अपराध बोध
अपराध बोध
असहनीय दर्द से तड़प रही थी, वो युवती, ओ माँ, मर गई, मर गई, स्ट्रेचर पर बग्गल में दौड़ती चलती मां, उसका सर सहलाती जा रही थी, ,कुछ नही होगा तुझे, भगवान हम सब की सुनेंगे, पर शायद दर्द की अधिकता से उसे मां की बात भी नही समझ आ रही थी। उसका रोना और चिल्लाना बदस्तूर जारी था। यहां तक कि आपरेशन थियेटर बंद हो जाने के बाद भी उसकी चीखें बाहर तक आ रही थी।मां का कलेजा दहला जाता था।
उधर ओ टी में डॉक्टरों की टीम तत्परता से उस मरीजा की सेवा में मुस्तैद थी।युवती जिसका नाम वाणी था, उसकी ये तकलीफ नई नही थी।हर महीने ही पीरियड्स के समय वो ये असहनीय कष्ट भुगतती थी। दर्द निवारक दवाओं के असर से कुछ देर ये दर्द दबा रहताफिर वही हाल-----विभिन्न जांचों से निष्कर्ष निकाला कि उसके यूट्रस में एक काफी बड़ी गांठ थी, जिसके कैंसर में बदल जाने की भी आशंका थी। 24,25 वर्षीया वाणी, थक चुकी थी अपने इस दर्द से। अचानक आपरेशन थियेटर में एक डॉक्टर की आवाज गूंजी,
"रिमूव द यूट्रस----", और फौरन ही उसको ड्रिप में बेहोशी का इंजेक्शन दे , आपरेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।लंबे चलने वाले इस आपरेशन के बाद बेहोशी में भी वाणी के चेहरे पर अद्भुत शांति थी। उसे प्राइवेट रूम में शिफ्ट कर दिया गया।डॉक्टर्स नर्स को हिदायत दे अपनी ड्यूटी पर वापस जा चुके थे।
उधर मनीष वो डॉक्टर जिसने आपरेशन का हुक्म दिया था घर पर खाना खाते हुए रिलैक्स महसूस कर रहा था। बहन को तकलीफ से छुटकारा दिलाने में सफल जो रहा था अचानक मां ने खाना परोसते हुए पूछा, "अब किसी है वाणी?"
"अब ठीक है माँ, आपरेशन सफल रहा, अभी लेकर चलता हूँ तुम्हे।"
"उसका यूट्रस ही हटवा-------,"आगे के शब्द उसके गले मे ही फंसे रह गए, मां तब तक उसे झंझोड़ रही थी, मनीष ?? ये क्या किया तूने?? पर मनीष का खुद का मस्तिष्क विचारशून्य हो चुका था?
"ये कैसा आदेश दे बैठा वो? वाणी का आगे का जीवन?"
उफ़! ये कैसा ब्लंडर, क्या हो गया था उसे मां अलग सर पर हाथ रख कर रोती जा रही थी, और कब उसके गालों पर दो आंसू गर्म मोतियों की तरह फिसल चुके थे।
वाणी डिस्चार्ज होकर घर आ चुकी थी, उसको सच्चाई बताने का निर्णय लिया गया, पर सच सुन कर भी वो सामान्य ही व्यवहार करती रही, शायद अस्पताल में वो पहले ही ये सच सुन चुकी थी।और खुद को सामान्य दिखाते हुए मुस्कुरा रही थी।मनीष उससे 3 वर्ष बड़ा था, यानी 28 वर्ष। घर धीरे धीरे ढर्रे पर आ रहा था, मनीष उस रात के बाद कभी भी चैन से सो न पाया था, उसका अपराधबोध उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था। वो हँसमुख मनीष अब दिखता ही नही था। भूल चुका था अब वो अपनी सब चंचलता।
प्यार करता था अपनी सहपाठी डॉक्टर प्रियंका से, पर अब उससे भी कतराने लगा था।और एक दिन वाणी उसके कमरे में थी, आमने सामने, भैया,
कभी कभी होनी पर किसी का वश नही होता, तुम क्यों अपने को दोषी मान रहे हो? तुमने जानबूझ कर तो ऐसा आदेश दिया नही था, और मैं तो शुरू से ही खुद को शादी मैटीरियल मानती ही नही हूँ, हंसी वो हौले से।
पर अब मनीष का रुदन तेज हो चुका था, अब वो खुलकर रो रहा था, वाणी ने आगे बढ़कर उसका सर अपने सीने से लगा लिया रो लो भाई, हल्के हो जाओगे---,
कहते कहते वो खुद भी रोते हुए मुस्कुरा दी। दरवाजे पर खड़ी मां भी आँचल से अपनी आंखे पोछती जा रही थी।
"और तुम प्रियंका को क्यों अवॉयड कर रहे हो? उसका दोष??"फौरन उससे मिलो उसने बड़ी बहन की तरह आदेश दिया और सब मुस्कुरा दिए।
आज महीनों बाद मनीष प्रियंका के सामने था, मनीष, इतने वर्षों का प्यार और तुम मुझे इतना ही समझ पाए??? अपना कष्ट भी न कह सके, गला भर्रा गया था प्रियंका का---बदले में सिर्फ मनीष उसका हाथ हाथों में लेकर खामोश बैठा रहा।
"अच्छा सुनो, एक लंबी खामोशी के बाद प्रियंका बोली, मैं भी वाणी का जीवन ऐसे न बर्बाद होने दूंगी, हम लोगों की जो पहली संतान होगी उसे हम वाणी को दे देंगे उसे भी जीवन का उद्देश्य मिल जाएगा।
अचानक ही पीछे से ताली की आवाज़ आई, सही निर्णय प्रियंका, एक हंसी की भी आवाज़, ये वाणी थी, "मुझे मालूम थातुमलोग यहीं मिलोगे, काफी देर से पीछा कर रही हूँ।और मनीष भैया ,क्या तुम्हें ही प्यार करना आता है??? इससे मिलो ये रवि है, एक आकर्षक युवक की तरफ इशारा करते हुए वाणी बोली। और इसे मेरे बारे में हर सच्चाई पता है ,मुस्कुरा कर बोली वाणी , क्यों क्या कहते हो रवि!"
अपने जीवन का हर फैसला हम खुद ही करेंगे, जब एक दूसरे से बोर हो जाएंगे तो तुम्हारा बच्चा गोद लें या किसी और का ये भी हम ही तय करेंगे। रवि मुस्कुरा दिया।पार्क का वातावरण खुशनुमा हो चुका था।