Ritu Agrawal

Others

4.5  

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बूढ़े बरगद

बूढ़े बरगद

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मुझे अच्छी तरह से याद है, हमारे गाँव में बनी हुई,हमारी अपनी बड़ी सी चौपाल। इसमें एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। बरगद के पेड़ की जगत पर सब बड़े- बूढ़े व्यक्ति बैठते थे।पंचायत भी उसी के नीचे लगती थी। हम बच्चे उसके साए में खूब धमा चौकड़ी मचाकर खेलते थे। वह बरगद, हमारे लिए, हमारे बुजुर्गों की तरह ही था। जो कड़ी धूप में हमें छाया देता था। अपने प्यार का साया देता था। 


समय ने करवट ली। धीरे-धीरे , सभी लोगों का शहरों की ओर पलायन शुरू हुआ। मेरे भी माता-पिता, चाचा -चाची और भी कई नाते रिश्तेदार सब गाँव से दूर होते गए। रोजी-रोटी की तलाश में सभी शहर की ओर जाने लगे। एक दूसरे से वादा करके कि हम वापस आएँगे पर कोई वापस गया ही नहीं । 

मैंने भी जब गाँव छोड़ा था ; खूब हिचकियाँ ले - लेकर रोई थी। बरगद को अपनी नन्ही बाँहों में भर कर मैंने कहा था ,"दादा! मैं जल्दी ही आऊँगी ,आपसे मिलने। हम सब भाई - बहन फिर से आपके साए में खेलेंगे।"


बस, फिर ऐसे गाँव छूटा कि हम शहर के ही होकर रह गए। यहाँ की अंधाधुंध दौड़ती जिंदगी में ,भागते चले गए। समय तो रहा ही नहीं हमारे पास या शायद हमने कभी समय निकालने की कोशिश ही नहीं की।


पहले पढ़ाई -लिखाई , फिर शादी, फिर बच्चे फिर बच्चों की शादी,नाती- पोते ।आज मेरे बच्चे और नाती -पोते सभी अति व्यस्त हो गए हैं ,तो मुझे अपनी गाँव की चौपाल के, बरगद दादा बहुत याद आते हैं।अब समझ आता है उनको कितना अकेलापन महसूस हो रहा होगा। शायद जैसा मैं कर रही हूँ।सोचा है , कल बेटे से कहूँगी, " अब जीवन की इस साँझ में ,मुझे गाँव जाना है। अपने दादा से मिलने।पूरे जीवन भर की बातें करने। उन की छाँव में बैठने और फिर से बच्चा बनने का सुकून और खुशी पाने! 


अब हम दोनों के हालात और भावनाएँ करीब- करीब एक सी ही हैं क्योंकि अब हम दोनों ही अपने -अपने परिवार की चौपाल के बूढ़े बरगद हैं। काश हम दोनों को ही कोई , अपना थोड़ा सा वक्त दे दे तो ज़िंदगी की शाम खुशनुमा हो जाए और हमें सुकून की गहरी, मीठी नींद ( मृत्यु ) मिल पाए।


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