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Ila Jaiswal

Children Stories

4  

Ila Jaiswal

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अर्श से फर्श पर

अर्श से फर्श पर

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सलोनी की खुशी का कोई ठिकाना न था, आज कॉलेज के सबसे होशियार और स्मार्ट लड़के अजय ने उससे प्यार का इजहार किया था । उसने भी उसके प्यार को स्वीकार कर लिया था। भाग्य की बात, दोनों को नौकरी भी एक ही शहर में मिली थी। इसे दोनों ने ही अपने लिए शुभ संकेत माना । दोनों ने अपने नियुक्ति पत्र संभाले और अपनी मंजिल की ओर बढ़ चले। ट्रेन में दोनो एक ही डिब्बे में थे। अजय ने कहा ," में आज बहुत खुश हूं। हम दोनो अब एक ही शहर में रहेंगे। एक दूसरे को और ज़्यादा समय दे सकेंगे।" " हां, सच कह रहे हो ,अजय। अब हमें मिलने के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। माता - पिता की रोक टोक से दूर , दोनों आज़ाद पंछी की तरह उड़ेंगे।", दूर आसमान में देखते हुए सलोनी बोली। बातों - बातों में कब रात बीती , दोनो को पता नहीं चला। दोनों अपना स्टेशन आने पर उतर गए। कंपनी ने दोनों के ठहरने का इंतजाम कर रखा था। शाम को दोनों मिले । दोनों किसी साथी की मदद से अपने लिए रहने की जगह ढूंढने लगे। कहीं - कोई ढंग का कमरा नहीं मिल रहा था। कहीं किराया ज़्यादा था तो कहीं बंदिशें। अकेले लड़के को या अकेली लड़की को कमरा देने में सभी सावधान रहते है , कहीं कल को कोई कांड न हो जाए। इसी प्रकार दिन निकल रहे थे। अजय को कोई फ्लैट मिल गया था जोकि उसके किसी सहकर्मी का था। पर सलोनी अभी तक परेशान थी। एक दिन जब दोनों शाम को टहल रहे थे तो सलोनी ने कहा," लड़कियों को कोई कमरा देना नहीं चाहता। मैं तो तंग आ गई हूं। सोच रही हूं, वापिस चली जाऊं।" अजय का मुंह उतर गया , उसने सलोनी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा ,' देखो, मुझे गलत मत समझना । अगर तुम चाहो तो मेरे साथ आके रह सकती हो , जबतक तुम्हें कोई दूसरा कमरा नहीं मिल जाता।" "तुम्हारा मतलब लिव- इन ..." सलोनी ने हिचकते हुए कहा। कोई और विकल्प न होने की स्थिति में सलोनी अपना सामान लेकर अजय के फ्लैट में चली आई। दोनों बहुत खुश थे। " अब , सुबह होते ही तुम्हारा सलोना चेहरा मुझे देखने को मिलेगा।" , अजय ने प्यार जताते हुए कहा । " और अब तुम्हें कैंटीन का बेकार खाना भी नहीं खाना पड़ेगा। दोनों मिलकर कर लेंगे।", सलोनी ने उत्साहित होते हुए कहा । " हमारी गृहस्थी तो पहले ही बस गई बस अब फेरे पड़ने की देर है।" अजय की बात सुनकर सलोनी के मुख पर लालिमा छा गई। अब तो सलोनी के पैर जमीन पर नहीं थे। उसे लगता था वह सातवें आसमान पर उड़ रही है। रोज़ सुबह दोनों एक साथ निकलते और शाम को वापिस भी एक साथ आते। वापसी में कभी सब्जी, कभी फल, कभी बर्तन तो कभी कोई और सामान होता। दोनों को देखकर सचमुच ऐसा ही लगता था जैसे नवविवाहित हों। एक दिन जब अजय तैयार होकर कमरे से बाहर नहीं निकला तो सलोनी अजय के कमरे में चली गई , छू के देखा तो उसे बुखार था। सलोनी ने अजय को तुरंत दवाई दी और माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रखने लगी। उसने ऑफ़िस में छुट्टी के लिए बोल दिया था। उसकी बढ़िया सेवा से रात तक अजय काफी ठीक ही गया था। " तुम अगर नहीं होती तो पता नहीं कब तक मैं ऐसे ही बुखार में पड़ा रहता । तुम्हें किन शब्दों में शुक्रिया कहूं।" अजय ने सोनी से कहा। " कैसी बातें कर रहे हो , अजय? हम दोनों सुख - दुख दोनों के साथी हैं। अगर मैं बीमार पड़ती , तब तुम भी ती मेरे लिए यही सब करते।", सलोनी ने अजय को संभालते हुए कहा। अजय इतना भावविभोर हो उठा कि उसने सलोनी को गले लगा लिया और प्रेमवर्षा कर दी। सलोनी भी इस प्रेमवर्षा में पूरी तरह भीग गई। दोनों ने एक दूसरे को आत्मसात कर लिया। सुबह अजय उठा तो उसे बहुत सकुचाहट हो रही थी। तभी उसे सलोनी का स्वर सुनाई पड़ा , वह गुनगुना रही थी," बिन फेरे, हम तेरे।" उस दिन के बाद , दोनो जब चाहे प्रेमवर्षा में भीग लेते। सलोनी भी हमेशा गाती रहती,"बिन फेरे , हम तेरे।" सलोनी पूरे जोश के साथ प्रेम के खुले आसमान में उड़ रही थी। उसे अपनी मंजिल सामने दिखाई दे रही थी। " अजय, हम तो बिना फेरों के ही एक दूसरे के हो चुके हैं। विवाह तो बस समाजिक रस्म है जिसे हमें निभाना है। ", सलोनी अपनी ही रौ में कहती रहती। अजय मूक स्वीकृति देता रहता। एक शाम दोनों घर पर ही थे, तभी अजय का मोबाइल बजा। अजय ने मोबाइल उठाया और पूरी बात सुनकर कहा ," अच्छा , ठीक है। " "इतनी जल्दी , बात हो गई। किसका फोन था? तुमने ज़्यादा कुछ कहा भी नहीं। सब ठीक है, ना।" सलोनी ने कई प्रश्न एक साथ कर दिए।

"हां, सब ठीक है। कल तुम शाम को अपनी सहेली के घर चली जाना और अपने कमरे में ताला लगा देना । ठीक से देख लेना, कोई सामान इधर - उधर पड़ा न रह जाए।", अजय ने लगभग आदेश देते हुए कहा। " क्यों, ऐसा कौन आने वाला है? जिसके लिए मुझे यहां से जाने की जरूरत पड़ेगी। ", सलोनी हैरान थी। " जिस के साथ मेरा रिश्ता तय हुआ है, उसके पिताजी और मेरे पिताजी आ रहे हैं।", अजय ने बम फोड़ते हुए कहा। " क्या कहा तुमने, रिश्ता? और तुम मुझे आज बता रहे हो। जब तुम्हारा रिश्ता तय था तो तुमने हमारा रिश्ता आगे क्यों बढ़ाया? वह उत्सुकता, वह प्रेम , बिन फेरे ...।" सलोनी अभी बात पूरी भी न कर सकी थी , अजय ने बीच में ही टोक दिया," बस भी करो, ये बिन फेरे, हम तेरे का ड्रामा। जो हुआ दोनों की सहमति से हुआ। इस क्षणिक सुख के लिए फेरे लेने की जरूरत नहीं सिर्फ सहमति की जरूरत होती है। अब मुझे भी तो मुझे भी तो अपनी गृहस्थी बसानी है। सारी उम्र तो ऐसे नहीं रह सकता ।तुम्हारे चक्कर में अपने घरवालों को भी बहाने बना के यहां आने से रोक देता था। पर अब बस..। जब तक मेरी शादी नहीं ही जाती तब तक का समय है तुम्हारे पास , अपने लिए कोई कमरा ढूंढ़ लो।" अजय ने झुंझलाते हुए कहा। सलोनी कुछ बोल नहीं पाई, उसके शब्द कहीं खो गए थे, उसे ऐसा लगा जैसे उड़ते - उड़ते किसी ने उसके पंख काट दिए हों और वह तड़पती हुई सीधे जमीन पर गिरी। गिरने के बाद भी उसकी नज़रें आसमान की ही तरफ थी, पर उसका दर्द उसके दिलोदिमाग में गूंज रहा था - 'अर्श से फर्श पर '।



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