अपनापन अजीब सा
अपनापन अजीब सा
हम महानगरों में रहने वाले लोगों को अपने में मस्त रहने की और अपनी ही दुनिया में खोये रहने की आदत होती है।इसका एक बड़ा कारण होता है यहाँ की व्यस्तता।इसलिए जो भी थोडा बहुत समय मिलता है वह केवल और केवल हमारे लिए होता है।फिर आपके पड़ोस में क्या हो रहा है इसकी कोई चिंता नहीं करता है।सब लोग अपने में ही मस्त रहते है।
हाँ, लेकिन इंटरनेट पर दुनिया में क्या हो रहा है उसपर पूरी नजर रहती है।फटाफट लाइक करो।किसी को गेट वेल सुन या टेक केयर जैसी कुछ चीजें लिखो।या फिर ड्रॉइंग रूम में टीवी पर कोई बहस ही देख लो।इसी तरह से लाइफ बड़े आराम से गुजरती जाती है।
लेकिन जब हम लोग अपने गावँ जाते है तब वहाँ पँहुचने के बाद लोग प्यार से बातें करते है।आप कह सकते हो की बस से जैसे ही उतरते है फौरन ही हम नए लोगों को देख कर गाँव के लोग पूछताछ करना शुरू कर देते हैं।जैसे कि कहाँ से हो? कहाँ जा रहे हो? किसके घर जाना है?अगर आने वाली कोई महिला हुई तो शादी हुई क्या? कितने बच्चे हैं? क्या करते हैं? और न जाने क्या क्या ....
महानगरों की व्यस्तता के कारण इतने सारे सवालों की हमे आदत ही नहीं होती है।और मजे की बात यह भी होती है कि हमे सारे सवालों के जवाब भी मुस्कुराते हुए देना पड़ता है अन्यथा छोटे से गावँ के कारण हमारा इम्प्रेशन पूरे गावँ में ख़राब हो सकता है।
बड़े बड़े महानगरों में रहते रहते हम कुछ ज्यादा ही तन्हाई पसंद होने लगे हैं और कभी कभी गाँव के इस अपनेपन को भी अजीब मानने लगे है....