भँवर

भँवर

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वह दिहाड़ी मज़दूर था। और दिहाड़ी मज़दूर का कोई नाम नहीं होता। जहाँ दिन भर  काम किया शाम को पैसे लिये और घर गया। लेकिन जब से वह आरा मशीन पर काम करने लगा तब से उसकी रजिस्टर में हाजिरी भी लगती और एक दिन की छुट्टी भी मिलती। हाँ यह बात अलग है कि छुट्टी वाले दिन भी उसे मालिक की मर्जी से काम करना पड़ता था। लेकिन हाजिरी रजिस्टर मे उसका नाम नहीं होता था। उस दिन भी उसकी छुट्टी थी, लेकिन वह सागौन की चिराई कर रहा था।पुरानी सागौन में चिराई के दौरान कभी नदी सरीखे  उमड़ते वेग का डिज़ाइन कभी भँवर की आकृति लेता चित्र। प्रकृति भी अपनी दास्तान किसके सीने मे लिख देती है पता ही नही चलता। ऐसे ही किसी भँवर में उसका मन फँसा, कि उसका दाहिना हाथ जमीन पर। चारों ओर अफरा तफरी मच गई। अब बेचारा हरिया क्या करेगा दाहिना हाथ ही नहीं रहा।मज़दूर कयास लगाने लगे, सेठ भरपूर मुआवजा देगा। आखिर काम पर यह हादसा हुआ।
>> "यह क्या सेठ जी, केवल हजार रूपये ।" हरिया की पत्नी मुनिया ने मुआवजे की चिरौरी की। 
>> "मुआवजा, कैसा मुआवजा?? हरिया तो छुट्टी पर था। कानून वह आज काम पर आया ही नहीं, चाहे तो रजिस्टर देख लो। और ये हजार रुपये तो बक्शीश के है।"
>> मुनिया को लगा जैसे सागौन के उस भँवर में फँस कर हरिया ने हाथ ही नहीं खोया समूचा अस्तित्व ही खो दिया है।
>> ऐसी इबारत तो केवल इन्सान ही लिख सकता है।


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