बाबुजी सही कहते हैं
बाबुजी सही कहते हैं


चरमराती हुई साइकिल पर बाबुजी को छोटू रोज देखता। अपने कमजोर शरीर की पूरी ताकत लगा कर कपड़ों के ढेर को बाँध वो काम पर जाते। छोटू गुब्बारे बेचने पैदल ही निकल जाता। उसकी उम्र कम थी पर बाबुजी की तकलीफ उसे साफ दिखाई देती थी।
"बाबुजी आप स्कूटर क्यूँ नहीं ले लेते। हवा से बाते करती है गाड़ी"
"अरे बावलो जैसी बात कर रहा है। तू कब बैठा स्कूटर पर?
" बैठा तो नहीं बाबुजी, पर दरिया किनारे गुब्बारे लेने जो लोग आते हैं ना देखा है मैंने मेरे गुब्बारे फिर हवा से बाते करते जाते हैं
" पगले हमारी हैसियत नहीं है। स्कूटर नहीं स्कूटर के ख्वाब देखने की भी। तू काम पर ध्यान दिया कर। छोटा है तू छोटू अभी नहीं समझेगा "
छोटू फिर वही ख्वाब लिए गुब्बारे बेचने आ गया। सामने खड़ी नीली स्कूटर बार बार उसको आकर्षित कर रही थी जैसे बुला रही हो अपनी ओर
छू कर देखू क्या। कैसा लगता है मेरा सपना।
छोटू धीरे धीरे स्कूटर के पास जाता है। वाह ये तो मखमली सीट है। तड़ाक । जोरदार चांटा पड़ता है।
चोरी कर रहा था।
मारो इसे स्कूटर चुराना चाहता था
कुछ ही देर में भीड़ ने अपनी भड़ास उस पर निकाल दी और हाथ से गुब्बारे छूट हवा के रुख में हो लिए।
एक आदमी ने अपनी साइकिल पर बिठा कर उसे उसके घर छोड़ दिया।
बाबुजी ने उसकी हालत देखी तो घबरा गए
क्या हुआ? कुछ बोलता क्यूँ नहीं। अरे क्या कर आया
छोटू के मुँह से सिर्फ इतना ही निकला "आप सही कहते हैं बाबुजी"।