चिंबल का पेड़
चिंबल का पेड़


सफ़ेद तना, हरी पत्तियां बिखरी बिखरी सी, हरे से लाल होते फल। छांव कम देता था, पर गर्मियों की छुट्टियों में चिबंल का पेड़, हम सभी का दोपहर का ठिकाना होता था। लाल फलो के अंदर मीट्ठा जैली जैसा रसीला गूदा। पकड़म पकड़ाई खेलने का सुंदर ठिकाना, डाल से झुल कर सीधे ज़मीन पर, कम ऊंचाई का फायदा। किंकरी दादी के खेत में खड़ा था, वो अक्सर हम लोगो को भगाती, पर उनका घर दूर होने की वजह से, हम लोग उनके जाते ही फिर से पेड़ पर सवार हो जाते।
दो सीढ़ीनुमा खेतों के बीच खड़ा यह पेड़, हम लोगो का झूला, सखा बहुत कुछ था। एक दो भूरी जड़ें ज़मीन के ऊपर दिखने लगी थी। नहीं पता था, यह उसके सूखने की शुरुआत है। ओमी चाचा जब हल चला रहे थे, हल जड़ में फंस गया। चिड़चिड़ा कर ओमी चाचा ने जड़ काट दी।
अगली गर्मियों में कस्बे से जब वापिस आए,तो देखा पेड़ गायब था। एक खोखला ठूंठ भर था।
सुबह उठ कर उस ठूंठ की बगल में हम सभी इकठ्ठे हुए। सिसक सिसक कर मानो, अपनी कहानी सुना रहा था, हमारा दोस्त। प्यारा दोस्त, जो अब भी था, वहीं हम सब की यादों में।