छल

छल

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कमला शादी के समय भी खूबसूरत न रहीं होगी। लोग आश्चर्य करते थे कि उसकी शादी मोहन से कैसे हो गयी। वह साँवली और बहुत साधारण नाक नक्श वाली सामान्य से थोड़ी कम लंबी महिला थी। मोहन लंबा, गोरा चिट्टा सुंदर सजीला मर्द था।

कुछ लोग कहते थे, “ज़रूर नाई या पंडित ने घूस खाई होगी।”

सुना था दोनों पक्षों के नाई और पंडित ने ही लड़का लड़की पसंद कर विवाह तय कर दिया था। मोहन एक बार फिर बिना किसी को बताये कहीं चला गया था। उसको गये चार दिन हो गये थे। कमला और उसकी बड़ी बहन दुर्गा पड़ोस के गाँवों में ब्याही थीं, सो वह जब परेशान होती तो अपनी बड़ी बहन दुर्गा के पास दौड़ आती थी। कमला दुर्गा से चार पाँच साल छोटी थी। इस बार भी कमला दुर्गा के पास आकर रोयी।

 दुर्गा ने कमला से पूछा, “ अब क्या हुआ?”

 कमला सुबकते हुए बोलीं, “ये फिर कहीं चले गये।”

दुर्गा ने चिड़चिड़ा कर कहा, “तुम अपने आदमी को बांध के क्यों नहीं रखतीं?”

कमला ने आँसू पोंछते हुए कहा, “सब कुछ तो करती हूँ उनके लिये फिर भी उखड़े से रहते हैं। कहते हैं उनके साथ छल किया गया है।”

इनके भाइयों के भरोसे खेती किसानी होती रहती है वरना भूखे मर जाएं।”

दुर्गा ने कहा, “उसकी तो आदत हो गयी है भागने की। जैसे पहले लौट आया था इस बार भी लौट आएगा। अबकी बार आये तो किसी जनवा को दिखवा देंगे किसी ने उच्चाटन कर दिया हो।”

इस बार मोहन इतनी जल्दी नहीं लौटा। साल भर बाद लौटा तो वेषभूषा ऐसी थी कि सबको लगा सन्यासी हो गया है। सर के बाल कन्धों तक बढ़े हुए, बड़ी मूँछें और हाथ भर लंबी दाढ़ी। गेरुआ कुर्ता और धोती।

कमला तीन महीने पहले माँ बनीं थी। दुर्गा ने उसको अपने पास बुला लिया था। मोहन अपने गाँव पहुंचा तो पता चला वह बाप बन चुका था और कमला बच्चे के साथ अपनी बहन के पास रह रही थी। वह सीधा दुर्गा के घर पहुँचा।

सर्दी का मौसम था। दोपहर का समय था। दरवाज़ा खुला था। आँगन में दुर्गा चादर बिछाकर उसपर धोये हुए गेंहू सूखने के लिए बिखेर रहीं थी। कमला आँगन में ज़मीन पर बैठी थी और टांगें फैलाकर उनपर मुन्ना को लिटाये उसकी मालिश कर रही थी।

मोहन ने ध्यानाकर्षित करने के लिए धीरे से दरवाज़े को खट खटाया।

दुर्गा और कमला दोनों का ध्यान एक साथ मोहन की ओर गया। उन्होंने बदली हुई वेशभूषा के बावजूद उसे पहचान लिया।

कमला का दबा हुआ रोष उबल पड़ा। उसने झटपट मुन्ना को कपड़े पहनाये और दरवाज़े पर जाकर मुन्ना को मोहन को पकड़ा कर बोली, “जहां जाना है जाओ इसे भी अपने साथ ले जाओ।” ऐसा कह कर उसने दरवाज़ा बंद कर दिया।

मोहन कहीं नहीं गया। वह मुन्ने को गोद में लेकर दरवाज़े के बाहर बैठ गया और दरवाज़ा खुलने की प्रतीक्षा करता रहा। थोड़ी देर बाद कमला का रोष कम हुआ तो उसने दरवाज़ा खोला और देखा मुन्ना मोहन की गोदी में लेटा हाथ पैर चला रहा था। तभी मोहन ने उसको अपनी एक उंगली पकड़ायी जिसे उसने अपने नन्हे हाथ से मज़बूती से पकड़ लिया। कमला ने कहा, “अंदर आ जाओ।”

मोहन चुपचाप अंदर आ गया। 



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