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सतानो

सतानो

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                       हर बार भाई दूज की पूजा करते करते उसकी आँखे भर आतीं । शादी के बाद भाई ने बहन का मुँह नहीं देखा था। क्योंकि बहन ने "लव-मैरिज" करके खानदान की इज्जत को बट्टा जो लगा दिया था।अब वह सबके लिये मर चुकी थी।
>>    .........  बड़ी सी चौक के इर्द-गिर्द बैठ  हाथ में फूल, अक्षत ,हल्दी की गाँठ, सिक्का और जल दबाये सतानो बहन की कथा उसने माँ के मुँह से पाँच साल पहले सुनी थी । माँ कहतीं थीं...... "सतानो से चूनर में दाग़ लग गया, भाई- भाभी बहुत नाराज हुये भाभी ने हठ किया, कि सतानो के खून से रंगी चुनरी ही ओढ़ेगी। भाई ने कहा ठीक है ,और वह सतानो को बेरी खिलाने ले गया ।वह पेड पर चढ़ गया और सतानो से बोला; " मै बेर सीधे तुम्हारे मुँह में डालूँगा मुँह खोलो ।" सतानो मुँह खोल कर ऊपर देखने लगी ।भाई ने ऊपर से बेरी की जगह चाकू फेंका जो सीधा सतानो का गला चीरता चला गया ।भाई ने सतानो के ख़ून से पत्नी की चूनर रंगी और पत्नी को ले जाकर दी ।फिर सब खुशी खुशी रहने लगे.....
>>      माँ की परम्परा निबाहते हुये वह भी अपने आँगन मे चौक रखती कथा कहती और अंत में याद करती अपने उस भाई को जिसने पाँच साल पहले भाई दूज के दिन ही उसका गला पकड़ लगभग धकियाते हुये दरबाजे के बाहर ठेल दिया था.........
>> और जैसे मन ही मन कहा हो ; "जा सतानो तूने जो दाग़ लगाया उसकी भरपाई जीवन भर कर।"
>>     तब उसकी मुट्ठी में दबे फूल अक्षत बिखरने बाले ही थे, कि न जाने कहाँ से आकर कथा की सतानो ने धीरे से उसकी मुट्ठी भींच दी थी।
>>      वही फूल अक्षत वह आज भी अपने आँगन की चौक पर बिखेर कर भाई के सुख की मंगलकामना करती है । और दूर क्षितिज पर आँखो में आँसू लिये सतानो भी मुस्कुरा देती है..........
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