धनतेरस महात्म्य
धनतेरस महात्म्य
धनतेरस अर्थात धन त्रयोदशी पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है । पाँच दिवसीय दीप पर्व का श्रीगणेश धन तेरस से ही होता है ।
धनतेरस देव वैद्य भगवान धन्वन्तरि का जन्मदिन है । सतयुग में दैत्यों तथा देवों द्वारा अमृत प्राप्ति के उद्देश्य से समुद्र मंथन किया गया था । भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश सहित कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को समुद्र-मंथन से प्रकट हुए थे । इसीलिये इस तिथि को धन्वन्तरि जयंती के रुप में मनाया जाता है । वैद्यगण आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वन्तरि का पूजन विधि पूर्वक करते हैं । आरोग्यता प्राप्ति हेतु धन तेरस को प्रातःकाल तेल लगाकर स्नान किया जाता है ।
देव वैद्य धन्वन्तरि की कृपा से शारीरिक तथा मानसिक आरोग्यता प्राप्त होती है । सुखी जीवन के लिए धन की जितनी आवश्यकता होती है उससे भी अधिक आवश्यकता निरोगी काया की होती है । धन विपुल मात्रा में हो और तन कमजोर हो, और धन के उपभोग के योग्य न हो, तो धन का होना न होना एक ही समान है ।चूँकि भगवान धन्वन्तरि हाथ में स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे । अतः इस दिन स्वर्ण खरीदना शुभ होता है । स्वर्ण न खरीद सकें तो तांबा, चाँदी, पीतल आदि धातुओं से बने बर्तन क्रय करना चाहिए । लोहा (स्टील आदि ) के बर्तन धन तेरस को नहीं खरीदना चाहिए । धनतेरस को भूमि तथा मकान खरीदना बहुत शुभ व फलदायी होता है ।
धनतेरस को धनाधिपति कुबेर का भी पूजन किया जाता है । ये आसुरी प्रवृत्तियों का नाश करते हैं तथा भक्तों को धन-धान्य प्रदान करते हैं.धन तेरस को माता लक्ष्मी तथा विघ्नहर्ता गणेश का भी पूजन होता है । लक्ष्मी जी भय तथा शोक को हरती हैं तथा धन-धान्य व अन्य सुविधाएं प्रदान करती हैं । भगवान धन्वन्तरि की भाँति लक्ष्मी माता भी समुद्र मंथन से प्रकट हुई हैं । ऐरावत हाथी की भी उत्पत्ति समुद्र मंथन से ही हुई है ।धन तेरस को संध्या के समय मृत्यु के देवता यमराज को दीप दान किया जाता है । घर के मुख्य द्वार पर तिल के तेल से चार मुखी दीपक जलाना चाहिए । इससे यमराज प्रसन्न होते हैं तथा अकाल मृत्यु से परिवार की रक्षा करते हैं ।ऐसा वचन स्वयं यम देव ने ही दिया है ।
धन तेरस को यमराज को दीप दान क्यों किया जाता हैं इस संबंध में एक प्रसिद्ध और रोचक कथा है जो इस प्रकार है :---
प्राचीन काल में हेम नामक एक राजा थे । जब उनके यहाँ पुत्र का जन्म हुआ । तब राज्य के ज्योतिषियों ने राजकुमार की जन्म कुण्डली तैयार की । कुण्डली के अनुसार बालक अल्पायु था । अनेकों प्रकार से गणना करने पर भी फलादेश यथावत रहा । जन्म कुण्डली के अनुसार विवाह के चौथे दिन राजकुमार की मृत्यु का योग था ।
यह जानकर राजा बहुत दुखी हुआ । उसने राजकुमार का विवाह न करने का निश्चय किया । जब विवाह ही नहीं होगा तो विवाह का चौथा दिन कैसे आयेगा ? राजकुमार के रहने की व्यवस्था ऐसे स्थान में की गई जहाँ स्त्रियों की परछाईं का भी प्रवेश मुश्किल था । राजकुमार को चारों ओर पुरुष ही पुरुष दिखाई देते थे ।लेकिन होनी, दैव इच्छा भी कोई चीज है । कड़े प्रतिबंधों के बावजूद कहीं से भ्रमण करती हुई एक सुंदर राजकुमारी वहाँ आ पहुंची । एक-दूसरे को देखते ही वे दोनों मोहित हो गये तथा दैव वशात् उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया ।विधि के विधान के अनुसार चौथे दिवस राजकुमार के प्राण हरने यमदूत आ गये । जब वे उसका प्राण लेकर जाने लगे तब उन्होंने नववधू का रुदन और विलाप सुना । उसे सुनकर यम दूतों का कठोर हृदय भी द्रवित हो गया । उन्हें अपना कार्य अप्रिय प्रतीत हुआ ।
अंतर्यामी भगवान यमराज सब समझ गये । एक दिन उन्होंने अपने दूतों से पूछा:-- "हे दूतों ! जब तुम लोग प्राणियों के प्राण हरते हो तब तुम्हारे मन में दया करुणा का भाव उठता है क्या ? या लोगों के प्राण हरते-हरते तुम लोगों का हृदय पाषाणवत् हो चुका है ?"
यमराज के भय से भयभीत यम दूतों ने कहा:---" हे प्रभो ! हम हर्ष -विषाद से रहित होकर अपना कर्त्तव्य करते हैं और आपकी आज्ञा का पालन करते हैं । आपकी आज्ञा पालन से अधिक हमें कुछ भी प्रिय नहीं है ।"
अंतर्यामी यम देव ने दूतों से फिर कहा:--" हे दूतों ! डरो नहीं ! भय को त्याग दो । मैं तुम लोगों को अभय दान देता हूँ । सत्य कहो ! बताओ ! जीवों के प्राण हरते समय तुम्हें दुख होता है या नहीं ?"
अभयदान पाकर यमदूत बोले:--- "हे प्रभो ! राजा हेम के ब्रम्हचारी पुत्र के प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भर आया था । किंतु हम विधि के विधान के आगे विवश थे । किसी को जीवन दान देना हमारे अधिकार में नहीं है ।"
यमदूतों के सत्य कथन से यमराज प्रसन्न हो गये । उन्हें अत्यंत प्रसन्न देखकर एक यमदूत ने उनसे पूछ लिया :--" हे प्रभो ! क्या अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है । इसके लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए.?"
यमराज बोले:-- "हे यमदूतों ! जो भी मनुष्य कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को संध्या के समय मेरे (यम) के नाम से दीप जलाकर घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा में रखता है अर्थात श्रद्धा-भक्ति पूर्वक मुझे दीप दान करता है । मैं उसे अकाल मृत्यु के भय से मुक्त कर देता हूँ । उसके परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती ।
यह सुनकर दूत यम देव की जय जय कार करने लगे ।बोलिये यमराज धर्मराज की जय हो !उसी समय से अकाल मृत्यु से बचने तथा यम देव की प्रसन्नता हेतु उन्हें धन तेरस को दीप दान करने की परंपरा आरंभ हुई , जो आज तक चली आ रही है ।