डियर डायरी 19/04/2020
डियर डायरी 19/04/2020
आज की डायरी की शुरुआत एक मजेदार घटना से। यह खबर सुबह सुबह "अमर उजाला" अखबार में पढ़ने को मिली। लखनऊ में पारा में सुबह-सुबह पांच पांच सौ के कुल साढ़े चौदह हज़ार के नोट पड़े मिले। कुछ लोग इनमें से कुछ नोटों को लेकर भाग गए और बाकी नोट यूं ही पड़े रहे, क्योंकि लोगों को डर था, कि कहीं इसमें कोरोना का संक्रमण न हो..! तो लीजिए साहब, इस कोरोना ने आम नागरिकों और पुलिस को इतना ईमानदार बना दिया, कि सड़क पर पड़े इन नोटों को बहुत से लोगों ने सिर्फ इसलिए नहीं छुआ, कि कहीं इन नोटों में कोरोना संक्रमण न हो..! और इन नोटों के बारे में पुलिस को इनफॉर्म कर दिया। बाद में पुलिस ने कुल साड़े चौदह हज़ार के नोट बरामद किए, जिनमें वो नोट भी शामिल हैं, जो कुछ लोग लेकर भाग गए थे। बाद में उन सभी नोटों को टेस्टिंग के लिए भेज दिया..! तो दोस्तों, कोरोना ने आपको और पुलिसवालों को भी ईमानदार बनाया न..? वरना सड़क पर बिखरे इन नोटों को भला कौन छोड़ता..?? तो बताइए दोस्तों, कि यह घटना कुछ अजब गजब सी है न..?
आज सुबह एक और बहुत बढ़िया खबर सुनने को मिली। एक तेरह साल का लड़का अपनी मां के साथ राजाजीपुरम थाने पहुंच गया और इंस्पेक्टर धनंजय सिंह से मिलने की ज़िद कर बैठा। और जब इंस्पेक्टर साहब उस बच्चे से मिले, तो उसने अपनी अपनी पूरी जमा पूंजी बैंक अकाउंट(गुल्लक) उनको देते हुए कहा, "सर, आप यह पूरी धनराशि कृपया प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करवा दें।" ये समाचार "लेटेस्ट क्राइम" में पढ़ने को मिला।
अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी की भी थोड़ी बात कर ले। उनका फरमान है कि शहर में और गांव में ढूंढ ढूंढ कर जरूरतमंदों को पकड़ा जाए और उनको एक एक हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाए। तो लीजिए साहब, अधिकारी जुट गए लोगों की मदद करने के लिए। अब किस तरह से उनको ढूंढा गया और किन-किन को मदद मिली और किन को किन को मदद नहीं मिली, इसका कैसे पता चलेगा..?
दोस्तों, हम यहां किसी पर इल्जाम नहीं लगाना चाहते। मगर यह सत्य है, कि मदद का प्रारूप कुछ ऐसा होना चाहिए, कि आम इंसान को बिना किसी के बताए इस बात का भरोसा हो जाए, कि हां, वास्तव में ज़रूरतमंदों को मदद दी गई। लेकिन हमारे यहां का कुछ ऐसा सिस्टम है, कि सरकारी धन जैसे ही निकलता है, आम आदमी पहले ही यह सोच लेता है, उसे इसमें से कुछ नहीं मिलने वाला। वैसे इस संदर्भ में अब तक जिन जिन लोगों को हजारों रुपए दिए गए, इस पर उन्होंने संतोष भी व्यक्त किया। मतलब मदद का काम सुचारु रूप से हो रहा है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने एक और आदेश दिया है, कि निजी क्षेत्र की सभी औद्योगिक इकाइयों को अपने वर्करों को पूरा वेतन देना चाहिए। लेकिन उन उद्योगों का रोना यह है, कि उद्योग जब बंद है, तो वेतन कहां से थे..? लेकिन जब मुख्यमंत्री का आदेश है यह तो हमें मानना ही पड़ेगा कि सभी को पैसा मिल रहा है ,और सब मजे में है।
लेकिन इतनी सारी अच्छी खबरों के बाद भी आज अब तक नींद नहीं आई और शायद आएगी कि नहीं, क्योंकि आज ही एक वीडियो ऐसी देखने को मिली है , कि दिल दहल गया। इस लॉकडाउन में कुछ पुलिस वाले एक मोटरसाइकिल वाले को बड़ी बेरहमी से पीट रहे हैं..! रोड पर सन्नाटा है। सिर्फ एक दो आदमी और तीन चार पुलिस वालों को देख कर इतना तो स्पष्ट है कि यहां लॉक डाउनउन का उल्लंघन अगर मान भी लें तब भी कोरोना संक्रमण का तो कोई केस नहीं लगता। लेकिन इस वीडियो ने मानवीयता की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी। और क्रूरता की सारी सीमाओं को तोड़ दिया..! सही बात है, अगर आपका दिन बुरा है, तो आप कितने भी ईमानदार हो, आप कोई भी सबूत दो अपनी ईमानदारी का, कितना भी कह लो, कि बहुत जरूरी काम से आप निकले हो, लेकिन अगर किसी बेरहम पुलिस अधिकारी के शिकंजे में आप फँस गए, तो ठुकाई पिटाई तो आपकी होनी है। और शायद इतनी पिटाई हो, कि वर्षों आप उठ न सके ।चल फिर न सके। और जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाए..!