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Chandresh Kumar Chhatlani

Others

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Chandresh Kumar Chhatlani

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बंद दरवाज़ा

बंद दरवाज़ा

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सूर्य उगने के साथ ही उसकी चिंता भी बढ़ती जा रही थी, रात को उसकी पत्नी ने उसकी पसंद का भोजन नहीं बनाया था तो गुस्से में उसने थाली फेंक दी, जिससे पिताजी नाराज़ होकर बाहर बने नौकर के कमरे में दरवाज़ा बंद कर बैठ गए। उसे पछतावा हो रहा था, रात में ही कितनी बार वो बाहर आया और उस कमरे के सामने जा कर पिताजी को देखने का प्रयास किया, लेकिन हर बार बंद दरवाज़ा देख अंदर लौट गया। पूरी रात ऐसे ही गुज़र गयी।


अब उससे रहा नहीं जा रहा था, वो कमरे की खिड़की पर गया और बेचैन हो कर कहा, "पापा...! बाहर आ जाइए।"

अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई, वह और व्यग्र हो उठा।

उसने झाँक कर देखा, अंदर अँधेरा था, गौर से देखा तो उसे पिताजी पलंग पर बैठे हुए दिखाई दिये।

"अब इस उम्र में इतनी ज़िद! रात खाना भी नहीं खाया है आपने।" चिंतातुर स्वर में उसने कहा।

"...."

"पापा, रात में गुस्सा आ गया था, आपको भी तो आता है न?" अब उसकी आवाज़ में याचना थी।

"...."

"अब आप कुछ नहीं बोलोगे, तो मैं दरवाज़ा तोड़ दूँगा।" वो झुंझला गया।

"...."

उसकी चिंता बहुत बढ़ गयी थी, वो दरवाज़े के पास गया और अपनी पूरी शक्ति लगा कर उसे खोलने की कोशिश की।

लेकिन दरवाज़ा तो झटके से खुल गया, पिताजी ने बंद ही नहीं किया था। खुले दरवाज़े से छन कर आती रोशनी में पिताजी की आँखों के ख़ुशी और ग़म के मिले-जुले आँसू चमक रहे थे।


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