Sunita Mishra

Children Stories Drama Tragedy

4.4  

Sunita Mishra

Children Stories Drama Tragedy

दोस्त

दोस्त

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हम तीन, यानी मैं, प्रमिल और सुमित। कहते है तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा। पर यहाँ उल्टा था हम तीन तिगाड़ा काम सुधारा थे। प्रमिल सबसे होशियार, पढाई में अव्वल, अच्छा एथलीट, अच्छा वक्ता , गायक, बोले तो परफेक्ट परसन। सुमित एवरेज, और मैं सबमें फिसड्डी। पर दोस्ती में कोई अंतर नहीं। 5th क्लास से एक साथ। प्रमिल हमेंशा फ़र्स्ट आता। सुमित की सैकेण्ड ही रहती। और मेंरी किसी न किसी विषय में सपलिमेंटरि। पर दोस्ती का इससे कोई सम्बंध नहीं। यारो की यारी। बगीचे के आम चुराना, लोगो के आँगन में लगे अमरूद के पेड़ पर पत्थर मारना। तालाब पोखर में तैरना। बेट बॉल पर चौके-छक्के मारना। एक दूसरे की गलती अपने सिर लेना। नई नई शैतानीयो को ईज़ाद करते थे। सुमित के घर के सामने वाले घर में मियां-बीवी रहते थे। वो अंकल बहुत तीखे स्वभाव के थे। हम लोग तो उनसे अक्सर डांट खाते थे। एक दिन तो गज़ब हो गया। एक बूढ़ी अम्माँ ने उनके घर के बाहर लगे कनेर के पेड़ से फूल तोड़ लिये। बस फिर क्या अंकल ने उन्ह्रे इतना बुरा भला कहा की वो बिचारी रो पड़ी। सुमित ने हम लोगो से ये बात बताई। मुझे तो बहुत गुस्सा आ गया। प्लान बना, रात में हमने चुप चाप पेड़ो की डालियों को खीच खींच कर गिरा दिया। सारे फूल तोड़ लिये सोचा कल अम्माँ को दे देंगे। मैंने ऊपर की डाली को पकड़ नीचे खींचा डाली खासी मोटी थी, उसने ही मुझे ऊपर खींच लिया। मैं आधा ऊपर लटक गया, डाली चर-मर आवाज के साथ नीचे गिरी और मैं धडाम से नीचे। आवाज सुन अंकल चोर चोर चिल्लाते बाहर निकले प्रमिल सुमित भाग गए, मेंरा जो हाल हुआ, अंकल की शिकायत पर घर में, जो पिटाई की पिता जी ने, अगर माँ ने बीच बचाव न किया होता, तो शायद मैं ये कहानी लिखने के लिये आज ज़िन्दा न होता। मैंने अपने भगोड़े दोस्तो से कुट्टी कर ली। पर हम बड़े लोगो में थोड़ी न थे जो कुट्टी का अचार बनाकर खाते। दो दिन के अनबोले के बाद फिर जम गई तिकड़ी।


अब एक नया प्लान बना। मुहल्ले में एक लड़की, जिसे हम दीदी कहते थे, खूब प्यारी थी वो हमें चाकलेट के साथ एक चिट्ठी देती थी। हमें चाकलेट खुद खानी थी और पत्र कमल को देना था, जो दूसरे मोहल्ले में रहता था


हमें क्या पत्र ही तो देना है। मुफ्त की चाकलेट उन तंगी के दिनो में किसे बुरी लगती। हम बहुत भोले बालक नहीं थे। पत्र हम लोग पढ़ते पर पत्र अंग्रेजी में रहते और हम अंग्रेजी में बहुत गरीब थे। बस कमल भाई का पत्र दीदी को और दीदी का कमल भाई को। चाकलेट दोनो तरफ से फ़्री। हम लोगो का बिजनेस अच्छा चल रहा था बेरोक टोक। प्रमिल थोड़ा भोंदू किस्म का था इन मामलों में। समय की नब्ज नहीं पकड़ पाता था। एक दिन हुआ यूँ की दीदी के मुसटन्डे भाई के सामने ही दीदी को कमल का पत्र पकड़ा दिया। अब आप ही अंदाजा लगा लीजिये, दीदी का क्या हाल हुआ होगा, सुना कमल भाई अस्पताल पहुँचा दिये गए। प्रमिल भी घर में नज़र बंद। पर यारो की यारी कभी छूटी है?


गले लग गई तिकड़ी। नो, अब पढाई पर ध्यान देना है। परीक्षा नजदीक है। सुमित को बुखार रहा पिछ्ले दिनो। स्कूल नहीं जा पाया था। मैं और प्रमिल इस चिंता में कि सुमित की हैल्प कैसे हो। वैसे तो एवरेज था पढ़ने में। इस बार बीमारी की वजह से रिजल्ट बिगड़ सकता है। क्या किया जाय? मेंरा ब्रेन ऐसे वक्त के लिये हमेंशा क्रिएटिव रहता है। पहला पेपर हिंदी का। टीचर जी को मस्का मारा, इम्पोर्टेन्ट प्रश्न लिये। उनके उत्तरो की छोटी छोटी चिट बनाई, उसे सुमित के मौजे में, शर्ट की कालर में, आस्तीन में छुपा दी गई। थोड़ी मैंने अपने लिये भी रखी। प्रमिल को ये पसंद नहीं। हिचकिचा तो सुमित भी रहा था पर मैंने उसे समझाया, आपातकाल में सब जायज है। अब तू बीमार हो गया था। डर मत। मैंने उसे अभय दान दिया।


किस्मत खराब थी सुमित की, रंगे हाथ पकड़े गए। सारी चिटे निकाल ली गई। दोस्ती फिर टूटी। पर रिजल्ट निकला, प्रमिल प्रथम श्रेणी, सुमित सैकेण्ड, और मेंरी मैंथ में री आई। दोस्त फिर जुड़ गए।


गर्मी की छुट्टियाँ लग गई। सुबह तीनो निकल पड़े तालाब में तैरने के लिये। मस्ती की मस्ती और तैरने की प्रेक्टिस भी। सबसे पहिले सुमित पानी में कूदा। उसके बाद प्रमिल। मैं रुक गया। मन अनमना सा हो रहा था। सुमित तैरता हुआ काफी दूर निकल गया। प्रमिल उसका पीछा कर रहा था। मैं तालाब के किनारे बैठा उन दोनो को देख रहा था। अचानक मैंने देखा तालाब के पानी के ऊपर केवल सुमित का हाथ दिख रहा था। प्रमिल तेजी से उस ओर बढ़ा। अब जैसे दोनो ही उस ओर अटक गए हो। कभी हाथ पानी के ऊपर दिखाई देता, कभी नहीं। अब माजरा मेंरी समझ में आ गया। दोनो के पैर किसी चीज में फंस गए है। मैं सहायता के लिये चिल्लाने लगा और तालाब में कूद पड़ा।


जब होश आया मैं अस्पताल में था। माँ रो रही थी। भैय्या मेंरा माथा सहला रहे थे। पिताजी डॉक्टरों से कुछ बाते कर रहे थे। मुझे याद नहीं आ रहा था कि क्या हुआ।


मैं अस्पताल से घर आ गया। उस दुख भरे सच से अवगत हुआ। पिताजी ने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर ले लिया। वो जानते थे की मैं बिना अपने दोस्तो के यहाँ जी नहीं पाऊंगा।


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