'बुढ़ापे की लाठी!'#MyDadMyHero
'बुढ़ापे की लाठी!'#MyDadMyHero
"भाई मेरी मान, देख ऐसा कर रीना का नाम काॅन्वेंट से कटवाकर सरकारी स्कूल में लिखवा दे वैसे भी ऑनलाइन क्लास ही तो लग रही है। कोरोना के कारण राधा भाभी की नौकरी चली गई है। तेरी सैलरी भी कटकर मिल रही है। दो पैसे बचेंगे तो लड़की के विवाह में काम आएंगे।" सुनीता ने भाई रमेश को समझाया
"दीदी, सुमित का भी सरकारी में करवा देता हूँ, तब और पैसा बचेगा।" रमेश ने तत्काल कहा
"अरे! कैसी बात कर रहा है? सुमित लड़का है, अच्छे स्कूल में पड़ेगा, अच्छी नौकरी करेगा। तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा, उसे कान्वेंट में पढ़ने दो। रीना को सरकारी स्कूल में डाल दो।" सुनीता दीदी ने नासमझ भाई को ज्ञान का पाठ पढ़ाया
"दीदी, जरूरी नहीं कि लड़का बुढ़ापे की लाठी बने। खुद ही को देख लो, बेटे पूछते तक नहीं हैं आपको! मैं रीना और सुमित दोनों का पिता हूँ, मैं भेदभाव नहीं करूंगा, दोनों को बराबर पढ़ाऊंगा।" रमेश ने आज पहली बार अपनी दीदी को सच का आईना दिखाते हुए अपनी बात रखी।
दीदी को भी छोटे भाई की बात में वजन नज़र आ ही गया।
उस दिन एक पिता अपने बच्चों की नज़रों में ऊंचा उठ गया।