दांव
दांव
“भाई तू भावुकता में आकर मूर्खता कर रहा है।”
“वो कैसे?”
“भाई हमें ये पचास लाख उन बुज़ुर्ग दम्पति और उनकी दो पोतियों को मारने का मिला है।”
“तो?”
“तो क्या? पैसा लेने के बाद भी तू उन्हें मारना नहीं चाहता है..........और ऐसा आज से पहले कभी नहीं हुआ है।"
“सही कहा, आज से पहले हमने अपाहिज बुज़ुर्गो और अबोध बच्चों को भी तो नहीं मारा है।”
“नहीं मारा है, लेकिन ये सुपारी क्यों ली?”
“सुपारी लेकर मारना हमारा काम है, लेकिन मै इस परिवार को नहीं मार सकता हूं।”
“क्या कह रहा है भाई.........? बॉस हमें जिन्दा नहीं छोड़ेगा। वो किसी और को भेज कर उस परिवार को मरवा देगा, उसने भी तो इस काम के करोड़ों लिए है उस बिजनेसमैन से जो अपने सगे चाचा-चाची और उनकी अनाथ पोतियों को मरवा कर उनकी दौलत पर कब्ज़ा करना चाहता है।”
“ठीक कह रहा है तू वो बिजनेसमैन उन्हें जिन्दा नहीं छोड़ेगा.........ठिकाने लगाना पड़ेगा उसे। उस।”
“बिजनेसमैन को तो मार देंगे.......लेकिन बॉस का क्या?”
“बॉस सुपारी का पैसा वापिस नहीं करेगा, वो उस परिवार को भी मरवा देगा और हमें मारने के लिए किसी और को हमारे पीछे भेजेगा........."
“जानता हूं........क्या करोगे बॉस का?”
“बॉस को भी मारना पड़ेगा।”
“इतना आसान है ये?”
“नहीं........इसमें हमारी जानें भी जा सकती है।”
“भाई क्यों रिस्क ले रहा है उन अनजान लोगों के लिए........?”
“क्यों, रिस्क लेने में डर लग रहा है तुझे?”
“भाई तेरे साथ मुझे कोई डर नहीं है।”
“तो आ, खेलते है जिंदगी का ये दांव भी ।”