दस्तक
दस्तक
भीगी-सी दस्तक है सावन की मन पर। कितनी लुभावनी है इस शब्द की ध्वनि।
सावन कहने भर से लगता है, जैसे मौसम ने शहनाई बजाई हो, शहनाई की तरह ये भी मंगल घोषणा हो।
"ये मौसम मेरी बहुत-सी प्यारी सुनहरी यादों को फिर से तरो-ताज़ा कर जाता है। हम भारतीय बारिश को रास्ते पर नहीं, आसमानों में देखते हैं। बारीक बूंदों के रैले धुआँ-धुआँ होती फ़िज़ाओं के नाम से पुकारते हैं। जब बादल केवल छेड़ने के मन से बरस रहे हो तो उसको हल्की फुहार कहते है। मेंघों की गर्जन को खुशहाली का शंखनाद और झड़ी को मौसम की ज़ुबान कहते हैं।
आज से चालीस साल पहले में मैं दूसरी बार विदा हो कर ससुराल आई, घर के बड़े लेकर आए हम क़रीब रात के आखिरी पहर में घर पहुंचे थे। उस रात बारिश इतनी ज़्यादा थी, हम घर पहुंचे तो मैंने देखा के "मेरे पति" बाहर बरामदे में खटिया बिछाकर सो रहे हैं।
मेरी सास बोली दुल्हन ये इसकी पुरानी आदत है, टीन वाले शैड के नीचे खटिया बिछाकर ही सोता है ये लड़का इसे बारिश से बहुत प्यार है, टीन पर गिरती हुई बारिश की बूँदों को ये संगीत कहता है।
अब तुम ठीक कर लेना इसे मैं शर्मा कर अंदर चली गई मगर मेरी सास को ये नहीं मालूम था की मैं बिल्कुल अपने पति की तरह ही सोचती हूँ बारिश को बहुत इंज्वॉय करती हूँ।।