बारिश के बाद की धूप
बारिश के बाद की धूप
काफी दिनों से बारिश होने के कारण सब जगह कीचड़ ही कीचड़ हो गया था। प्रदीप को किसी काम से बाहर जाना पर बारिश थम ही नहीं रही थी, इसलिए वह छाता लेकर चला गया।
आसमान में काले काले बादल इधर उधर मंडरा रहे और पानी की बूँदें प्रदीप के छाते में टप टप गिर रही थी। लहराती हवा के कारण प्रदीप छाते को कसकर पकड़े चला जा रहा था कि कहीं छाता उड़ न जाये।
रास्ते में कोई नहीं दिख रहा था, शायद ज्यादा बारिश के कारण लोग घरों में ही थे। प्रदीप पैदल ही जा रहा था। चलते चलते उसे अपना बचपन याद आने लगा। गलियों में पानी में छप छप करना और कागज की नाव बनाकर चलाना उसे बहुत भाता था। दूर तक जाती नाव को वे देखते रहते कि किसकी नाव सबसे आगे है और किसकी नाव रुक गई, किसकी भीगकर फट गई।
छाते की जरूरत ही नहीं पड़ती थी क्योंकि उसे बारिश में भीगना बहुत अच्छा लगता था। काले सफेद बादलों में वे शेर ,भालू, मोर देवी देवता ,बर्फ का गोला, रुई की गुड़िया और न जाने क्या क्या ढूँढा करते थे।
चलते चलते वह दुकान तक पहुँच गया, बारिश में पकौड़े खाने का मन हुआ इसलिए वह दुकान से बेसन प्याज खरीदकर घर ले आया। घर आकर वह अपनी माँ से पकौड़े बनवाया फिर सब लोग मजे लेकर टमाटर की चटनी के साथ पकौड़े खाने लगे।
तभी अचानक उनके आँगन में खिली खिली धूप फैल गई।
धूप देखकर सब खुश हो गए। प्रदीप बाहर निकल आया, आसमान में एक तरफ सूरज मुस्कुरा रहा था और दूसरी तरफ सात रंगों में सजा इंद्रधनुष।
