बदल दों भावनाओं को
बदल दों भावनाओं को
बदल दो भावनाओं को अब तुम "हार्दिक" खुलकर जियो ज़िन्दगी अपनी नहीं कोई विपरीत हों कहानी जो अधूरी जीवन की हो निशानी।
पंछी के जैसी सोच रखो उड़ना है, तुम्हें तो अपनों पर विश्वास रखो, नहीं किसी से कोई मतभेद रखो। हौसलों कि उम्मीदों से अब तुम भी अपने जीवन को कायम रखो। मेहनत मजदूरी और गरीबी के दिन तुम्हारे जो थे, अब गुज़र गए घर गृहस्थी को अब तुम सीख लिए चलाना, जीवन में अब तुम भी अपनी छुपी ख़ामोशी को बयाँ करो। रहते थे हर पल तुम्हारी आँखों में आंसू छुपाकर हर समय तुम अपना रख लेते एक एक कीमती बूँद छिपाने पर तुम आंसुओं से ज्यादा ख़ुद पर "हार्दिक" करता है भरोसा।
वो गरीबी के दिन थे जो आज भी तुमने देखे है, खुलकर जिंदगी जीने वाले तुम आज भी उस गरीबी में रहते हो।
माँ जाती थी जब सुभिषि हॉस्पिटल में रोटियाँ बनाने, पाप करते थे मजदूरी बाज़ारों में हाथ थैला चलाकर दो वक्त की तब रोटी का होता था गुज़ारा।
बरसो पुरानी पूर्वजों की जमीन वो आज करोड़ों की तुम्हारी जो आज भी तुम्हारे घर के सदस्यों ने अपने कब्जे में रखी है, टूटे फूटे मकान में रहने को तुम हो रहे आज भी मजबूर इतने क्यूँ.?
पढ़ाई लिखाई और हार्दिक पूर्वा हम दोनों भाई बहनों का पालन पोषण किया है बहुत प्यार से माता पिता ने हमारी
कैसे अपनी दिनचर्या को भूलेंगे हम कभी पल पल हर पल काट रहें हम अपनी गरीबी कैसे बताये।
हम पाँच परिवारों की खेत की ज़मीन हमारे ही घर में हमारे ही परिवार के सदस्य के पास बीस से पच्चीस साल से कब्जे में रहीं है, और आज भी उन्हीं लोगों के कब्जे में है। उन्हें न तो हमारी फिक्र है, और ना ही हमारी गरीबी और परिवार की, वह लोग ख़ुद प्रॉपर्टी का बिज़नेस करते हैं, और हमेशा कॉलोनी काटते रहते है, और आज जब पैसा मांगने जाओ खेत की ज़मीन का उनसे तो दौड़ाते रहते है।
कभी यहां तो कभी वहां और अब तक ऐसे ही भाग दौड़ कर घर खर्च के लिये पापा उनसे पैसे लाते रहे। आज भी लाते है, दस से बारह लाख रुपये अब तक ला चुकें है उनसे और उन्होंने दिए है, बहुत बेशर्मी से बार-बार दौड़ाते है और फिर देते है।
अब हम लोगों ने उनसे पैसे लाना बन्द कर दिया क्योंकि हम पाँच परिवारों के खेत की जमीन सौ एक मोहीपुरा क्षेत्र में उपजाऊ एवं बंजर दोनों है।
उनकी लापरवाही की वजह से आज हम भी अपनी गरीबी में रहने को मजबूर है, एक छोटी पूजन सामग्री की शॉप खोलकर उससे अपना गुज़र बसर आज भी कर रहें है।
आज के दौर में यहां खेत की ज़मीन बीस से बाईस लाख रुपये एकड़ है। और वो लोग हमारी ही जमीन पर कब्जा करके हमें हमेशा डराते दबाते रहते है उन लोगों से उम्मीद करना आज भी बेकार है। हमारी ही जमीन पर कब्जा है और हम हमारा हक मांगने जाते है तो वो लोग भगा देते है हमें बार बार ऐसा ही करते रहते है, हम जहां जहां से भी नोटिस उनके पास शिकायतों के पहुंचाते हैं वो लोग उन्हें रिश्वत देकर चुप करा देते हैं।
बहुत समय से ऐसा ही चल रहा है, घर में इतनी सारी परेशानियां है जिन्हें आज भी हमें झेलना पड़ रहा है।
हम नहीं चाहते है कि उन लोगों की बदनामी हों और उन लोगों की असलियत का पता चले बस हम यही चाहते हैं वो हमें हमारे खेत की जमीन का उतना ही हक दें दें जितना हमारा हमारे खेत का है।
एक एक करोड़ के उन्होंने नये मकान पहले बनाये थे, और आज भी उन लोगों ने अपने लिए बनाए है, हमारी जमीन पर कब्जा करके खेती करके आज भी वो अपना हमारी जमीन पर हक जता रहे हैं।
