Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

बालिका मेधा 1.33

बालिका मेधा 1.33

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मेरे मन में था वह प्रश्न पीयूष ने मम्मी से पूछ लिया "आंटी जब ऐसा है तो किसी ने कम उम्र में शबनम की शादी का विरोध क्यों नहीं किया और पुलिस को शिकायत क्यों नहीं की?

मम्मी ने कहा "लड़की के पिता (एवं परिवार) को समाज में, लड़के के परिवार से कम मानने-देखने की परंपरा रही है। इस तरह के विवाह की कोई शिकायत नहीं करता है। लोग सोचते हैं, कल उनके स्वयं की बहन-बेटी ऐसी भूल कर दे तब बदनामी से बचने के लिए उनको भी यही करना होगा।"

पीयूष ने कहा "अर्थात हम यदि आपसे शबनम की शादी की शिकायत कर, इसको न्यायालय से अमान्य करवाने के लिए कहें, तो आप भी यह नहीं करेंगीं। आप हम दोनों के कल के लिए डरेंगी।" 

मम्मा ने कुछ पल पीयूष को निहारा फिर कहा "पीयूष, तुम और मेधा समझदार बेटी हो। मुझे ऐसी कोई आशंका नहीं कि तुम में से कोई कभी भी भ्रम आकर्षण में पड़ कर बिना सोचे समझे ऐसे कोई काम करोगी। तब भी मैं या पापा, इसकी शिकायत नहीं करेंगें। मुझे, ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ अंशों में वह स्वयं भी उस आदमी अमन का साथ चाहती रही है, निश्चित ही यह शबनम की नासमझी है। उसके साथ यह हुआ गलत तो है, अब इससे हुई हानि को कम से कम करने के उपाय ही उचित हैं।" 

मैंने कहा "मगर भविष्य में उसे इस कदम से पछतावा हो सकता है। आप क्या सोचतीं हैं, अभी हम उसकी कोई भी सहायता नहीं कर सकते हैं?" 

मम्मी ने कहा "आज पुलिस एवं न्यायालय की सहायता हम लें तो शबनम खुद भी हमें अपना दुश्मन मानने लग सकती है। तुम ही बताओ ऐसे में हम क्या सहायता कर सकते हैं?"

मैंने कहा "मम्मी मैं इसका एक उपाय देखती हूँ। मगर पहले आप बताइये कि अभी आपने यह कैसे सोचा और कहा कि “यह तो शबनम का भाग्य अच्छा है ….”   

मम्मी ने कहा "यह इसलिए कहा कि कई ऐसे प्रकरणों में लड़की के परिवार वाले बदनामी से क्रोधित होकर, अपनी बेटी की हत्या तक कर देते हैं। इसे अब ‘ऑनर किलिंग’ कहा जाने लगा है। शबनम इस तरह मारी नहीं गई है। शबनम को जीवन में आगे का अच्छा-बुरा जीने के लिए अवसर मिल गया है। यह सोचते हुए मैंने उसका भाग्य अच्छा कहा है।"

मैंने कहा "मम्मा, मैं अब समझ गई हूँ। इन सब परिस्थितियों में क्या यह अच्छा नहीं होगा कि हम शबनम के पति अमन से मिलकर, उसे स्कूल भेजने के लिए कहें? ताकि वह अपनी पढ़ाई/शिक्षा पूरी करने का अवसर पाए।"

मम्मी ने कहा "यह विचार अच्छा है। फिर भी मुझे संदेह है कि शबनम के पति अमन और ससुराल वाले, इसकी अनुमति शबनम को देंगे। मैं तुम दोनों में से किसी को शबनम के पति अमन के सामने नहीं करना चाहती। अगर यह करना भी है तो तुम्हारे पापा और मुझे करना होगा। इसके पहले मुझे, पापा को इस विचार से सहमत भी तो कराना होगा।"

पीयूष ने कहा "पापा, अवश्य ही मान जाएंगे। वे बहुत अच्छे व्यक्ति हैं।"

मम्मा ने कहा "आशा मुझे भी है। "

मैंने कहा "फिर क्यों ना आप दोनों, उनसे मिलने की कोशिश करो!"

मम्मा ने कहा "शबनम या उसके पति का कांटेक्ट नं. हमारे पास नहीं है। अन्यथा हम उन दोनों को शादी के उपलक्ष में, किसी अच्छी होटल में डिनर पर आमंत्रित करके साथ डिनर करते हुए, यह रिक्वेस्ट कर सकते हैं।"

पीयूष ने कहा "आप पापा को सहमत कराइये। हम शबनम या अमन का कांटेक्ट नं. गोपनीय रूप से खुशबू से लेने की कोशिश करते हैं।" 

17 अगस्त को स्कूल में डरते डरते, खुशबू ने अमन का नं. हमें दिया था। उसने यह भी बताया "अमन मेरे घर के पास ही रहता है। ऐसा न हो कि अमन बात फैलाने के लिए मुझे जिम्मेदार मानकर मेरा कुछ अहित करे।" 

हमने उसे भरोसा दिलाया था कि कहीं भी उसका नाम नहीं आने वाला है। संभव हो सका तो हम शबनम को फिर स्कूल में अपने बीच देख सकेंगे। 

पापा ने शबनम के पति अमन से कॉल पर बात की थी। उन्होंने अमन को बताया था कि शबनम हमारी बेटी की फ्रेंड है। उसकी शादी के उपलक्ष में, 22 को हम साथ डिनर करना चाहते हैं। अमन ने हिचकते हुए स्वीकृति दी थी। 

पापा-मम्मा जब तय दिन पर डिनर के लिए निकले थे तब पीयूष और मैं, अपने अपने घर में इसके नतीजे को लेकर अत्यंत उत्सुक और आशा लगाए बैठे हुए थे। 

पापा मम्मी, डिनर से देर रात लौटे थे। मैं जाग तो रही थी फिर भी मैंने इनसे अभी कुछ पूछना उचित नहीं समझा था। हाँ दोनों के मुख के भाव ऐसे प्रतीत हुए थे कि वे दोनों जिस अभिप्राय से डिनर के लिए गए थे, वह सिद्ध हो गया था। 

अगली सुबह जब मैं उठी तो मम्मी-पापा जल्दबाजी में कहीं जाने की तैयारी करते दिखे थे। 

मुझे देखकर मम्मी ने बताया "हमें जल्दबाजी में एक महत्वपूर्ण पारिवारिक काम के लिए बाहर जाना पड़ रहा है। तुम दो दिन पीयूष के घर रह लेना। तीसरे दिन हम वापस आ जाएंगे!"

मम्मा-पापा ने बाहर जाते हुए, मुझे पीयूष के घर छोड़ा था। हम सोमवार 24 अगस्त को जब स्कूल पहुँचे तब हमें सुखद आश्चर्य हुआ था। शबनम तब हमें प्रशासनिक कक्ष में जाते हुई दिखी थी। 

शबनम कुछ मोटी हो गई प्रतीत हो रही थी। हमारी क्लास का समय हुआ था, पीयूष और मैं उसकी झलक देखकर आनंदित होते हुए, उससे मिले बिना अपनी क्लास में आ गए थे। 

ब्रेक में उत्सुकता में हम कॉमर्स सेक्शन में गए थे। शबनम वहाँ हमें अकेली बैठी मिल गई थी। हम दोनों ने खुश होकर उससे हाथ मिलाया था। हम उसे अपने साथ लेकर ग्राउंड में एक पेड़ के नीचे ले आए थे। हमें उससे बहुत सी बातें करनी थीं।  

शबनम ने हमारे बिना पूछे ही बताया "मैं आगे पढ़ सकूँगी यह सोच भी नहीं रही थी। मैं कृतज्ञ हूँ अंकल-आंटी की, जिन्होंने हमारे रिश्ते को सहृदयता से स्वीकृति दी। डिनर पर आमंत्रित कर बड़े स्नेह और तर्क से अमन के विचारों को प्रभावित किया और मेरी आगे की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया है।"

पीयूष ने कहा "अभी हम लगभग डेढ़ वर्ष स्कूल में साथ रहने वाले हैं। हम दोनों ही देखेंगे कि स्कूल में तुम अपने को कभी अकेली अनुभव न करो।" 

इसके पश्चात हमने शबनम से उसकी शादी और अमन के बारे में बातें छोड़कर बहुत सी बातें की थी। यह सावधानी हमने जानबूझकर रखी थी। हम शबनम को किसी प्रकार से ग्लानि बोध में नहीं डालना चाहते थे। साथ ही हम यह भी नहीं चाहते थे कि शबनम एवं अमन के रिश्ते की निजी बातों को जानने से, हमारे अध्ययन पर कोई बुरा प्रभाव पड़े।    

(क्रमशः)


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