Harish Bhatt

Others

4.3  

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बादशाह

बादशाह

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दो-तीन दिन पहले की बात है जब यूं ही धम्मू भाई से मुलाकात हुई। उनसे मैंने पूछ लिया कि बादशाह के क्या हाल है। उन्होंने हंसते हुए कहा वही बादशाह, जिसका लड़का बैंक में जमा करा दिया था आपने। उस दिन तो बादशाह ने मेरे ऊपर आरोप लगा दिया था कि मैंने उसके लड़के को गायब किया है। अच्छा हुआ आपने मिलवा दिया था।

मैंने पूछा आजकल बादशाह क्या कर रहा है। तो उन्होंने कहा कि आजकल अपने घर पर ही है। उसका लड़का यहीं पर एक दुकान में काम करता है। उसका नाम सोनू है।

इतना सुनने के बाद लगभग 15 साल पुरानी बात याद आ गई। जब एक दिन शाम के लगभग 5:00 बजे मैं अपने घर निकलकर पड़ोस में एक बैंक के पास जहां पर सभी दोस्त लोग इकट्ठा हुआ करते थे, पहुंचा ही था कि वहां पर एक छोटा बच्चा बहुत तेज रो रहा था। उस बच्चे की उम्र यही कोई 3-4 साल की रही होगी। मैंने उस बच्चे का हाथ पकड़ा और पूछा कि क्या हुआ। लेकिन वह बच्चा कुछ बताने की स्थिति में नहीं था। बस लगातार रोते जा रहा था। उस बच्चे को मैंने अपने पास बैठा लिया। क्योंकि शहर का व्यस्ततम मुख्य मार्ग होने की वजह से दोबारा उस बच्चे के खो जाने का डर था। तभी बैंक ड्यूटी में तैनात पुलिस के एक जवान जो दोस्त भी थे वहां पर आए और बोले क्या हुआ। मैंने कहा शायद यह बच्चा खो गया है अब परिजनों को तलाशना है। बैंक के बाहर चाय की ठेली लगाने वाले पैन्यूली ने बच्चे को चाय बिस्कुट खिलाया। उसके बाद मैंने बच्चे को पूछा बेटा कहां से आए हो तो उसने कहा जहां से सवारी आई है। क्योंकि उसी समय रास्ते से जैन समाज की सवारी निकली थी। बच्चे से पूछा कि बेटा तुम्हारे पापा का क्या नाम है तो उसने कहा बादशाह। अब हमारे पास ढूंढने के लिए सिर्फ दो ही पॉइंट है जहां से सवारी की शुरुआत हुई थी वहां पर जाना और बादशाह को तलाशना। बस फिर क्या था पैन्यूली से स्कूटर लिया। मैं और मेरे सिपाही दोस्त बच्चे को लेकर निकल पड़े बादशाह की तलाश में। जैन मंदिर पहुंचकर हमने आसपास पूछा बादशाह नाम का कोई व्यक्ति वहां नहीं था। कोई बच्चे को पहचान नहीं रहा था। बच्चा इतना ही कह रहा था कि और आगे और आगे। चलते चलते हैं हम शहर से बाहर जंगल में पहुंच गए। यकीन हो गया कि बच्चा कुछ नहीं बता सकता और हम वापस फिर शहर में आ जाए। धीरे-धीरे शाम ढलने लगी थी और हम शहर के गली मोहल्लों में उस बच्चे को लेकर घूमते रहे कोई भी बच्चे को नहीं पहचान पा रहा था। आखिर में 9:00 बजे के आसपास हमने आकर बच्चे को दूध बिस्किट खिलाया। इधर पैन्यूली जी अपनी रंगत में आ चुके थे। कहने लगे इस बच्चे को मैं अपने साथ ले जाऊंगा क्योंकि मुझे पुलिस वालों पर कोई भरोसा नहीं है कि वह बच्चे को कैसे रखेंगे। इधर पुलिस वालों का कहना था कि बच्चे को हम अपने पास ही सुला लेंगे सुबह फिर तलाश करेंगे। पैन्यूली अभी अपने होश में नहीं है। फिर यही तय हुआ कि पुलिस वाले ही अपने साथ बच्चे को बैंक में सुला लेंगे। और उन्होंने बच्चे को अपने बिस्तर पर सुला दिया। इतना करने के बाद मैं त्रिवेणी घाट पर स्थित पुलिस चौकी की तरफ चला गया जहां पुलिस वाले मेरे दोस्त कहने लगे आज इतनी देर कहां लग गई। उनको बच्चे के खोने का वाकया बताया। उन्होंने कहा हमारे पास अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं आई है जैसे ही कोई आता है हम आपके पास भेज देंगे। उसके बाद रात को लगभग 11:00 बजे के आसपास मेरे घर पर मेरे बहुत प्रिय शिवकुमार भाई साहब एक व्यक्ति को लेकर मेरे घर आए और बोले हरीश तेरे पास कोई बच्चा है। मैंने कहा हां, तो उन्होंने कहा वह बच्चा तो इसका है। मैंने पूछा इनका क्या नाम है। तो उन्होंने कहा बादशाह। इलना सुनना था और मेरे कान खड़े हो गए मैंने कहा चलो आपको दिलाता हूं। फिर हम बैंक में पहुंचे। लेकिन उस समय वहां पर दूसरे सिपाही की ड्यूटी लगी हुई थी। उसने कहा कि अभी मुझे मालूम नहीं है लगभग 2 घंटे बाद वह भाई साहब आएंगे तो कुछ बता सकता हूं क्योंकि उनकी ड्यूटी 2 घंटे बाद शुरू होगी। फिर सभी वापस वहां गए जहां बादशाह रहता था। बादशाह का घर लगभग पड़ोस में ही था लेकिन हम उस गली की तरफ नहीं गए। पता चला कि शाम से ही उस बच्चे की खोज की जा रही थी। बच्चा मिलने की खबर सुनकर सभी खुश हो गए और कहने लगे कि बच्चा बाद मिलेगा अभी बैंक में जमा है। रात को लगभग 1:00 बजे के आसपास जब अपनी ड्यूटी पर वही सिपाही आए तो उन्होंने बच्चे को उठा उसके पिता बादशाह को दे दिया। उन्होंने कहा कि भाई तुम सुबह के वक्त आना तब बात करेंगे। इसके बाद जब सभी लोग चले गए। कहने लगे कि सुबह को बादशाह आएगा तो पैन्यूली को कुछ खर्चा पानी दिलवा देंगे वह बहुत हल्ला मचा रहा था कि मेरा स्कूटर ले गए पेट्रोल खर्च कर दिया।

सुबह को जब पैन्यूली चाय की ठेली पर आया तो उसको बताया कि बच्चा मिल चुका है तो उसने कहा कि मुझे मेरा खर्चा चाहिए तो उसे आश्वस्त कर दिया कि अभी बच्चे के पिता आ रहे हैं तभी कुछ होगा वरना कुछ नहीं। थोड़ी देर बाद बादशाह हाथ जोड़ते हुए चला आया और कहने लगा बाबू जी मेरे पास तो कुछ भी नहीं है मैं तो लेबर का काम करता हूं। उधर पैन्यूली अड़ गया कि मुझे तो कम से कम ₹500 दिलवा दो। बादशाह की हालत देखकर पैन्यूली को समझाया गया कि जिस दिन बादशाह कहीं पर मिठाई बनाएगा तो उस दिन वह एक मिठाई का डिब्बा लाकर तुमको दे देगा। इससे ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला।

धम्मू भाई ऋषिकेश की प्राचीन और प्रसिद्ध पंडित पूरी वालों की दुकान पर काम करते हैं और बादशाह उनका हेल्पर पर हुआ करता था। अब सोनू भी लगभग 19 साल का है और वहीं पर एक दुकान पर काम करता है और बादशाह टेंट वालों के यहां अपनी रोजी रोटी कमा रहे है। अब पैन्यूली भी कहीं गढ़वाल में ढाबा चला रहा है, जैसा मुझे पता चला। पुलिस वाले अब पता नहीं कहां पर होंगे। यह पूरा वाकया 15 साल बाद इस कदर याद है कि जैसे कल की ही बात हो। अभी भी मेरी सोनू से कोई मुलाकात नहीं हुई जैसा कि धम्मू भाई ने कहा है कि मैं सोनू को आपसे मिलवा दूंगा जरूर।


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