बचपन की होली
बचपन की होली
वीर- "हैप्पी होली माँ , हैप्पी होली पिताजी।"
पिताजी- "हैप्पी होली"
माँ- (पकवान बनाते हुए) "हैप्पी होली !"
वीर-"हाँ, मेरे लिए आपने रंग बनाए थे और पिचकारी और गुब्बारे भी निकाल दो जो मैं कल बाजार से लाया था ।"
माँ- "पहले नाश्ता कर लो।"
वीर-"देखता हूँ कौन कौन खेल रहा है होली (बाहर देखकर) अरे! अभी तो कोई भी नहीं खेल रहा।"
(नाश्ता कर वीर होली की तैयारी करता है) कभी पिचकारी भर बच्चों पर चलता कभी घर आए मेहमानो को रंग लगा जोर जोर से हँसता । बाकी बच्चों ने भी तैयारियाँ शुरु कर दी थी । वह घर भाग गया रंग लेने पर घर पर चाचा ने रंगा दिया अब वह रोने लगा।
(बाकी सब वीर को देख हंसने लगे)
पिताजी - (वीर को चुप कराते हुए) "अब तुम रंग लगाओगे तो तुम्हें भी तो कोई रंग लगाएगा। बुरा न मानो होली है!"
वीर फिर रंग जेब में रख व रंग हाथ में रगड़ निकल गया और जैसे ही उसने अमृत को रंगा तभी अचानक पीछे से अंशु और हिमांशी ने मिलकर वीर को रंग दिया ।
(सब एक दूसरे को रंगते और किलकारी मार हंसते )
