Varsha abhishek Jain

Others

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बड़ा बेटा सिर्फ कमाने के लिए?

बड़ा बेटा सिर्फ कमाने के लिए?

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सोनल जिस दिन से अपने ससुराल आई थी, तब से उसने गौर किया था कि सासू माँ का झुकाव छोटे बेटे यानी सोनल के देवर की तरफ ज़्यादा है।

सोनल के पति राहुल मुंबई में एक अच्छी जॉब में थे। शादी के कुछ दिन बाद ही राहुल को वापस मुंबई आना पड़ा। सोनल को भोपाल में ही रुकना पड़ा क्योंकि सास भी कुछ दिन बहु सुख भोगना चाहती थी। सोनल ने भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए रूकना उचित समझा और सास ससुर की खूब सेवा भी की। सोनल की सास बात बात पर ये जताना नहीं भूलती कि पूरा घर अकेले देवर ने संभाल रखा है। जबकि हर महीने पचास हज़ार रुपए मुंबई से राहुल से मंगा लेती। राहुल भी बस अपनी जरूरत के अनुसार पैसे अपने पास रख कर सारे पैसे माँ को भेज देता, ये सोच कर माँ ज्यादा अच्छी तरह से पैसे संभाल के रखेगी।


जब भी घर में कोई मेहमान आता, सभी के सामने देवर समीर के गुणगान सासू माँ शुरू कर देती। टीवी समीर लेके आया, वाशिंग मशीन समीर लेके आया, पूरे घर की जिम्मेदारी समीर के कंधे पर ही है। समीर जबकि कुछ काम नहीं करता बस शराब जुए में पैसे फूँकता रहता। जब राहुल 18 साल का था, तब ही घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए राहुल को रिश्तेदार के यहां कमाने भेज दिया था। 10 साल से राहुल मुंबई में रह रहा है। 10 सालों में कभी भी राहुल की माँ ने मुंबई आके अपने बड़े बेटे की खैर खबर नहीं ली कि किस हाल में बेटा रह रहा है। माँ को तो बस महीने की कमाई मिलने से मतलब था।


बस राहुल ही 2 साल में एक बार मिलने चला जाता था। माँ कहती यहां आके क्या करेगा, काम में ध्यान दे। एक साल बाद सोनल पति के पास मुंबई आ गयी। मुंबई में घर को देख कर वो दंग रह गयी, पूरा घर खाली। बस एक बिस्तर 2 बेडशीट, 4 बर्तन, एक छोटी अलमारी और कुछ भी नहीं था घर में। कोई देख कर कह नहीं सकता कि 10 साल से यहां कोई रह रहा है। राहुल ने कहा अब तुम आ गयी हो इस मकान को घर बना दो। दोनों खुशी खुशी अपना घोसला बनाने लगे। सोनल ने भी नौकरी करना शुरू कर दिया।  पहले महीने घर का सामान लाने में पैसे खर्च हो गए तो राहुल सिर्फ पच्चीस हज़ार ही माँ के पास भेज पाया। सासू माँ को लगा ज़रूर बहू ने पैसे भेजने से मना किया होगा। दो दिन बाद राहुल के पास माँ का फोन आया कि "5 लाख रुपये का इंतज़ाम कर के भेज, देवर को बिज़नस कराना है।"

राहुल ने कहा कि" इतनी जल्दी इतने रुपए कहाँ से लाए?"

माँ ने कहा "बड़ा भाई है, छोटे भाई की जिम्मेदारी तेरी है, तुम दोनों कमाते हो। लगता है बहू आने के बाद माँ पिता कुछ नहीं तेरे लिए! कितनी मुश्किल से तेरे को पाल पोस के बड़ा किया, सब भूल गया?" फिर दो आँसू बहाए और पति देव पिघल गए।


जैसे से तैसे, पैसे का इन्तज़ाम किया। कुछ महीनों बाद देवर की शादी तय हुई, फिर उसकी जिम्मेदारी भी सोनल और राहुल पर डाल दी गयी। सोनल और राहुल ने मुंबई में अपना घर खरीदने की सोची कि दोनों मिल कर लोन चुका देंगे। राहुल ने अपनी माँ से बात की, माँ के कान खड़े हो गए।  दो हफ्ते बाद फिर सासू माँ का फोन आता है कि "तेरे पापा और मैं सोच रहे हैं मुंबई में तो घर बहुत महंगा है, इससे अच्छा भोपाल में ले ले। वैसे भी वहां ले या यहां एक ही बात है। हम भी अपने घर का सुख भोग लें। हमारे मरने के बाद तुम्हारा ही है घर।"

राहुल ने सोचा चलो ठीक है पहले वहां खरीद लें, 3-4 साल बाद यहां ले लेंगे। सोनल कुछ समझाती तो राहुल कहता माँ बाप के लिए इतना तो कर ही सकते हैं, उन्होने पाला है। भोपाल में गृह प्रवेश पर राहुल और सोनल गए। वहां नेम प्लेट पर देवरानी और देवर का नाम देख कर दंग रह गए। घर ज़मीन भी देवर और देवरानी के नाम ही थी।


सारे रीति रिवाज पूजा देवर देवरानी ने ही किये। सोनल को तो अपने घर में मेहमान जैसा महसूस हो रहा था। सोनल ने माँ से कहा "हमने तो आपके लिए घर बनाया था, आपने तो सब कुछ देवर देवरानी को दे दिया? हमें इससे दिक्कत नहीं, पर आपने हमें बताया भी नहीं।"

"तो क्या हुआ दे दिया? ये दोनों यहां रह कर हमारी सेवा करते हैं, तुम दोनों मियाँ बीवी के तो मुंबई में मजे हैं। अभी हम जिंदा हैं तो ऐसे बोल रही हो हमारे जाने के बाद तो तुम भाई भाई के बीच दरार लाओगी!"


"दरार तो आपने ला ही दी है मम्मी जी दोनों बेटे में भेद भाव कर के और हम मुंबई रहते हैं तो कोई ऐश नहीं करते दोनों मेहनत से कमाते हैं कि परिवार में किसी को कमी नहीं रहे। भले शारीरिक रूप से आपकी सेवा ना की हो, पर मेहनत हम भी करते हैं जिसका रूप ये घर है, जिसपर आज हमारा कोई हक़ नहीं। आपने तो अपने बड़े बेटे का हक़ भी छीन लिया।"



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