अपना मोल पहचानो
अपना मोल पहचानो
"तुम कैंप से एक दिन पहले आकर कह रही हो कि तुम कल कैंप में नहीं जा सकती। तुम्हे पता है न ;तुम एन सी सी कैंप के लिए लीडर बनाई गयी थी। " प्रधानाध्यापिका छवि को लगातार डांटे जा रही थी।
छवि गर्दन झुकाये चुपचाप सुने जा रही थी। पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने वाली छवि ने पहली बार पढ़ाई के इतर किसी और गतिविधि में भाग लेने के लिए नाम लिखवाया था और कितने अरमानों से प्रतिदिन एन सी सी की विभिन्न गतिविधियों में भाग लेती थी। जब नाम लिखवाया था ;तब तो मम्मी -पापा ने मना नहीं किया था।
कैंप के बारे में भी उन्हें पता था ;तब भी उन्होंने कैंप में जाने से मना नहीं किया था। लेकिन कल जब मम्मी ने पूछा था कि ," शीतल दीदी भी कैंप में जा रही है क्या ?"तब छवि ने जैसे ही बताया कि ," मम्मी ,शीतल दीदी तो एन सी सी में हिस्सा ही नहीं लेती है। "
तब मम्मी ने उसे कैंप में जाने से साफ़ -साफ़ मना कर दिया। मम्मी ने कहा कि," कैंप में जाने की कोई जरूरत नहीं है। इससे तुम्हारी पढ़ाई को नुक्सान होगा। पहली बार क्लास ८ के बोर्ड के एग्जाम होंगे। अब आगे से एन सी सी में भी हिस्सा लेने की कोई जरूरत नहीं है। "
छवि को बड़ा ही दुःख हुआ था। शीतल दीदी छवि से एक क्लास सीनियर थी और पढ़ाई में बहुत होशियार थी। अपनी क्लास में हमेशा ही अव्वल आती थी। छवि के मम्मी -पापा दोनों ही उनसे बड़े प्रभावित थे। अतः जो शीतल दीदी करती थी ,छवि को भी वही करने को कहते थे। "
छवि प्रधानाध्यापिका की डाँट के बाद क्लास में आ गयी थी। क्लास में बैठते ही न चाहते हुए भी छवि की रुलाई फूट गयी थी। मृदुला मैडम की क्लास चल रही थी। मैडम ने छवि को पानी पीने के लिए भेजा और क्लास ख़त्म होने के बाद छवि को बुलाकर उसके रोने का कारण पूछा। छवि ने सिलसिलेवार मैडम को सब कुछ बताया।
मैडम ने कहा ," देखो बेटा ;किसी से प्रेरणा लेना अलग बात है। लेकिन किसी की हर बात को अपनाने से तुम अपनी मौलिकता खो दोगी। हर इंसान विशिष्ट होता है ;हर इंसान का अपना मोल है। हमें किसी और की तरह बनने की जरूरत नहीं होती है। शीतल को एन सी सी में जाने में रूचि नहीं होगी ;इसलिए वह नहीं जा रही। तुम्हारी रूचि है ;तो तुम जाओ। अपने मम्मी -पापा को भी यही समझाने की कोशिश करो। वे जरूर समझेंगे। "
खैर छवि द्वारा एक बार ऐसे नाजुक मौके पर मना किये जाने के कारण उसे एन सी सी में तो दुबारा नहीं लिया गया। लेकिन मृदुला मैडम की इस बात ने छवि के नज़रिये और सोचने के तरीके को पूरी तरीके से बदल दिया था। ज़िन्दगी में फिर कभी छवि ने किसी और की प्रतिलिपि बनने की कोशिश नहीं की। और उसके मम्मी -पापा ने भी उसे किसी और की तरह बनने के लिए नहीं कहा।
