दिसंबर का सर्द महीना
दिसंबर का सर्द महीना
हां ,वह 4 दिसंबर का ही दिन था। शहर था, शिमला, हमीरपुर कड़ाके की ठंड थी और ठंड इतनी कि सुबह ब्रश करने के लिए भी सभी गर्म पानी ही ले रहे थे। आज सुपर्णा, मेरी दीदी की ससुराल पक्ष की रिश्तेदार की शादी थी। सभी रिश्तेदार हमीरपुर शादी में शरीक होने पहुंच गए थे। सुपर्णा की मां इस दुनिया में नहीं थीं। हमीरपुर उसका ननिहाल था और उसके मामा उसका विवाह ननिहाल से संपन्न कराने के इच्छुक थे, क्योंकि वर भी उन्होंने ही खोजा था। हम उत्तर प्रदेश से विवाह में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। सुपर्णा भी गुजरात के अहमदाबाद शहर से पहुंची थी। सुपर्णा एक बेहद तेजतर्रार,आधुनिक विचारों वाली लड़की थी और पुराने रीति-रिवाजों पर अक्सर ताली बजाकर हँस दिया करती थी, किंतु उस दिन क्या देख रहे हैं कि वह चुपचाप वहां की रस्में निभा रही है। एक रस्म के मुताबिक लड़के के नहान के बाद वरपक्ष के यहां से पानी आया और सुपर्णा को झरने पर जाना था और वहां नहाना था ! यू. पी .में भी कुछ इसी तरह की प्रथा थी, जब सुपर्णा सुनती तब नाक भोंह सिकोड़ती थी कहती, 'मैं तो ऐसे पानी से कभी न नहाऊं। 'उसे समझाया कि केवल पानी के छीटें मारने होते हैं, नहान का, यानी मैला पानी थोड़े ही न होता है। मगर वह हमेशा कहती, ' मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी। '
मगर हमारे आश्चर्य की सीमा न रही जब हमने देखा कि उस ठंड में जब हम दोहरे तिहरे गर्म कपड़ों में थरथर कांप रहे हैं, वह कपड़ों समेत उस पानी से नहाई और फिर झरने के ठंडे पानी से शेष सारी रस्में पूरी कीं। ठंड इतनी थी कि सड़क पर भी बर्फ जम गई थी, बर्फ के कारण गिरते - पड़ते हम किसी तरह घर पहुंचे,
सबको चिंता यही कि सुपर्णा बीमार ना पड़ जाए। फौरन उसको गरम - गरम कहवा पिलाया गया, गर्म कपड़े पहनाए गए। अब विवाह के लिए जब उसे सजाया जाने लगा तो उसने सबको यह कहकर बाहर निकाला कि अब कम से कम उसे उसके मनमुताबिक मेकअप तो करने दिया जाए।
उस दिन मैं यह सोचने पर विवश हुई कि क्या विवाह शब्द में जादू है जो सुपर्णा जैसी इतनी आधुनिक लड़की को भी मोहित कर गया या इस पवित्र रिश्ते में वह ताकत है जिसके आगे हम स्वयं ही अहम को भूल जाते हैं।
