Jogender Singh(Jaggu)

Others

4.3  

Jogender Singh(Jaggu)

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चाय

चाय

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तरकारी खाओ, देख इसको तो मैं कड़छी भर घी दूंगा और कचालू के टुकड़े भी। मेहनती है, कल शाम से बहुत काम कराया इसने।

अरे नहीं चाचा , इतना घी हज़म नहीं होगा मुझे । पर गुल्ला चाचा नहीं मानने वाले थे, न माने। दो कड़छी घी और तरकारी/चावल खाने के बाद पेट नगाड़ा लग रहा था।

राखी की शादी थी। नधार (शादी की पहली शाम जब रिश्तेदार इकठ्ठे होते हैं) के दिन से ही काम बांट दिया गया था। मुझे और मुन्नू को चाय बांटने का काम मिला था। रतन हम लोगो का लीडर था, उसे चाय बनानी थी। बाल्टी भर चाय लेकर गिलास में डालना उसी का काम था। मुझे और मुन्नू को भरे गिलास थाल में रख कर मेहमानों को देने थे। चाय पीने के बाद गिलास इकठ्ठे करना भी हम लोगो का काम था।

गिलासों की गिनती की गई थी। कांच के चार दर्जन और स्टील के दस। छह गिलास पीतल के भी थे।

चाय बनाने के लिए मीडियम साइज का पीतल का पतीला, ढक्कन के साथ (जिस पर कई लाइने बनी थी)। चाय गिलास में भरने के लिए लंबा हैंडल लगी स्टील की कुप्पी भी थी।

नधार की शाम चार बजे से सब लोग आने शुरू हो गए। सब का काम बंट गया था । भंडारी तो शिव जी दादा बनेंगे , सब सामान हिसाब से देते हैं। नहीं भाई बरकत भी है हाथों में रघुनाथ दादा बोले, सामान कभी कम नहीं पड़ता इनके राज में।

तरकारी गुलिंदर (गुल्ला चाचा ) बनाएगा, स्वाद है इसके हाथ में।

और दाल किशन बनाएगा। 

चावल/पुलाव हरजिंदर को दे दो साथ में कालू और नंटा रहेंगे।

हलवा बालकिशन बनाएगा। पूडी/रोटी सब मिल कर काम करेंगे। चाय रतन, मुन्नू और मैं। देखो भाई संभल कर काम करना! चाय, बीड़ी/सिगरेट बहुत ज़िम्मेदारी का काम है। संभाल लूंगा सब ,रतन ज़ोर से बोला था। बेटा अगली बार बाहर निकाल दूंगा , अगर गड़बड़ की, सूबेदार ताऊ ने ज़ोर से बोला था। अरे नहीं ताऊ जी सब ठीक होगा।

रतन हम दोनों को किनारे ले जा कर , समझाया देखो नाक नहीं कटनी चाहिए। अरे भाई चिंता मत करिए हम लोग जी जान से काम करेंगे।

तो चलो आओ चूल्हा तैयार कर लेते हैं। कुदाल लेे कर खेत के एक हिस्से में गडडा बनाया, पत्थर सेट कर चूल्हा बना लिया। पीतल के पतीले की तली में राख की गीली परत चड़ाई। और चड़ा दिया पतीला पानी डाल कर । अभी बीस /पच्चीस कप चाय बनाएंगे। जाओ शिबू दादा (शिव जी)से बीस कप चाय का सामान ले आओ।

मैं दौड़ कर भंडार में पंहुचा, दादा बीस कप चाय का सामान दे दीजिए। भाग यहां से बीस कप? रतन को भेज । मै डर कर वापिस भागा , भैया वो आपको बुला रहे हैं। अरे यार यह बुड्डा भी एक नंबरी है, लेे कर आता हूं। तुम लोग लकड़ी डालते रहना पानी ठंडा ना हो जाए। और सुनो ढेर से पतली पतली लकड़ियां छांट कर अपने चूल्हे के पास रख लेना।

चाय की पहली किश्त बांटने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि गांव के खाना बनाने वाले और घर के ही लोग थे।

शाम होते होते रिश्तेदार आने लगे। अब काम बड़ गया। सुनो वो किनारे बैठे हैं ना धोती पहने, उनको पीतल का गिलास देना, उन पर देवी आती है। स्टील या कांच का गिलास नहीं देना। अच्छा भैया मैं और मुन्नू एक साथ बोले।

किसका लड़का है , बहुत मेहनती है । सीना चौड़ा हो गया सुनकर। अरे अपने भानु का लड़का है, पढ़ने में भी होशियार है, बहुत बढ़िया बेटा, नाम बताओ अपना, जी मुन्नू और मैने भी अपना नाम बताया। बढ़िया बेटा ऐसे ही मेहनत करते रहो। देखो मेहनत करने वाले रास्ता बना लिया करते हैं । हर जगह। खुश रहो।

आठ बजे रतन बोला , सुबह चार बजे आ जाना , कई लोग चार बजे चाय पीते हैं, मैं बना कर रखूंगा बांटने के टाइम आ जाना। चार बजे , बहुत जल्दी है। अरे आ जाना। खाना खाओ और सो जाओ । कल बारात भी आएगी।

चार बजे ऊंघते ऊंघते भाग कर रतन के पास पहुंचे। रतन चाय बना चुका था । आओ मेरे शेरो , चलो पहले पौड़े (पौड़ा घर का सबसे बड़ा कमरा)  में चलते हैं। काफी लोग जाग चुके थे। एक दो बुजुर्ग बीड़ी पी रहे थे। लाओ भाई चाय , तलब लगी है। सुनो थोड़ी देर में फिर चाय दे देना , मनसा राम हलके होने गया है। ठीक है फूफा जी , फिर आ जाएंगे। अब बैठक में चलो , बैठक में लोगों को जगा कर चाय पिलाई। वापिस आ कर रतन ने तीन गिलास में चाय डाली , आओ हम लोग भी पी लेते हैं। एक एक गिलास इलायची वाली चाय पीकर चुस्त हो गए।

छह बजे घर की औरतों को और बाकी मेहमानों को चाय पिलाई। तब तक नाऊ ने नाश्ते के लिए आवाज़ लगाई । रतन बोला तुम दोनों खालो , मैं बाद में खाऊंगा । पंगत में बैठ कर हम दोनों ने जम कर नाश्ता किया।

नाश्ता करके दोस्तों के साथ ताश खेलने लगे । ग्यारह बजे रतन बुलाने आ गया , चलो तैयारी करनी है , चाय/नाश्ते की ? एक बजे बारात आ जाएगी। चलो एक बाजी खतम कर के आते हैं। आ जाना , फिर बुलाने नहीं आऊंगा। आ जाएंगे।

बंदूक चलने की आवाज आई, लो आ गई बारात , अब उठाओ सामान और चलो , अरे नाश्ता की पेटी भी उठाओ सूबेदार ताऊ बोले । किसी एक को साथ भेज दीजिए , छोटे बच्चे है , गिरा न दे। ठीक है भेजता हूं भूंगर को। पर ध्यान रखना भुंगर बांटने में ना लगे। बांट हम लोग लेंगे। सब को नमस्ते करते हुए, बारातियों को चाय नाश्ता करवाया।

बस अब, शाम की चाय और कल सुबह की चाय । और फेरो के समय ।अरे वो पंद्रह बीस गिलास मै कर लूंगा, रतन बोला।

शाम की चाय में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।

सुबह उठ कर सबसे पहले बारातियों को चाय पिलाई , पूरे तीन घंटे लग गए। कोई अभी नहीं पियेगा , कोई नहा कर पियेगा । सच में बाराती मतलब सिरदर्द । खेर सब ठीक ठाक रहा।

दूसरे दिन , दोपहर के खाने के बाद विदाई हुई।

आखिरी रस्म भी चाय पिलाई की थी , विदाई के बाद घर वालों की चाय पिलाई।

मेरी पहली और आखिरी  ड्यूटी शादी में चाय पिलाने की । उसके बाद में शहर पढ़ने आ गया।


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