अकेले कुर्सी पर बैठे पौधों को एकटक ध्यान से देख रहे थे।

रमा दौड़कर अपने पिता के गले लग गयी। और नमन ने  भी अपने  व्यवहार के लिये माफी मांगी। और घर चलने के लिए कहा "तो अवधेश जी ने कहा कि मैं यहाँ ठीक हूँ आराम से हूँ, आप लोग चिंता मत कीजिये।"


तभी सुधा जी ने कहा "समधी लेकिन हमें तो आराम नहीं। आप संकोच ना करें। वो घर भी आपका ही है। "और सभी लोग एकसाथ घर आ गए।"

तब रमा ने कहा "माँजी आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपने मुझे दीवाली का अनमोल उपहार दिया।"



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