भूला/भटका
भूला/भटका
रिया की उम्र ही ऐसी थी की चाह कर भी वह खुद को संभाल नहीं सकी । अक्सर वह लड़का चुपचाप उसे देखता रहता था। वह हमेशा सोचती क्यों उसका लगाव उसके प्रति बढ़ता जा रहा है.. अब तो उसे भी रोज जैसे उसका इंतजार रहता हो।
एक दिन हिम्मत कर उसने पूछ लिया..."आप रोज यहाँ किस इंतजार में खड़े रहते हैं?"
फिर क्या था ,दोनों के बीच मोहब्बत का सिलसिला चल निकला ।कालेज तक साथ साईकिल चलाते जाना, कभी कभी बीच में रुक घंटो बातें करना और कभी कभी कालेज की जगह कहीं वीराने में जा बैठ, हाथों में हाथ ले घंटो तक बातें करना,वह इसी को तो प्यार,इश्क समझ रही थी , पर एक दिन जन्मदिन का बहाना कर सुंदर उसे घर वालों से मिलवाने ले गया ।बड़ी भीड़ भाड़ वाली गलियों से गुजरते जब वह पहुँची तो वहाँ के माहौल ने उसे कुछ संदेह में घेरा । वह टायलट के बहाने से वह सुलभ शौचालय जा छुप कर सुंदर की बातें सुनने लगी। वो फोन पर वह कह रहा था..."समान लेकर आ रहा हुँ, माल तैयार रखो।" बस रिया वहीं से उल्टे पैर भागी ,रास्ते पर आ रहे आटो से कहा... "साकेत नगर ले चलो।"
सचमुच समय रहते जो संभल गया उसे सुबह का भूला ही कहते हैं ।
