असमंजस
असमंजस
मनोहर झा, बैकुंठ महतो, फागु राम और गफूर मियां चारों लंगोटिया यार है। और उनका फेवरेट गाना है जहां चार यार मिल जायें वहीं रात हो गुलजार, जहां चार यार.....
मनोहर पुजारी हैं। बैकुंठ का गाय भैंस का खटाल है फागु का शहर के चौक पर जूते चप्पल मरम्मती का छोटा सा कठघरा और गफूर मियां चिकेन अंडा बेचते हैं।
सबके बाल बच्चे बड़े हो गए हैं और पुश्तैनी धंधा संभाल लिए है। सो अब चारों दोस्त गृहस्थी की जिम्मेदारी से लगभग मुक्त है। ये अलग बात है कि दिन में एक आध बार सब अपने अपने धंधे का निरीक्षण कर आते हैं।
रात के नौ बज चूके हैं। दुकानों का शटर गिरने लगा है। टावर चौक की टावर घड़ी टन टन टन कर के नौ बार बजकर इसकी पुष्टि कर दी है। दो किलो मीटर तक घड़ी की आवाज साफ सुनाई देती है।
मतलब चारों को एक साथ अपने अपने घर से निकलने की अलार्म घड़ी।
गांधी चौक पर चारों यार मिलते हैं। बगल वाले बिजली पोल पर टंगा लिप्टन ताजा चाय का पोस्टर और उसमें छपा चाय बगान वाली एक सुंदर सी लड़की का तस्वीर। मंद मंद बह रही हवा में पोस्टर का हिलना। जैसे उन चारों यार के साथ नैन मटका का खेल खेल रही हो।
चारों दोस्त पांच दस मिनट गौर से उस पोस्टर को निहारते हैं। फिर हीहीयाते हुए आगे निकल पड़ते हैं।
कल बैकुंठ जुगाड़ किया था, आज मनोहर की बारी है । इधर उधर ताकते है। अगल बगल किसी जान पहचान वाले को न पाकर झट से एक हाफ खरीद लेते हैं।
गफूर मियां गमछी में कुछ बंधा हुआ है। शायद चिकेन को बढ़िया से फ्राई कर लाये है। फागु का सब दिन का ड्यूटी है दो बोतल बिसलेरी पानी का व्यवस्था करना।
बच्चे लोग भी अपने कर्मस्थली से घर पहुंच चुके है।
सो एक साथ घंटों बैठने के लिए खटाल से ज्यादा सुरक्षित जगह और कोई नहीं है।
प्रोग्राम स्टार्ट हो चुका है। एक एक पैग लेने के बाद सब के दिमाग का बटन आन हो चुका है। सब बारी बारी से स्मृति का फ्लैस बैक कर रहे हैं।
कौन क्या बोला, किस प्रसंग में बोला कोई मायने नहीं रखता। बस दिल खोलकर ठहाका लगा देना है।
यदि कोई अत्यधिक खुमारी में किसी को गाली भी दे दिया तो बदले में उसे भी गरीया देना है, हिसाब-किताब बराबर।
हाफ खतम होने पर है और मस्ती फूल पर। इतने में टावर घड़ी की टन टन टन की दस बार घंटी फिर से बज गई।
चारों एक दूसरे को देखते है।
बम भोले कैलासपति
क्या बिगाड़ लेगा लाखपति
मांग चांग कर खाते हैं
पर किसी के दरवाजे पर नहीं जाते हैं।
नित स्लोगन के साथ गफूर मियां सभा की समाप्ति की घोषणा करते हैं। और अलविदा ए खटाल आज कह कर विदा लेते हैं।
गांधी चौक तक लड़खड़ाते बल खाते सब साथ साथ आते हैं। हवा में फहराते लिप्टन ताजा चाय वाले पोस्टर में लड़की की तस्वीर को फिर से गौर से निहारते हैं। मेरे तरफ तो मेरे तरफ देख रही है का दावा चारों एक साथ करते हैं। दावेदारी को लेकर थोड़ी सी नोंक झोंक भी । पर मन में किसी के प्रति कोई खटास नहीं। फिर अपने अपने अंदाज में पोस्टर को खुदा हाफ़िज़ कहते हुए सब अपने अपने घर की ओर चल पड़ते हैं।
राधेश्याम बाबू क्लास वन अफसर से हाल ही में रिटायर किये है। जब तक नौकरी में रहे परिस्थिति बस अथवा यूं ही सबको अपने से नीचे का समझ कर सबसे कटे कटे रहे।
आलीसान घर है उनका। बेटा पुतोहू विदेश में रहते हैं।बीपी शुगर और हर्ट डीज़ीज़ रिटायरमेंट गिफ्ट के साथ लाये है। समय काटना मुश्किल हो रहा है। कोई बात करने वाला नहीं है।
मैं असमंजस में हूं । मनोहर बाबू एंड कंपनी की जिंदगी जीना सही है या राधेश्याम बाबू सा जिंदगी?
